इन दिनों दिल्ली के आसपास हो रहे ‘किसान आंदोलन’ काफी चर्चा में है, और इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की जी तोड़ कोशिश की जा रही है। अब इस में कनाडा भी कूद पड़ा है, जब कैनेडियाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस आंदोलन के बारे में जाने समझे बगैर केंद्र सरकार को निशाना बनाने का प्रयास किया, जो आगे चलकर उसे बहुत भारी पड़ने वाला है ।
भारत ने भी कनाडा की इस हेकड़ी को हल्के में नहीं लिया है। सर्वप्रथम तो ट्रूडो के बयान आने के अगले ही दिन भारत के विदेश मंत्रालय ने जस्टिन ट्रूडो को खरी खोटी सुनाते हुए उनके बयानों को बचकाना बताया और उन्हें यह भी चेतावनी दी कि भारत के आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी न करे।
लेकिन भारतीय प्रशासन यहीं पर नहीं रुका है। उन्होंने कनाडा को ये याद दिलाना शुरू कर दिया है कि भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने के क्या अंजाम हो सकते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में विदेश मंत्रालय ने कैनेडियाई राजदूत को तलब किया था। सूत्रों के अनुसार इस बातचीत में विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कहा है कि कनाडा ने जिस प्रकार के बयान जारी किये हैं, उससे दोनों के देशों के संबंधों में काफी दरारें पैदा हो सकती हैं।
अब ऐसे में भारत कनाडा के विरुद्ध क्या एक्शन ले सकता है? भारत के कनाडा से काफी गहरे व्यापारिक संबंध हैं, और वह कनाडा से कई चीजों का आयात करता है, जैसे कि औद्योगिक केमिकल, न्यूजप्रिन्ट, मटर, तांबा, एजबेस्टस, वुड पल्प इत्यादि। अब यदि भारत चाहे तो इन सब पर इम्पोर्ट ड्यूटी को काफी हद तक बढ़ा सकता है, जिससे न सिर्फ कनाडा को आर्थिक तौर पर नुकसान होगा, बल्कि इसके राजनीतिक परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे।
लेकिन ये कैसे होगा? दरअसल, कनाडा में इस समय ट्रूडो की लिबरल पार्टी है, जो खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह के न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन सरकार चला रहे हैं। जब 2017 में ट्रूडो भारत दौरे पर आए थे, तो उससे पहले उनकी खालिस्तानियों के साथ कुछ तस्वीरें वायरल हुई थी, जिसके कारण न केवल भारत दौरे पर उनकी फजीहत हुई थी, बल्कि ट्रूडो के असफल भारत दौरे को लेकर विपक्ष ने भी काफी खरी खोटी सुनाई थी। अगर भारत के साथ कनाडा के रिश्ते खराब हुए, तो कंजरवेटिव पार्टी के पास ट्रूडो की धुलाई करने का एक सुनहरा अवसर मिलेगा, और इस खिचड़ी सरकार को गिरने में भी अधिक समय नहीं लगेगा।
क्या यह युक्ति सफल हो सकती है? निस्संदेह हो सकती है, क्योंकि भारत की अखंडता को चुनौती देने वाले वैश्विक नेताओं का पिछले कुछ वर्षों में काफी बुरा हाल हुआ है। विश्वास नहीं होता तो महातिर मोहम्मद का ही उदाहरण देख लीजिए। पिछले वर्ष जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, तो महातिर मोहम्मद ने न केवल इसकी निन्दा की, बल्कि इसे कश्मीर पर आक्रमण भी बताया। इसके अलावा CAA के विषय पर भी इन्होंने भारत के विरुद्ध विष उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
फलस्वरूप भारत ने मलेशिया के सबसे अहम निर्यातों में से एक पाम ऑइल पर न केवल रोक लगाई, बल्कि कई अन्य आयतों पर इम्पोर्ट ड्यूटी भी बढ़ाया। फलस्वरूप मलेशिया की आर्थिक स्थिति में भी काफी नुकसान हुआ, और जनता के बढ़ते आक्रोश के चलते महातिर मोहम्मद को आखिरकार अपने पद से इस्तीफा देना ही पड़ा।
ऐसे में भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने से यदि कनाडा नहीं बाज आया, तो भारत मलेशिया की भांति कनाडा को भी कड़ा सबक सीखा सकता है। इसीलिए भारतीय प्रशासन ने कनाडा को एक स्पष्ट चेतावनी दी है, कि यदि संबंध कायम रखने है, तो ऐसी बचकानी हरकतों से बचना होगा, अन्यथा परिणाम बहुत हानिकारक होंगे।