चीन अपने आर्थिक आंकड़े तो बढ़ा-चढ़ा कर दुनिया के सामने पेश कर रहा है पर वास्तविकता यह है कि चीन में खाद्य वस्तुओं की भारी कमी हो चुकी है। सिर्फ कमी ही नहीं बल्कि चीन के पास चावल खरीदने के लिए डॉलर भी नहीं बचे हैं, तभी उसके व्यापारी म्यांमार जैसे छोटे से देश से चावल खरीद कर उन्हें चुकाने के बजाए भाग जा रहे है। यही नहीं तीन दशक बाद चीन भारत से चावल खरीदने के लिए मजबूर हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार एक चीनी व्यापारी 2.6 अरब से अधिक kyats यानी लगभग US 2 मिलियन डॉलर के चावल खरीदने के बाद बिना मूल्य चुकाए गायब हो गया। अब म्यांमार के चावल व्यापारियों ने म्यांमार सरकार के वाणिज्य मंत्रालय और चीनी अधिकारियों से मदद की गुहार लगाई है।
रिपोर्ट के अनुसार लुओ जियानफैंग नाम का एक व्यापारी जो Zhongshang Affiliates के लिए काम करता है, उसने म्यांमार के व्यापारियों के 2.6 बिलियन से अधिक क्याट्स चावल प्राप्त किए और बिना पेमेंट किए गायब हो गया।
शान राज्य में म्यूजियम राइस होलसेल सेंटर के उपाध्यक्ष यू मिन थीन ने द इरावैड्डी को बताया कि लुओ म्यांमार के व्यापारियों से छह महीने से अधिक समय से चावल खरीद रहा था।
उन्होंने कहा कि कई स्थानीय व्यापारियों ने उनकी कंपनी का समर्थन किया क्योंकि यह अन्य चीनी कंपनियों की तुलना में अधिक कीमत पर चावल खरीदता था।
यू मिन ने बताया कि “लुओ ने कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में म्यांमार के व्यापारियों के साथ सभी समझौतों पर हस्ताक्षर किए। व्यापारियों ने लुओ पर भरोसा किया, क्योंकि उनके पास कंपनी के साथ [व्यापार करन केे] अच्छे रिकॉर्ड थे।”
इरावदी ने पाया कि लुओ का कंपनी में 20 प्रतिशत हिस्सा है, जिसका पूरा नाम युन्नान पायलट फ्री ट्रेड ज़ोन चाइना कमर्शियल फ़ूड ट्रेडिंग कंपनी लिमिटेड (CCFC) है, जबकि एक अन्य इकाई- Yunnan Pilot Free Trade Zone Zhongshang Shiye (China Industries) Company Ltd. में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
Irrawaddy अखबार ने बताया कि यह कंपनी चाइना साउथवेस्ट एंटरप्राइज कंपनी मैनेजमेंट कंपनी (Chongqing) के नियंत्रण में है, जिसके 70 प्रतिशत शेयर हैं और यह पूरी तरह से चीन के Commercial Network Construction and Development Center (CCNCC) के स्वामित्व में है।
अब इस घटना से तो यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चीन के पास एक तो खाने के लिए चावल नहीं है है ऊपर से खरीदने के लिए डॉलर भी नहीं। कुछ दिनों पहले ही चीन के तीन दशकों बाद भारत से लगभग 10000 टन चावल खरीदने की रिपोर्ट सामने आई थी। चीन चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है लेकिन वह भारत के साथ निर्यात नहीं करता था।
परन्तु अब ऐसा लग रहा कि चीन में खाने की इतनी कमी हो गई है उसे भारत से चावल आयात करना पड़ रहा है। वाकई यह चीन के लिए ऐसी स्थिति है कि उसे भारत जैसे प्रतिद्वंदी के ऊपर खाने के लिए निर्भर रहना पड़ रहा है।
वहीं म्यांमार में चावल खरीद कर पैसे ना चुकाने से यह स्पष्ट होता है कि चीन के पास डॉलर्स की भी भारी कमी है। वैसे तो चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को दुनिया के सामने ऐसी स्थिति में पेश किया है जैसे कोरोना का असर उस पर हुआ ही नहीं है या हुआ तो बेहद कम।
परन्तु सच्चाई ये है कि चीन की अर्थव्यवस्था अंदर से टूट चुकी है। जिस तरह से अन्य देशों से चीन का बहिष्कार किया है और टेक कंपनियों को नुकसान सहना पड़ा है, उससे चीन की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा है। वहीं BRI भी फेल हो रही है तथा इसमें शामिल देश चीन से कर्ज माफी का आग्रह कर रहे है। यानी चीन को इधर से भी घाटा ही हो रहा है। इससे चीनी अर्थव्यवस्था का चरमरा जाना अतिशयोक्ति नहीं है।
ऐसे में चीन का म्यांमार जैसे छोटे से देश से चावल चुरा कर भागना, चीन की मानसिकता और उसके संकट दोनो का प्रदर्शन करता है।