कुछ लोगों की फितरत ऐसी होती है कि वो बंदर की तरह कभी-भी गुलाटी मार सकते हैं, बिहार एनडीए के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का हाल भी कुछ ऐसा ही है। कल तक जो नीतीश कुमार दिखावे की कलाबाजियां करते हुए सीएम पद तक लेने को तैयार नहीं थे, वो आज कैबिनेट विस्तार में जेडीयू-बीजेपी के बीच 50-50 का फार्मूला चाहते हैं। हालांकि, वो बीजेपी के इतने ज्यादा दबाव में है कि अब उन्हें कैबिनेट विस्तार ही टालना पड़ा है क्योंकि बीजेपी उन्हें अब इस मुद्दे पर फ्री हैंड देने के मूड में नहीं है, जो कि नीतीश के लिए एक अप्रत्याशित झटके जैसा ही है।
इस माह बिहार में एनडीए की नीतीश सरकार के कैबिनेट का विस्तार होना था लेकिन अब अगले महीने की 14 तारीख तक के लिए तो टल ही गया है। वजह खरमास का शुरू होना बताया गया है जबकि हकीकत ये है कि गठबंधन में आम सहमति नहीं बन पाई है। मुख्यमंत्री चाहते हैं कि जेडीयू और बीजेपी को 17-17 और हम एवं वीआईपी को 1-1 मंत्री पद मिले। दूसरी ओर बीजेपी जेडीयू की सीटें कम होने के बाद मंत्रिमंडल में ज्यादा जगह चाहती है जो कि नीतीश को नामंजूर है।
इसका नतीजा ये है कि इस महीने होने वाला मंत्रिमंडल विस्तार अब ठंडे बस्ते में जा चुका है। यही नहीं, विधानपरिषद में राज्यपाल द्वारा मनोनयन के लिए चुने जाने वाले लोगों पर भी इसी कारण से कोई सहमति नहीं बनी है। ये साबित करता है कि दोनों पार्टियों को कहीं-न-कहीं एक दूसरे की मांग मंजूर नहीं है लेकिन इसमें नीतीश बैकफुट पर हैं।
इस मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर ये कहा जा रहा है कि इसे नीतीश ने टाला है लेकिन असलियत ये नहीं है। इसके पीछे बीजेपी की मुद्दे पर दृढ़ता है। बीजेपी किसी भी मुद्दे पर नीतीश की ये मांग मानने वाली नहीं है। इसके चलते नीतीश ने माहौल हल्का करने के लिए इस तरह के कदम उठाए हैं। बीजेपी चाहती है कि राज्य में उसे ज्यादा विधानसभा सीटें मिलने के बाद मंत्रिमंडल में भी विस्तार मिले और बराबरी की बात तो हो ही नहीं सकती क्योंकि बीजेपी, जेडीयू से विधानसभा में कहीं ज्यादा आगे है।
बीजेपी की ये बात काफी हद तक सही भी है। राज्य में उसके दम पर ही एनडीए सरकार बनी है नीतीश की छवि और जेडीयू ने तो एनडीए का खेल बिगाड़ ही दिया था पर बीजेपी ने सब संभाल लिया, लेकिन नीतीश कुमार ने फिर सत्ता लोलुपता दिखा दी है। जो नीतीश कुमार कल तक सीएम पद की कुर्सी कम सीटें आने पर नैतिकता की नौटंकी के नाम पर किसी और को देने को आतुर थे, वो अब मंत्रियों की संख्याओं को लेकर अपना रंग दिखा रहे हैं, लेकिन उनके इस रंग को फीका करने में बीजेपी ने ज्यादा वक्त नहीं लगाया और दृढ़ता का रेड सिग्नल दे दिया है।
इसीलिए अब नीतीश को मंत्रिमंडल विस्तार न केवल टालना पड़ा है बल्कि अभी उन्हें बीजेपी की सारी बातें माननी पड़ेगी, क्योंकि बीजेपी अब बैकफुट पर जाने वाली नहीं है, वो फ्रंटफुट पर खेलते हुए नीतीश कुमार को प्रतिदिन चुनौतियों की नई बाउंसर गेंद फेकेगी।