एक तरफ कांग्रेस पूरे देश में किसान आंदोलन तेज़ करने में जुटी है तो वहीं राजस्थान में कुछ और ही खेल चल रहा है। सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच जुलाई से चल रहा विवाद एक बार फिर से सामने आ गया है। रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस में अशोक गहलोत द्वारा की जा रही नियुक्तियों पर सवाल उठाया जा रहा है और कहा यह जा रहा है कि सचिन पायलट और उनके समर्थकों की बगावत थमने के बाद हुए समझौते को दरकिनार करते हुए गहलेात ने अपने हिसाब से ही आधा दर्जन नियुक्तियां कर दी।
इसमे कोई संदेह नहीं कि इन नियुक्तियों में सभी पदों पर गहलोत समर्थक को स्थान मिला होगा। इनमें राजस्थान लोकसेवा आयोग व सूचना आयोग शामिल है। इस तरह से गहलोत की मनमानी के बाद पायलट समर्थक इन नियुक्तियों के मामले को ऊपर तक ले गए हैं। जुलाई में शुरू हुई गहलोत और पायलट के बीच यह वर्चस्व की लड़ाई बड़ी मुश्किल से थमी थी। अगर यह एक बार फिर से शुरू होती है तो राजस्थान कांग्रेस का टूटना तय है।
जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से घटना क्रम शुरू हुआ है उसे देखने हुए इसकी उम्मीद बढ़ गयी है। बता दें कि करीब दो सप्ताह बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार दो साल का कार्यकाल पूरा कर रही है। इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंत्रिमंडल विस्तार व राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर अपने विश्वस्तों के साथ कसरत शुरू कर दी है। एक तरफ गहलोत अपने समर्थकों को अधिक से अधिक संख्या में कांग्रेस संगठन में भी पद दिलवाना चाहते हैं।
तो वहीं इस चाल को नाकाम करने के लिए पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कांग्रेस आलाकमान को अपना पुराना वादा याद दिलाया, जिसमें यह तय हुआ था कि दोनों खेमों को बराबर का हिस्सा दिया जाएगा। दैनिक जागरण ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पायलट ने अपनी बात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, संगठन महासचिव के.सी.वेणुगोपाल व अजय माकन तक पहुंचा दी है जिसके बाद गहलोत सक्रिय हो गए है।
रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि गहलोत किसी भी तरह से पायलट को ताकतवर नहीं होने देना चाहते हैं चाहे वो मंत्रिमंडल हो या कांग्रेस संगठन। गहलोत ना तो पायलट को फिर से उप-मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और ना ही उनके समर्थकों को सत्ता व संगठन में पद देना चाहते हैं।
बता दें कि दो दिनों पहले ही गहलोत ने यह दावा किया था कि उनकी सरकार को फिर से अस्थिर करने की चाल चली जा रही है। यही नहीं उससे पहले राजस्थान पुलिस ने सचिन पायलट के मीडिया मैनेजर लोकेंद्र सिंह को जैसलमेर होटल में रहने वाले गहलोत शिविर के विधायकों के फोन टैप करने की खबरों के आधार पर बुक किया है। पिछले बार का राजनीतिक युद्ध भी पायलट के एक समर्थक की गिरफ्तारी के बाद ही शुरू हुआ था।
ऐसा लगता है कि यह गहलोत का सचिन पायलट के खिलाफ एक राजनीतिक दांव ही था। इसके माध्यम से गहलोत ने कांग्रेस हाईकमान तक यह बात पहुंचाई है कि बागी विधायक फिर से कोई चाल चल रहे हैं। इससे गहलोत ने यह भी कहने की कोशिश की है कि अगर उनके हिसाब से फैसले लिए गए तभी सत्ता सुरक्षित रह सकती है। उनके इस कदम के बाद उनके समर्थक तुरंत सक्रिय हो गए और उनके वर्चस्व को बनाए रखने में जुट गए। हालांकि अगर यह बात कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचती है तो इस बार सचिन पायलट का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है।
गहलोत गांधी परिवार के दो बड़े अवसरों, यानि गांधी जयंती और 20 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती मनाने के लिए पार्टी के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। ऐसे में गांधी परिवार उनसे अवश्य नाराज होगा। राजस्थान कांग्रेस में पड़ी यह फूट अब कांग्रेस के विभाजन का कारण बनने जा रही है।