भारत ने कूटनीतिक रूप से कनाडा को दिया झटका, ट्रूडो ने सबक नहीं सीखा तो ट्रेड पर भी होगा वार

कनाडा

भारत में किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली कनाडा की ट्रूडो सरकार को अब भारत के आंतरिक मामलों में बोलने का परिणाम मिलना शुरू हो चुका है। पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने कनाडा के नेतृत्व वाली Ministerial Coordination Group of Covid-19 (MCGC), के वर्चुअल बैठक में भाग लेने से मना कर दिया, अब भारत ने कनाडा से दोनों देशों के बीच शीर्ष राजनयिकों की बैठक को स्थगित करने के लिए कहा है। रिपोर्ट के अनुसार दोनों देशों के बीच 15 दिसंबर को विदेश सचिव स्तर की बैठक होने वाली थी, लेकिन अब भारत ने कनाडा के साथ बैठक करने से साफ मना करते हुए इसे पोस्टपोन कर दिया है। इसके साथ ही भारत ने कहा है कि यह तारीख भारत के अनुकूल नहीं है।

भारत का यह कदम दोनों देशों की बिगड़ती राजनयिक संबंधों की ओर इशारा है कि भारत कनाडा द्वारा अपने आंतरिक मामलों में किसी भी तरह की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा। भारत के कदम से यह भी स्पष्ट हुआ है कि अब अगर कनाडा ने किसी प्रकार से भारत विरोधी तत्वों का समर्थन किया तो उसके साथ व्यापारिक सम्बन्धों को तोड़ने से भी पीछे नहीं हटेगा।

इससे पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने इसी महीने कनाडा के विदेश मंत्री Francois-Phillippe Champagne की अगुवाई में Ministerial Coordination Group of Covid-19 (MCGC), के वर्चुअल बैठक में भाग लेने से मना कर दिया था। यही नहीं भारत के विदेश मंत्रालय ने नई दिल्ली में कनाडाई राजदूत नादिर पटेल को समन भी किया था और एक कड़ा demarche जारी करते हुए भारत ने कहा था कि पीएम जस्टिन ट्रूडो द्वारा की गई इस तरह की टिप्पणी से दोनों देशों के संबंधों पर “हानिकारक” प्रभाव पड़ सकता है। भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि भारतीय किसानों से संबंधित मुद्दों पर कनाडा के प्रधानमंत्री, कुछ कैबिनेट मंत्रियों और संसद सदस्यों द्वारा टिप्पणी हमारे आंतरिक मामलों में एक हस्तक्षेप है जो पूरी तरह से अस्वीकार्य है।

अब अगर कनाडा के प्रधानमंत्री ने सीख नहीं ली और इसी तरह से आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते रहे और खलिस्तानियों का समर्थन करते रहे तो भारत कनाडा के साथ व्यापारिक सम्बन्धों को भी तोड़ने के लिए मजबूर हो सकता है जो कि कनाडा पर भारी पड़ेगा।

भारत के कनाडा से काफी गहरे व्यापारिक संबंध हैं, और वह कनाडा से कई चीजों का आयात करता है, जैसे कि औद्योगिक केमिकल, न्यूजप्रिन्ट, मटर, तांबा, एजबेस्टस, वुड पल्प इत्यादि। अब यदि भारत चाहे तो इन सब पर इम्पोर्ट ड्यूटी को काफी हद तक बढ़ा सकता है, जिससे न सिर्फ कनाडा को आर्थिक तौर पर नुकसान होगा, बल्कि इसके राजनीतिक परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे। लेकिन ये कैसे होगा?

दरअसल, कनाडा में इस समय ट्रूडो की लिबरल पार्टी है, जो खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह के न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन सरकार चला रहे हैं। अगर भारत के साथ कनाडा के रिश्ते खराब हुए, तो कंजरवेटिव पार्टी के पास ट्रूडो की धुलाई करने का एक सुनहरा अवसर मिलेगा, और इस खिचड़ी सरकार को गिरने में भी अधिक समय नहीं लगेगा।

ट्रूडो सरकार द्वारा कनाडा में खालिस्तानियों को समर्थक देने के कारण मोदी सरकार अब प्रखर हो चुकी है। चाहे वो विदेश नीति हो या कनाडा का बहिष्कार करना हो। द्विपक्षीय संबंध और बिगड़ सकते हैं, ऐसे में अगर भारत ने व्यापारिक बहिष्कार के साथ अंतराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की तरह कनाडा का भी डिप्लोमेटिक बहिष्कार भी शुरू कर दिया तो कनाडा के किए मुश्किले खड़ी हो सकती हैं। भारत की विदेश नीति अब पहले कि तरह नहीं रही। भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने वाला किसी भी देश का राष्ट्राध्यक्ष ही क्यों न हो उसे भारत जवाब दे रहा है।

 

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