चीन यूरोपियन यूनियन के साथ एक व्यापारिक समझौता करने के लिए तत्पर है लेकिन फ्रांस उसका रास्ता रोके हुए है। दरसल चीन EU के साथ The Comprehensive Agreement on Investment पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रयासरत है। यह डील यूरोपीय कंपनियों को चीन में निवेश तथा चीन को यूरोप से बेहतर तकनीक के हस्तांतरण, जॉइंट वेंचर अर्थात उच्च तकनीक के द्विपक्षीय सहयोग के माध्यम से विकास करने के नए अवसर देगा। चीन की अर्थव्यवस्था पर कर्ज़ का बोझ बढ़ रहा है। ऐसे में यूरोपीय निवेश उसके लिए संजीवनी साबित हो सकता है, लेकिन फ्रांस ने अपने इरादों से साफ जाहिर कर दिया है कि वह चीन की राह को आसान नहीं होने देगा।
गौरतलब है कि वैसे ही इस डील के तय होने के रास्ते में कई कठिनाईयां पहले से मौजूद हैं। चीन की कोशिश है कि यूरोपीय देश उसके द्वारा किये जा रहे निवेश की कड़ी निगरानी ना करें। वहीं यूरोप ने पारदर्शिता, चीन द्वारा सरकारी उद्यमों के पक्ष में पक्षपात न करने और चीनी मार्केट में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को खोलने की मांग रखी थी। लेकिन अब फ्रांस ने उइगर मुसलमानों से जबरन श्रम करवाने को एक मूल मुद्दा बताकर इस डील को असम्भव सा बना दिया है।
फ्रांस के विदेश मंत्री फ्रैंकरिस्टर ने अपने बयान में कहा है “प्रस्तावित समझौता चीन के साथ निवेश के संदर्भ में संतुलन स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें आशंका है कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के कई ऐसे वादे हैं, जिनको बीजिंग ने पूरा नहीं किया है।” उन्होंने आगे कहा कि “यदि हम जबरन श्रम को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो हम चीन में निवेश नहीं कर सकते।” साथ ही उन्होंने कहा “व्यापारिक समझौता सामाजिक मुद्दों को उठाने के लिए अहम होते हैं, विशेष रूप से जबरन श्रम के संदर्भ में।” उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि लग्जमबर्ग, नीदरलैंड, बेल्जियम और जर्मनी जैसे देश भी इस बात पर पेरिस से सहमत हैं।
फ्रांस का इरादा है कि चीन को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन ना करने पर घेरा जाए। चीन अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के नियमों का पालन नहीं करता। साथ ही उसकी नीतियां WTO के फ्री मार्केट के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। चीन अपने व्यापारिक, सामरिक और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए लोकतांत्रिक देशों की आंतरिक राजनीति में प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप करता है। चीन ने अपनी नीतियों से यह जाहिर कर दिया है कि वह स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक समाजों के लिए खतरा है। ऐसे में फ्रांस, जो लोकतंत्र की नर्सरी रहा है, वह अधिक समय तक आंख मूंदे नहीं रह सकता था।
हाल ही में फ्रांस ने इंडो-पैसिफिक नीति को अपनाया है। सितंबर महीने में फ्रांसीसी रक्षा मंत्री के भारत दौरे के समय फ्रांसीसी दूतावास ने अपने वक्तव्य में कहा था कि फ्रांस भारत के साथ हिन्द प्रशांत क्षेत्र की नाविक आवागमन की सुरक्षा एवं क्षेत्र में नौसैनिक सहयोग पर चर्चा करेगा। इसके बाद फ्रांस हाल ही में IORAका भी सदस्य बना। महत्वपूर्ण यह है कि हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के बाद भारत ने “इंडियन ओशन रिम असोसिएशन” (IORA) को पुनर्जीवित करना शुरू किया है और फ्रांस एक विश्वसनीय सहयोगी की तरह भारत के प्रयासों को मदद दे रहा है। फ्रांस की नीतियों में आये बदलाव बताते हैं कि फ्रांस वैश्विक शांति एवं स्वतंत्रता के सिद्धांत के लिए प्रतिबद्ध है और वह चीन की दुष्प्रवृत्तियों के प्रति आंखें बंद नहीं रखेगा।