कुली नंबर-1 एक निहायती खराब रीमेक होने साथ-साथ बुद्धिमत्ता पर प्रहार करती है

जानिए, कैसे यह सिनेमा न सिर्फ आम लोगों के साथ खिलवाड़ करती है बल्कि गोविंदा के साथ भी नाइंसाफी करती है

कुली नंबर-1

(pc-hindustan times)

सच में, यदि मोदी जी 2021 के गणतंत्र दिवस समारोह में कुछ वीर योद्धाओं को सम्मानित करने की योजना बना रहे हैं, तो उन योद्धाओं के साथ उन्हें ऐसे लोगों को भी वीरता पुरस्कार देना चाहिए, जिन्होंने बिना पलक झपकाए मिसेज़ सीरियल किलर, सड़क 2, लक्ष्मी और अब कुली नंबर-1 जैसी फिल्में देखने का साहस किया हो।

कुली नंबर-1 का रीमेक सिर्फ गोविंदा जैसे अभिनेता की लोकप्रियता पर ही नहीं, बल्कि कॉमन सेंस, लॉजिक, और सबसे ज्यादा आम जनता पर प्रहार है, मानो वो कुछ भी बना के देंगे और आम जनता का काम है सिर्फ उस पर ताली बजाना। इस मूवी के शुरुआती 10 मिनट देखने के बाद मेरे दिमाग ने सिर्फ इतना कहा – बंद करो ये सब।

कुली नंबर-1 डेविड धवन की ही 25 वर्ष पुरानी क्लासिक का बेहद वाहियात और अधपका रीमेक है। कहानी वही पुरानी है, कि कैसे एक अमीर व्यक्ति द्वारा अपमानित होने पर कैसे एक पंडित एक रेलवे स्टेशन के कुली को उस अमीर आदमी के भावी दामाद के तौर पेश करता है। न किसी से उनसे पूछा था और न ही किसी ने दबाव डाला था, फिर भी डेविड धवन ने अपनी ही 25 वर्ष पुरानी फिल्म का कैसे बंटाधार कर दिया, ये आप सभी के सामने है। प्रोमोशन के दौरान फिल्म की टीम ने दावे किए थे कि ये फिल्म पुरानी ही फिल्म की भांति सबको हँसाएगी, परंतु अब तो कुली नंबर-1 सड़क-2 से प्रतिस्पर्धा करने लगी है कि IMDB पर सबसे खराब फिल्म कौन सी होगी।

एक होती है बुरी फिल्म, फिर होती है घटिया फिल्म, और उससे भी बुरी होती है लक्ष्मी या सड़क-2 जैसी फिल्म। लेकिन कुली नंबर-1 ने तो इन सभी उपाधियों को मीलों पीछे छोड़ दिया है। ये फिल्म कितनी ऊटपटाँग है, इसका अंदाज तो आपको शुरुआती दृश्यों में ही दिख जाता है, जहां वरुण धवन फ़्लैश से भी तेज स्पीड पर एक चलती हुई ट्रेन पे दौड़ते हैं, और फिर उसी ट्रेन से छलांग लगाकर एक बहरे बच्चे को ट्रेन से कुचले जाने से बचा भी लेते हैं।

लेकिन ये फिल्म यहीं पर नहीं रुकती। मोटे लोगों पे फब्तियाँ कसना, तोतलेपन का मज़ाक उड़ाना, पुराने एक्टरों की घटिया मिमिक्री, आप बस बोलते जाइए और कुली नंबर 1 ने कॉमेडी के नाम पर टन भर मल विसर्जन किया है। इसे देख तो एक बार को कमाल आर खान की ‘देशद्रोही’ भी मास्टरपीस लगने लगे, और ‘बागी 3’ तो ऑस्कर में जाने योग्य मटिरियल लगे। लेकिन इसके बावजूद कई ऐसे महान क्रिटिक हैं, जिन्हे यह मूवी ‘एंटेरटेनिंग’ या ‘पैसा वसूल’ लगी।

वैसे इस फिल्म से पहले गोविंदा और फिल्म से संबंधित क्रू की इस फिल्म के रीमेक के विषय पर कई बार नोक झोंक भी हो चुकी है, और एक तरह से इन फिल्मों से मानो डेविड धवन यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी वजह से गोविंदा गोविंदा बन पाए थे, गोविंदा की वजह से डेविड धवन नहीं। लेकिन जिस प्रकार से यह मूवी निकलके सामने आई है, और जो प्यार जनता ने इसपे लुटाया है, उससे हमारे पास डेविड धवन जी के लिए एक सरल सा सवाल है –क्या जरूरत थी हमपर इतना बड़ा एहसान करने की?

 

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