पिछले कुछ समय में गौर किया जाये, तो जापान अपनी विदेश नीति का सारा फ़ोकस ASEAN देशों पर केन्द्रित करता हुआ दिखाई दे रहा है। चाहे भारत के साथ मिलकर Trans-Asian Corridor स्थापित करने की बात हो, वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ नजदीकी बढ़ानी हो, या फिर अब म्यांमार की अंदरूनी राजनीति में हस्तक्षेप कर लोकतन्त्र को मजबूत करने की कोशिश करना हो।अब मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जापान म्यांमार के उग्रवादी संगठन Arakan Army के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है ताकि म्यांमार में सरकार और उग्रवादी संगठनों के बीच में शांति वार्ता को आगे बढ़ाया जा सके।
देश में शांति स्थापना के लिए जापान ने म्यांमार में अपने एक विशेष राजदूत Yohei Sasakawa को भी नियुक्त किया है, जो Arakan Army और म्यांमार सरकार के बीच समझौता कराने की कोशिश में हैं और वे पिछले दो महीनों में दो बार म्यांमार का दौरा भी कर चुके हैं। बता दें कि Arakan Army वही उग्रवादी संगठन है, जिसपर चीन का बेहद ज़्यादा प्रभाव माना जाता है और जो म्यांमार के रखाइन राज्य को अलग देश घोषित करने के पक्ष में है
यहाँ यह बात समझने वाली है कि रखाइन राज्य भू-राजनीतिक दृष्टि से चीन के लिए भी बेहद अहम है, क्योंकि चीन अपने म्यांमर-चीन इकोनोमिक कॉरीडोर के माध्यम से अपने यूनान प्रांत को म्यांमार के Kyaukphyu बन्दरगाह से जोड़ना चाहता है।
चीन की अब तक यही कोशिश रही है कि कैसे भी करके Arakan Army पर अपना प्रभाव बढ़ाकर रखाइन राज्य में चीनी प्रोजेक्ट्स को तेजी प्रदान कर दी जाये और साथ ही साथ क्षेत्र में भारतीय प्रोजेक्ट्स के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी जाएँ। जुलाई में हमने आपको अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अराकन आर्मी को मिलने वाले 95% फंडस चीन से ही आते हैं।
इसके अलावा अराकन आर्मी म्यांमार में चुन-चुन कर भारत के प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाती है। अराकन के उग्रवादी समय-समय पर मिज़ोरम-म्यांमार बॉर्डर पर भारतीय प्रोजेक्ट्स में शामिल मजदूरों को बंदी बनाते रहते हैं, और वे म्यांमार सेना को भी निशाना बनाते हैं। लेकिन अराकन के लड़ाके कभी BRI के प्रोजेक्ट को निशाना नहीं बनाते। चीन इसके माध्यम से म्यांमार पर दबाव बनाता है कि वहाँ की सरकार BRI प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दे और BRI में कोई रोड़ा ना अटकाए।
अब जापान धीरे-धीरे रखाइन राज्य की मांग करने वाले इस Arakan Army संगठन पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है। बता दें कि म्यांमार में हाल ही में सफ़ल और शांतिपूर्वक चुनाव आयोजित कराने में भी जापान की बड़ी भूमिका थी। जापान ने ही Arakan Army और म्यांमार सरकार के बीच एक तरह का शांत समझौता कराया था, जिसके बाद क्षेत्र में चुनाव हो सके थे।
वर्ष 2018 में शुरू हुई लड़ाई के बाद यह पहला मौका था जब दोनों पक्षों के बीच में किसी तरह का शांति समझौता हुआ था।
जापान की ओर से इस क्षेत्र पर प्रभाव बढ़ाने के लिए Nippon Foundation को काम पर लगाया गया है, जिसने ऐलान किया है कि वह रखाइन राज्य में लोगों को 2 लाख डॉलर की “मानवीय सहायता” प्रदान करेगी। उधर जापानी सरकार खुद म्यांमार की सरकार को आर्थिक राहत देने का काम कर रही है।
अगस्त के आखिर में जापानी विदेश मंत्री और म्यांमार की राष्ट्राध्यक्ष Suu kyi के बीच एक मुलाक़ात भी हुई थी, जहां जापानी सरकार ने म्यांमार को करीब 420 मिलियन डॉलर की सहायता प्रदान करने का वादा किया था।
ज़ाहिर है कि जापान अब म्यांमार की शांति वार्ता में शामिल होकर और रोहिंग्या मामले को सुलझाकर Arakan Army के साथ-साथ म्यांमार की सरकार पर भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यह चीन के लिए सबसे बड़ी और बुरी खबर है, क्योंकि जापान के प्रोजेक्ट के बाद चीन के म्यांमर-चीन इकोनोमिक कॉरीडोर के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है।
म्यांमार और ASEAN में बढ़ते जापान के कदम चीन के लिए घातक साबित हो सकते हैं, जबकि दूसरी ओर भारत इसका भरपूर फायदा उठाने की स्थिति में होगा। भारत अपनी Act East नीति और जापान अपनी indo-Pacific नीति के तहत चीन की विस्तारवादी नीति की धज्जियां उड़ाने के लिए पूरी तरह तैयार दिखाई दे रहे हैं।