लगभग एक महीने से चल रहा ‘किसान आंदोलन’ अब अपने अंजाम की ओर पहुँचने वाला है। जितने भी आढ़ती, उपद्रवी और अराजकतावादी किसानों के नाम पर दिल्ली के आसपास उधम मचा रहे हैं, अब उनका मुकाबला करने के लिए असली किसान सामने आए हैं। मेरठ से गाजियाबाद तक एक विशाल समर्थन यात्रा निकालते हुए इन किसानों ने वर्तमान कृषि कानूनों का समर्थन किया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हिन्द मजदूर किसान समिति ने वर्तमान कृषि कानूनों के समर्थन में एक विशाल यात्रा निकाली, जिसमें सैकड़ों की तादाद में ट्रैक्टर हजारों किसानों को लेकर गाजियाबाद के इंदिरापुरम क्षेत्र पहुंचे, जो दिल्ली से काफी निकट है। वे जाकर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपना समर्थन पत्र सौंपना चाहते थे। हालांकि इतनी बड़ी संख्या में उनका दिल्ली पहुंचना पुलिस के अनुसार संभव नहीं था, तो एक पाँच सदस्यीय दल को समर्थन पत्र कृषि मंत्री को देने हेतु भेजा गया ।
हिन्द मजदूर किसान समिति के सचिव सतीश कुमार ने कहा, “हमने केन्द्रीय मंत्री से मुलाकात और उन्हे अपना समर्थन भेजा। हमने उन्हे अपनी मांगों का एक मेमोरैन्डम भी सौंपा, जिसमें हमने ये बताया कि कैसे यह कानून वास्तव में आढ़तियों द्वारा हमारे किसान भाइयों के शोषण को खत्म करेगा। हम एमएसपी के यथावत रहने का समर्थन करते हैं और हमारी बस इतनी मांग है कि किसानों को कहीं भी अपना उत्पाद बेचने की स्वतंत्रता हो।”
जिस प्रकार से हिन्द मजदूर किसान समिति के नेतृत्व में हजारों की संख्या में किसान वर्तमान कृषि कानून का समर्थन करने पहुंचे, उससे अब ये सिद्ध हो चुका है कि वर्तमान कृषि आंदोलन और कुछ भी नहीं, बल्कि आढ़तियों और अराजकतावादियों की मिली जुड़ी खिचड़ी है, जिन्होंने दिल्ली के आसपास प्रदर्शन कर प्रशासन और आम जनता दोनों की नाक में दम करके रखा है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान कृषि आंदोलन का मुख्य उद्देश्य किसानों का हित तो कभी था ही नहीं। यदि ऐसा होता तो जो राकेश टिकैत जून में वर्तमान कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे थे, वही इसे हटाने की मांग नहीं कर रहे होते। यदि कृषि आंदोलन के भागीदार किसानों का हित चाहते , तो वे सरकार द्वारा लगभग सभी मांगें स्वीकारने पर बातचीत के लिए आगे आते, न कि भारतीय किसान यूनियन के उग्रहन दल की भांति भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देते।