क्या किसान आंदोलन, खालिस्तानियों के Referendum 2020 का ही एक दूसरा रूप है?

किसान आंदोलन का खालिस्तानी कनेक्शन, रेफरेंडम 2020

पंजाब के किसानों

खालिस्तानी एजेंडा चलाने वाले सिख फॉर जस्टिस संगठन ने एलान किया था कि 2020 में भारतीय पंजाब में Referendum 2020  के जरिए एक खालिस्तान का निर्माण करेंगे। पाकिस्तान के समर्थन से आईएसआई से फंडिंग पाकर पूरी दुनिया में खालिस्तानी एजेंडा चलाने वाले इस संगठन को कोरोना जैसे प्राकृतिक झटकों ने उदास कर दिया है।

ये संगठन अब 2020 के खात्मे के साथ ही कुछ आंदोलन का दिखावा कर रहा हैं जो कि Referendum 2020 का हिस्सा प्रतीत होता है।

इसी साल सितंबर में देश की संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब-हरियाणा के किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रखा है। सिख फॉर जस्टिस ने इसका फायदा उठाते हुए पंजाब-हरियाणा के किसानों के लिए 1 मिलियन डॉलर का अनुदान देने की बात भी कही थी।

साथ ही ये भी कहा था, “कोई भी किसान अपने विश्वास के आधार पर खालिस्तान जनमत 2020 में 25 वोट दर्ज करा सकता है। जिसके बदले उसे 5000 रुपए मिलेंगे जिससे कर्ज चुकाया जा सकेगा।”
असल में इस कर्ज के नाम पर ये लोग किसान को खालिस्तान के लिए रिश्वत दे रहे थे।

पहले भी ये अलगाववादी संगठन किसानों को Referendum 2020 के लिए 3,500 रुपए का सुझाव दे चुका है। संगठन का कहना था कि जो लोग लोन का भुगतान नहीं कर पाए हैं, उन्हें मासिक आधार पर पैसा दिया जाएगा। अगर भविष्य में यह पता चलता है कि किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी समर्थक और अराजक तत्व इस आंदोलन को बढ़ावा दे रहे थे, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि इसकी शुरुआत सिख फॉर जस्टिस द्वारा रेफरेंडम 2020 के रूप में पहले ही की जा चुकी थी।

इन संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अमेरिका कनाडा ब्रिटेन में बैठे सिख जो हमेशा ही खालिस्तानी अवधारणा के समर्थक है वो दिल्ली की सीमाओं पर बैठें किसानों के अराजक आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं, जिसमें आर्थिक मदद भी की जा रही है और ये एक वृहद जांच का विषय है। पंजाबी गायकों की निष्ठा पर भी समय-समय पर सवाल उठते ही रहे हैं जबकि इनकी बड़ी तादाद भारत समर्थक ही है, लेकिन कुछ विदेशी लोग इस आंदोलन को अराजक बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो कि जांच का विषय है।

पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा 2020 के अंत में दिल्ली की सीमाओं पर बड़े पैमाने पर बेवजह एक भ्रम के आधार पर नाकाबंदी की गई है, जो कि आपत्तिजनक है। ऐसे में क्या ये आंदोलन Referendum 2020 के एजेंडे का हिस्सा हो सकता है। हम आपको अपनी रिपोर्ट में पहले ही बता चुके हैं कि गृह मंत्री अमित शाह इस मसले पर विदेशी फंडिंग के खिलाफ जांच के लिए एक्शन ले चुके हैं जिसके तहत सीबीआई, ईडी, एनआईए, एफआईयू और आयकर विभाग जैसी विभिन्न केंद्रीय एजेंसियां एनजीओ, खालिस्तानी संगठनों और उनके विदेशी भुगतानकर्ताओं पर भारी कार्रवाई की तैयारी कर ली हैं जो कि रेफरेंडम 2020 की असफलता के बाद इन ख़ालिस्तानी समर्थकों के लिए झटका है।

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