दो नावों की सवारी करना संजय राउत को पड़ा भारी, मुसीबत में कोई नहीं है साथ

पत्नी को ED नोटिस मिलने पर बेबस राउत के समर्थन में नहीं आया कोई भी राजनीतिक दल

संजय

पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक धोखाधड़ी यानि PMC Bank Fraud से जुड़े एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत से पूछताछ करने के लिए समन भेजा है। हालांकि, राउत की पत्नी वर्षा ने ईडी के सामने पेश होने के लिए और वक्त मांगा है तथा 5 जनवरी तक पेश होने की बात कही है।

पीएमसी घोटाले में राज्यसभा सांसद संजय राउत की पत्नी भी संदिग्ध हैं। ऐसे में उन्हें ED ने नोटिस भेजा परंतु किसी भी पार्टी नेता चाहे वो शिव सेना का हो या NCP का, किसी का भी  बयान संजय राउत के लिए नहीं आया है।

शिवसेना के नेता तो उनसे नाराज दिखाई देते ही हैं, हैरानी तो तब तब हुई जब शरद पवार के NCP से भी उनके समर्थन में किसी प्रकार का बयान नहीं आया। यानि स्पष्ट है कोई भी संजय राउत को समर्थन नहीं दे रहा है।

यह किसी और की वजह से नहीं बल्कि उनके अपने ही बड़बोलेपन तथा दो नावों की सवारी की वजह से हुआ है। एक तरफ वे शिवसेना में रहते हुए  ही अपना एक राजनीतिक करियर एनसीपी के साथ सेफ करने में लगे हुए है। वहीं दूसरी ओर वे अब शिवसेना में रहकर उल जलूल बयानबाजी से शिवसेना की बदनामी करने पर तुले हुए हैं। कुछ दिनों पहले ही उन्होंने सामना में लिखा था, “हम चीनी सैनिकों को पीछे धकेलने में अक्षम रहे, लेकिन हमने चीनी निवेश को पीछे धकेल दिया। निवेश बंद करने के बजाए, हमें चीनी सैनिकों को लद्दाख से पीछे धकेलना चाहिए था।” हालांकि ये तो एक उदाहरण है लेकिन संजय राउत तो रोज़ ही कोई ऐसा बयान दे देते हैं।

वहीं संजय राउत शिवसेना के मुखपत्र सामना का प्रयोग अपनी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार की छवि चमकाने में कर रहें हैं न की शिव सेना की। हाल ही में उन्होंने शरद पवार का इंटरव्यू लिया था। वहीं इसमें प्रकाशित होने वाले सभी लेखों में शरद पवार की तारीफों के  पुल बांधे जाने के साथ ही उन्हें यूपीए अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की जाती है, जो दिखाता है कि संजय राउत  एनसीपी में अपनी राजनीतिक जमीन स्थापित करने की फिराक में हैं।

हालांकि, यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि संजय राउत शरद पवार की तारीफ यूं ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके पीछे उद्धव ठाकरे को सत्ता से बेदखल करने की योजना है। इसके पीछे का कारण शिवसेना के बड़बोले प्रवक्ता और उसके मुखपत्र ‘सामना’ के प्रमुख संपादक संजय राउत के वर्तमान रूखों से समझा जा सकता है। सामना में उन्होंने लिखा, “समय आ चुका है कि अब यूपीए का दायरा बढ़ाया जाए और सोनिया गांधी का स्थान एक योग्य और सशक्त नेता ले। एक कमजोर विपक्ष एक अत्याचारी सरकार का विकल्प नहीं बन सकता। बस लोगों के समर्थन की आवश्यकता है।”

इसके संकेत संजय राउत ने कुछ दिन पहले भी दिए थे, जब पार्टी के मुखपत्र सामना में उन्होंने लिखा था, “हमने नहीं कहा था कि शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बना ही दो। परंतु हमारा संपादकीय यह अवश्य कहता है कि शरद पवार ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्हें भाजपा से लेकर सभी विपक्षी पार्टियां गंभीरता से लेती है।”

परंतु इतनी तारीफ के बाद भी PMC घोटाले में संजय राउत की पत्नी का नाम आने पर शरद पवार अब उनके साथ नहीं दिखाई दे रहे हैं। शिवसेना में तो पहले से ही उनके खिलाफ रोष बढ़ा हुआ है। यानि एक साथ दो नावों की सवारी करने के कारण अब संजय राउत कहीं के नहीं रहे। न तो शिवसेना उनकी मदद के लिए सामने आई और न ही शरद पवार और NCP। दोनों ने ही संजय राउत को उनकी अपनी किस्मत पर छोड़ दिया है। ऐसे में अब यह देखना है कि संजय राउत बड़बोलेपन को छोड़ क्या कुछ कदम उठाते हैं या अभी भी अपने उलजुलूल बयान जारी रखते हैं।

 

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