कोरोना के बाद चीन की बढ़ती आक्रामकता के बाद लगभग सभी देशों ने चीन से होने वाले खतरे को पहचान लिया था, और चीन के खिलाफ एक मोर्चा बनाना शुरू कर दिया था। आज यह मोर्चा सिर्फ रणनीतिक ही नहीं बल्कि आर्थिक स्तर पर भी आवश्यक बन चुका है और इसका कारण है चीन का लगभग सभी देशों के साथ ट्रेड सरप्लस। यह इसी ट्रेड सरप्लस का नतीजा है कि कोरोना के बाद लगभग सभी देश आर्थिक मंदी के दौर में है लेकिन चीन के आर्थिक आंकड़ों को देखा जाए तो वह ऊंचाई छू रहा है।
बीजिंग ने दुनिया को एक बार फिर से अपने वृद्धि दर से आश्चर्यचकित कर दिया है। जब पूरी दुनिया स्वास्थ्य और आर्थिक तबाही की अपार चुनौती का सामना कर रही है तब नवंबर में चीन का निर्यात पिछले साल नवंबर की तुलना में 21% अधिक हुआ है, और सरप्लस बढ़ कर 75.42 बिलियन डॉलर हो गया।
यह घटना कोई आम घटना नहीं है और इन आंकड़ों ने कई अर्थशास्त्रियों को झकझोर दिया होगा, लेकिन यही सांख्यिकीय तथ्य हैं। यह स्पष्ट है कि अब तक चीन को रोकने के सभी कदम फेल हो रहे हैं। विश्व शक्तियों ने चीन को रोकने के लिए अभी तक जियोस्ट्रेटेजिक संबंधी रणनीति को ही अपनाने की कोशिश की है जिसमे आर्थिक उपाए हैं ही नहीं।
इन देशों को अपनी रणनीति पर ध्यान देना चाहिए और सभी देशों को जोड़ने वाले एक कारण को ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए जिससे सभी देश एक साथ चीन के खिलाफ खड़े हो सके और एक अन्य मैनुफेक्चुरिंग और सप्लाइ चेन बनाए। यही नहीं WTO को चीन के चंगुल से छुड़ाना भी इन कदमों का हिस्सा होना चाहिए।
दुनिया भर में महामारी की चपेट में आने के दौरान भी चीनी व्यापार नीचे जाने बजाए ऊपर ही जा रहा है। पिछले वर्ष के नवंबर से इस बार के नवंबर का निर्यात 21% बढ़ा था। WSJ की रिपोर्ट के अनुसार यही वृद्धि दर अक्टूबर में 11.4% रही । वहीं अर्थशास्त्रियों ने इसके 12% का पूर्वानुमान लगाया था लेकिन, चीन ने सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए 21 प्रतिशत का निर्यात किया।
अक्टूबर के 4.7% की तुलना में आयात 4.5% था। वहीं अर्थशास्त्रियों ने इसका अनुमान 5.3% लगाया था। वहीं 75.42 बिलियन डॉलर के आंकड़े को छूते हुए ट्रेड सरप्लस ने नया रिकॉर्ड बनाया।
इन आंकड़ों के दो मतलब हो सकते हैं, या तो बीजिंग को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है या एक बार फिर से वह अपने व्यापारिक आंकड़ों में गड़बड़ी कर गलत आंकड़े पेश कर रहा है, जो बीजिंग के लिए आम बात है।
परंतु इन आंकड़ों को सही मानते हुए, विश्व भर के देशों को साथ आने की जरूरत है। इंडो-पैसिफिक और कई मिनीलेटरल, बाइलैटरल और त्रिपक्षीय समूह है जिन्हें चीन के खिलाफ एक होने की जरूरत हैं। अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं के साथ यूरोपीय संघ के कुछ सदस्यों ने जरूर चीन के खिलाफ मोर्चा लेना शुरू किया है।
इसके अलावा, नाटो के अटलांटिक से हिंद महासागर में आने की बात भी चल रही है और NATO के कई सदस्य इसमें अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं। हालांकि, ये सब कुछ देशों का व्यक्तिगत प्रयास या संयोजन हैं, लेकिन, सभी समान विचारधारा वाले देशों को एक संयुक्त प्रयास करने की जरूरत है।
अब चीन के रोकथाम और सप्लाइ चेन के विविधीकरण के लिए एक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। चीन के आर्थिक नियंत्रण को केंद्र में रखते हुए, एक सामान्य व्यवस्था की आवश्यकता है। सभी देशों को एक निकाय बनाने के लिए एक साथ आने की आवश्यकता है जो चीनी विकल्प का प्रदान कर सके और इस प्रकार, चीन के अर्थव्यवस्था पर चोट कर सकते हैं।