नेपाल की सियासी उठा-पटक से चीन बेहद चिंता में हैं क्योंकि उसे डर है कि अब प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के जाने के बाद उसका नेपाल में प्रभाव खत्म होने लगेगा। अपने इस डर को हकीकत बनने से रोकने के लिए नेपाल में चीनी राजदूत हू यांकी ने अपना ध्यान ओली से हटाकर ओली के ही सहयोगी और कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड की तरफ केंद्रित कर दिया है और अब वो प्रचंड को साधने की कोशिश कर रही हैं जिससे चीन के स्वार्थ सिद्ध होते रहें।
रिपब्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के नेपाल पर घटते सियासी प्रभाव के बीच नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड से नेपाल में चीन की राजदूत हू यांकी ने मुलाकात की है। प्रचंड ने अपने आवास खुमलटार में चीनी राजदूत के साथ करीब 30 मिनट तक बातचीत की। खास बात ये भी है कि प्रचंड ने प्रधानमंत्री केपी. शर्मा ओली को पार्टी को संसदीय दल के नेता और अध्यक्ष पद से हटाने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी पर अपना नियंत्रण होने का दावा किया है।
वहीं इस मौके पर प्रचंड खेमे के ही करीबी नेता विष्णु रिजाल ने ट्वीट किया, “चीन की राजदूत हू यांकी ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड से द्विपक्षीय चिंताओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की।” वहीं मीडिया रिपोर्ट्स में प्रचंड के सचिवालय के एक सदस्य के हवाले से दावा किया गया कि चर्चा अवश्य ही समकालीन राजनीतिक घटनाक्रमों के इर्द-गिर्द केंद्रित रही होगी। प्रचंड से हू यांकी का मिलना इसीलिए भी दिलचस्प है; क्योंकि दो दिन पहले ही हू यांकी ने नेपाली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से मुलाकात की थी।
प्रचंड पार्टी पर नियंत्रण होने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में चीन को उनके साथ जाने से अपने स्वार्थ सिद्धि में उम्मीद दिखी है। इसीलिए अब चीनी राजदूत हू यांकी प्रचंड को अपने हित सिद्ध करने के लिए साधने लगी हैं; जिससे नेपाल अनौपचारिक रूप से ही सही, पर चीन का उपनिवेश बना रहे। क्योंकि भारत को दक्षिण एशिया में कमजोर करने के लिए चीन को सबसे ज्यादा आवश्यकता नेपाल की ही होती है। नेपाल इसका फायदा उठाते हुए बिन पेंदी के लोटे की तरह कभी भारत और कभी चीन की ओर लुढ़क जाता है।
इससे पहले ओली से भी हू यांकी ने ऐसे ही अपने कूटनीतिक संबंध बनाए थे, जिसके बाद भारत और नेपाल के रिश्तों में कटुता आई थी। काला पानी का मुद्दा नेपाल ने ही उठाया परंतु बाद में उसे ही परेशानी हुई। इसके अलावा भारत से नेपाल को उलझाकर चीनी सेना नेपाल के कुछ भागों पर कब्जा जमाने लगी। ओली को समय रहते अपनी गलतियों का एहसास हुआ और उन्होंने भारत के साथ रिश्ते सुधारने के कदम बढ़ाए। इसी बीच चीन की चालबाजियों को देखते हुए पार्टी में गतिरोध के कारण नेपाल की संसद को भंग कर ओली ने पहले ही चीन की नींद उड़ा दी थी।
नेपाली संसद के भंग होने को लेकर भारतीय मीडिया के विश्लेषण पर भी चीन भड़क गया था। ऐसे में अपने स्वार्थ को पूरा ना होता देख नेपाल की राजनीति में अब चीनी राजदूत हूं यांकी ने प्रचंड की तरफ झुकाव कर दिया है, जिससे नेपाल में उसका प्रभाव बना रहे और चीन भारत को परेशान करने के लिए नेपाल के जरिए अपने मंसूबों में कामयाब होता रहे।