अपने पुराने कैबिनेट की वापसी चाहते हैं नीतीश कुमार, पर इस बार बीजेपी छोटे भाई की नहीं बड़े भाई की भूमिका में है

नीतीश बाबू, हैसियत भूले-बिसरे नेताओं से मिलने से नहीं बढ़ेगी, जनता से मिलिये!

बिहार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने हो, लेकिन इस बार उनका रसूख काफी कम हो चुका है। इस बार JDU के एनडीए में भाजपा से न सिर्फ कम सीटें हैं, अपितु पूरे बिहार में वह सीटों के मामले में 43 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर है। इसलिए जब रविवार को वे अपने पुराने मित्र नरेंद्र सिंह से एक रिश्तेदार के यहाँ हुए विवाह पर मिले, तो संकेत स्पष्ट था – नीतीश अपना पुराना कद पाने की यात्रा पे निकल चुके हैं।

बता दें कि नीतीश कुमार और नरेंद्र सिंह की मित्रता काफी घनिष्ठ है और ये जेपी आंदोलन के समय से व्याप्त हैं। नरेंद्र सिंह 2005 में रामविलास पासवान के लोक जनशक्ति पार्टी के राजकीय अध्यक्ष थे, जिन्होंने एलजेपी में फूट डलवाई, ताकि नीतीश कुमार को सरकार बनाने का मौका मिले, और इसीलिए उन्हें इनाम स्वरूप नीतीश कुमार ने अपने कैबिनेट में भी शामिल कराया, और उन्हें विधान परिषद भी भेजा। नरेंद्र सिंह 2015 तक नीतीश सरकार में मंत्री थे, लेकिन अपने आप को अलग थलग महसूस करने के कारण वे 2015 में जीतन राम मांझी सहित JDU से अलग हो गए।

अब ये थोड़ा ज्यादा लग सकता है। परंतु, जिस प्रकार से यह बैठक हुई, उसे देखके लगता नहीं कि नीतीश,नरेंद्र सिंह से केवल मित्र की हैसियत से मिलने आए थे। नरेंद्र सिंह के पुत्र और चकई विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक सुमित कुमार सिंह पहले ही एनडीए को अपना समर्थन दे रहे हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स का तो यह भी मानना है कि उक्त विवाह से एक सप्ताह पहले नीतीश कुमार की नरेंद्र सिंह से टेलीफोन पर लंबी चर्चा भी हुई थी।

और ये मुलाकात केवल नरेंद्र सिंह तक ही सीमित नहीं रही। जैसा कि TFI ने पहले रिपोर्ट किया था, पिछले हफ्ते राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, और तभी से यह अफवाह व्याप्त है कि कुशवाहा के जरिए नीतीश बाबू अपनी डूबती नैया को पार लगाना चाहते हैं।

आईएएनएस से बातचीत के दौरान कुशवाहा के पार्टी के प्रवक्ता भोला शर्मा के अनुसार, “बिहार में नए राजनीतिक समीकरण सामने आने की आशा है। हमारा एनडीए से कोई सरोकार नहीं। उपेन्द्र कुशवाहा और नीतीश कुमार ने पहले भी काम किया और यदि एनडीए हमारे उसूलों के अनुसार काम करेगी, तो हम उसका साथ अवश्य देंगे”।

बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोसपा ने एनडीए के अंतर्गत चुनाव लड़ते हुए तीन सीटों पर कब्जा जमाया, और इसीलिए उपेन्द्र कुशवाहा को एचआरडी मिनिस्ट्री [अब शिक्षा मंत्रालय] का राज्य मंत्री बनाया गया। परंतु JDU के एनडीए में पुनः आगमन से रालोसपा अलग पड़ गया और 2019 में उन्होंने एनडीए से नाता तोड़ते हुए महागठबंधन से साझेदारी की। लेकिन ये साझेदारी भी न टिक पाई और 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए रालोसपा ने AIMIM और बसपा के साथ साझेदारी में चुनाव लड़ा।

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ऐसे में कुशवाहा को पुनः आकर्षित कर नीतीश कुमार कुर्मी कुशवाहा के फॉर्मूले से अपना कद बिहार में बढ़ाना चाहते हैं, और नरेंद्र सिंह से हुई उनकी मुलाकात से स्पष्ट लगता है कि नीतीश कुमार एक बार फिर अपनी पुरानी कैबिनेट के दम पर बिहार की सत्ता में अपना पुराना स्थान प्राप्त करना चाहते हैं। हालांकि, इस बार भाजपा पहले जितनी कमजोर नहीं है और यदि नीतीश बाबू ऐसा सोच भी रहे हैं, तो ये सोच उन्हें बहुत भारी पड़ सकती है।

 

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