किसानों के अधिकार से लेकर नक्सलियों और आतंकियों की रिहाई तक किसान आंदोलन का असली चेहरा आया सामने

जिस आंदोलन में मुख्य उद्देश्य को छोड़कर सभी चीज़ों पर चर्चा हो, हो हल्ला हो, तो आप समझ जाइए कि वह आंदोलन किसी नेक उद्देश्य से तो बिल्कुल नहीं चलाया जा रहा है। यही हाल वर्तमान में ‘किसान आंदोलन’ का भी है। कहने को दिल्ली के कई एंट्री पॉइंट्स पर डेरा डाले बैठे प्रदर्शनकारी किसानों के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं, परंतु अब धीरे-धीरे उनकी पोल खुलती जा रही है। अब इन प्रदर्शनकारियों ने ये मांग की है कि जितने भी अर्बन नक्सली और वो आरोपी दिल्ली में दंगे भड़काने के आरोप में जेल में बंद है, उन्हें तत्काल प्रभाव से रिहा किया जाए।

तथाकथित ‘किसान आंदोलन’ में हिस्सा ले रहे एक संगठन भारतीय किसान यूनियन [उग्रहन] ने कुछ अजीबोगरीब मांगें सामने रखी हैं। वे चाहते हैं कि केंद्र सरकार न सिर्फ कृषि कानून को अविलंब वापस ले, अपितु उन लोगों को भी रिहा करे, जिन्हें सरकार ने ‘झूठे आरोपों’ के अंतर्गत जेल में बंद कर रखा है।

भारतीय किसान यूनियन ने 20 से अधिक ऐसे आरोपी, जैसे वरावर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरनन गोनसालवेज़ जैसे लोगों की तस्वीरें टिकरी बॉर्डर पर लगाने का निर्णय लिया, जहां वे अभी प्रदर्शन कर रहे हैं। कई ‘मानवाधिकार संगठनों’ के भी इस प्रदर्शन में भाग लेने की उम्मीद है।

इस प्रदर्शन के पीछे का कारण बताते हुए बीकेयू [उग्रहन] के उपाध्यक्ष झण्डा सिंह जेठुके ने कहा है, “हम अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस यहां मनाएंगे, ताकि बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई जा सके। हमारे ‘किसान आंदोलन’ में इनकी रिहाई की मांग हमेशा उठाई गया है। मोदी सरकार फासीवाद थोप रही है। एक तरफ वह अंबानी और अडानी को बढ़ावा देती है, तो वहीं दूसरी ओर वह बुद्धिजीवियों और अन्य कार्यकर्ताओं को जेल में ठूस रही है। करीब दो दर्जन कार्यकर्ताओं को भीमा कोरेगांव और दिल्ली में दंगे भड़काने के आरोप में जानबूझकर जेल भेजा गया है, और हम उनकी तत्काल रिहाई की मांग कर रहे हैं”।

सच कहें तो मोदी सरकार में सबसे बढ़िया बात यह है कि उनके विरोधियों की पोल आपको उजागर नहीं करनी पड़ती, वह खुद ब खुद कर देते हैं। जिस प्रकार से टिकरी बॉर्डर के पास इन प्रदर्शनकारियों ने गौतम नवलखा, वरावर राव और यहाँ तक कि शरजील इमाम जैसे आरोपियों की तस्वीरों को खुलकर प्रदर्शित किया, वह और कुछ भी हो जाए, किसान आंदोलन तो नहीं ही हो सकता।

इसके अलावा जिस प्रकार से बीकेयू [उग्रहन] ने अपनी मांगें रखी हैं, उससे यह भी स्पष्ट होता है कि लड़ाई तो कभी किसानों के अधिकारों के लिए थी ही नहीं। यदि ये लड़ाई किसान के अधिकारों के बारे में होती, तो ये कथित किसान नेता सरकार द्वारा इनकी लगभग सभी मांगें मानने के बावजूद 12 और 14 दिसंबर को देशभर में अराजकता फैलाने की धमकियाँ नहीं दे रहे होते। ऐसे में अब केंद्र सरकार को भी सख्त रुख अपनाना चाहिए, और इन अराजकतावादियों को जड़ से ही उखाड़ देना चाहिए।

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