कुछ भारतीय वामपंथी, तथाकथित, स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया आउटलेट्स सरकार विरोधी एजेंडा चलाने के लिए बदनाम हैं। इनमें से एक “The Print” का प्रोपेगैंडा अब इतना आगे निकल चुका है कि ये लोग भारत और रूस के दशकों पुराने कूटनीतिक रिश्तों को भी अपने निशाने पर लेने लगे हैं, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा जा सके, लेकिन इनके प्रोपेगैंडा से रूस और भारत के रिश्ते कुछ बिगड़ते; उसके पहले ही भारत में रूस के उच्चायुक्त निकोलय कुदाशेव ने प्रिंट को लताड़ लगाते हुए उनकी रिपोर्ट को फेक न्यूज बताया है।
ये वाकया The Print जैसे प्रोपेगेंडा और फेक न्यूज फैलाने वालों के मुंह पर तमाचा है। सभी को पता है कि कोरोना वायरस के इस दौर में कूटनीतिक मीटिंगों का स्थगन एक आम सी बात है। ऐसी ही एक शिखर वार्ता भारत और रूस के बीच भी होनी थी जिसे रद्द कर दिया गया। इस पूरी खबर में तो कोई मसाला नहीं था, लेकिन द प्रिंट जैसों को तो मसाला और मोदी विरोध परोसने में मजा आता है।
इसलिए The Print ने अपनी रिपोर्ट में इस पूरे प्रकरण को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के उस बयान से जोड़ दिया जिसमें वो अमेरिका के इंडो-पैसेफिक में प्रसार के कारण भारत के लिए थोड़े चिंतिंत थे। प्रिंट ने इस बयान से अपना प्रोपेगैंडा गढ़ना शुरू किया और क्वाड से जोड़कर यहां तक कह दिया कि भारत और रूस के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं हैं।
ऐसा कहा जाता है कि ‘सच’ से ज्यादा तीव्रता ‘फेक न्यूज’ में होती है। इसलिए इस तरह के गलत प्रोपेगैंडा की काट बेहद जरूरी थी जिसके चलते भारत में रूस के उच्चायुक्त निकोलय कुदाशेव ने साफ कर दिया कि ये सारी बातें पूर्णतः बेबुनियाद हैं और ‘द प्रिंट’ की पूरी रिपोर्ट फेक न्यूज हैं।
उन्होंने द प्रिंट की हेडलाइन को आधार बनाते हुए कहा, “प्रिंट की रिपोर्ट ‘क्वाड के कारण, मास्को ने दो दशक बाद भारत और रूस के बीच होने वाली द्विपक्षीय वार्ता की रद्द’ पर ध्यान दिया। ये सोच से बिल्कुल परे विश्लेषण है क्योंकि रूस और भारत के बीच रिश्तों में कोरोना वायरस के दौरान भी विशेष प्रगति जारी है।”
Noted the article “India-Russia annual summit postponed for 1st time in two decades amid Moscow’s unease with Quad” in the Print.
Find it to be far from reality. Special and privileged strategic partnership between Russia and India is progressing well despite the #COVID19.
— Denis Alipov 🇷🇺 (@AmbRus_India) December 23, 2020
भारत और रूस के बीच रद्द हुई बैठक को लेकर प्रोपेगैंडा चलाने वाले प्रिंट को जवाब देते हुए उन्होंने ट्वीट में कहा, “कोरोना वायरस की इस वैश्विक महामारी के दौर में हम भारत और उनके अधिकारियों के संपर्क में हैं और जल्द ही द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए नई तारीखें तय कर लेंगे, जिससे ये रिश्ते विकास के रास्ते पर आगे बढ़ें।”
रूसी उच्चायुक्त के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी प्रेस नोट जारी किया जिसमें कहा, “भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन 2020 में कोरोना वायरस की महामारी के कारण नहीं हुआ है। यह दोनों सरकारों के बीच एक पारस्परिक रूप से सहमति के बाद लिया गया निर्णय था। कोई भी अनुमान लगाना गलत और भ्रामक है। बेहद महत्वपूर्ण रिश्तों पर झूठी कहानियां फैलाना गैर जिम्मेदाराना हरकत है।”
Please see our response to a media report regarding the India-Russia Annual Summit. pic.twitter.com/BShPqq8NTR
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) December 23, 2020
दोनों देशों के प्रमुख अधिकारियों द्वारा जारी बयान ने ‘द प्रिंट’ के देश विरोधी प्रोपेगैंडा की कमर तोड़ दी है और बता दिया है कि ‘द प्रिंट’ फेक न्यूज फैलाने की चरम सीमा पर पहुंच चुका है। एक दिलचस्प बात ये भी है कि इस मसले पर फेक न्यूज के जरिए The Print ने अपना मकसद काफी हद तक पूरा कर दिया था क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मसले पर प्रिंट की ही रिपोर्ट को आधार बनाते हुए ट्वीट कर सवाल भी उठा दिया है कि अचानक रूस से भारत के रिश्ते क्यों खराब हो रहे है जबकि रूस हमारा सबसे अच्छा मित्र देश रहा है। राहुल का ये बयान अब हास्यास्पद हो गया है।
Russia is a very important friend of India.
Damaging our traditional relationships is short-sighted and dangerous for our future. pic.twitter.com/U5VyFWeS6L
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 23, 2020
प्रिंट ने प्रोपेगैंडा फैला दिया, राहुल गांधी ने सांकेतिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को घेर लिया, सब खुश थे; लेकिन रूसी उच्चायुक्त और फिर भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के बयानों ने इनकी खुशियों पर पानी फेर दिया।
ये कोई पहली बार नहीं है कि The Print ने फेक न्यूज फैलाई हो, शेखर गुप्ता के अंतर्गत काम करने वाले इस मीडिया आउटलेट को लॉकडाउन के विस्तार की फेक न्यूज फैलाने के लिए प्रसार भारती पहले ही फटकार लगा चुका है। वहीं भारतीय सेना की कार्यशैली से जुड़े मामलों से लेकर चुनावी खबरों और विश्लेषणों तक पर, ‘द प्रिंट’ फेक न्यूज़ फैला चुका है जो दिखाता है कि प्रिंट की पूरी पत्रकारिता ही फेक न्यूज पर आधारित हैं।
बहराल इस पूरे प्रकरण से ये साबित हुआ कि प्रिंट फेक न्यूज़ फैलाने में एक्सपर्ट है लेकिन यह भी साबित हो गया कि देश के प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए बैठा एक अपरिपक्व राजनेता फेक न्यूज पर कितनी आसानी से विश्वास कर लेता है।