भारत ने सऊदी अरब के साथ अपने रिश्तों को मजबूती देने के लिए हाल ही में अपने थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाने को सऊदी अरब के दौरे पर भेजा है। सऊदी अरब भी अपने इस विशेष अतिथि के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है, यहाँ तक कि CAA और NRC का विरोध करने वालों को भी सऊदी अरब ने डिपोर्ट करने का काम किया है।
पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने धार्मिक तौर पर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया। इसके विरोध में दिल्ली और बंगाल जैसे क्षेत्रों में प्रदर्शन हुए, जिनमें से दिल्ली में हुए प्रदर्शन काफी हिंसक थे। इसी जोश में भारतीय मूल के कुछ लोगों ने सऊदी अरब में भी CAA और NRC के विरोध में प्रदर्शन किए।
परंतु इस अंधविरोध में वो एक छोटी सी बात भूल गए – सऊदी अरब जैसे खाड़ी क्षेत्र के देशों में ऐसे विरोध प्रदर्शन न सिर्फ वर्जित है, बल्कि इनमें भाग लेने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई भी होती है। ऐसे में इन प्रदर्शनकारियों को न सिर्फ हिरासत में लिया गया, बल्कि उन्हे डिपोर्ट भी किया गया।
सच कहें तो इस समय सऊदी अरब भारत जैसे देशों के साथ अपने संबंध बढ़ाने को बेहद इच्छुक है, और वह इसमें किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं आने देना चाहता। इसीलिए सऊदी अरब पिछले एक वर्ष से पाकिस्तान के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई भी कर रहा है, चाहे वो कूटनीतिक तौर पर कश्मीर के मुद्दे को नजरअंदाज करना हो, या फिर पाकिस्तान को कर्ज चुकाने के लिए विवश करना हो।
अभी हाल ही में पाकिस्तान के इमामों को जनरल नरवाने के दौरे से ऐन वक्त पहले नौकरी से निकालने की व्यवस्था सऊदी प्रशासन ने सुनिश्चित की थी। इससे स्पष्ट होता है कि सऊदी प्रशासन इस समय ऐसा कोई भी कदम नहीं उठना चाहेगी जिससे भारत को किसी प्रकार की समस्या हो।
इसके अलावा सऊदी इज़राएल से भी अपनी निकटता बढ़ा रहा है, क्योंकि वे अपने आप को एक कट्टरपंथी देश के रूप में कदापि पेश नहीं करना चाहता। ऐसे में सऊदी से CAA एवं NRC के विरोधियों को डिपोर्ट कराना न सिर्फ एक सराहनीय कदम है, बल्कि भारत की एक कूटनीतिक विजय भी।