आज जब शुभेंदु अधिकारी भाजपा के सदस्य बन चुके हैं, तो वे भी बंगाल में अब वही भूमिका निभाने वाले हैं, जो बंगाल में शुभेंदु के अलावा मुकुल रॉय निभा रहे हैं। हाल ही में शुभेंदु अधिकारी ने अमित शाह की उपस्थिति में तृणमूल कांग्रेस का दामन छोड़ भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। उन्होंने 9 विधायकों, 1 सांसद और एक पूर्व सांसद के साथ भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। शुभेंदु अधिकारी ने भाजपा में प्रवेश करते ही अमित शाह का आभार व्यक्त किया और यह भी कहा कि ममता बनर्जी के शासन के अंत का प्रारंभ हो चुका है।
बता दें कि शुभेंदु अधिकारी भी तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वैसे ही खास माने जाते रहे हैं, जैसे किसी जमाने में मुकुल रॉय हुआ करते रहे। अब शुभेंदु के जाने से ममता को बड़ा नुकसान होना तय है और ये नुकसान और बड़ा होगा यदि अब मुकुल रॉय और शुभेंदु मिलकर मैदान मे उतरने का फैसला करें। ऐसे में अब प्रश्न ये उठता है कि शुभेंदु अधिकारी का भाजपा जॉइन करना किस प्रकार से भाजपा के लिए लाभकारी और तृणमूल कांग्रेस के लिए बड़ नुकसान सिद्ध होगा? दरअसल, शुभेंदु अधिकारी ग्राउन्ड लेवल पर तृणमूल कांग्रेस के बेहद कद्दावर नेता हैं, जिन्होंने नंदीग्राम आंदोलन में एक अहम भूमिका निभाई थी। ये नंदीग्राम और सिंगुर के ही आंदोलन थे जिनके कारण ममता बनर्जी 2011 में सत्ता में काबिज हुई थी।
शुभेंदु अधिकारी का प्रभाव बंगाल में लगभग 45 – 60 विधानसभा सीटों पर काबिज हैं, और ऐसे में वे ममता बनर्जी के लगातार तीसरी बार शासन संभालने के ख्वाबों को ध्वस्त करने की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं। बंगाल में करीब 294 विधानसभा सीटें है, और ऐसे में जिस प्रकार से शुभेंदु अधिकारी का बंगाल के पूर्वी क्षेत्र में विशेष रूप से प्रभाव है, उनका भाजपा जॉइन करना ममता बनर्जी और तृणमूल काँग्रेस के लिए बहुत हानिकारक है।
अपने सम्बोधन में शुभेंदु अधिकारी ने ममता के वंशवादी पक्ष पर भी हमला किया। ममता के बाद उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी पर स्पष्ट हमला बोला और कहा कि यदि ममता बनर्जी का मोह समाप्त नहीं हुआ तो अंत में पार्टी में ममता ही बचेंगी।
अब इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ बहुत स्पष्ट है कि तृणमूल कांग्रेस में ठीक वही नेतृत्व संकट उत्पन्न होने लगा है, जिसके कारण आज कांग्रेस देश भर में हंसी का पात्र बनी हुई है। यहां पार्टी सुप्रीमो ममता के अलावा केवल उनके भतीजे अभिषेक और उनके चुनाव संयोजक प्रशांत किशोर की चल रही है। शुभेंदु अधिकारी उन नेताओं में से है जिन्हें प्रशांत किशोर की दखलंदाज़ी बिल्कुल भी प्रिय नहीं थी, लेकिन उनके सुझाव मानो ममता सुनना ही नहीं चाहती थी।
लेकिन जब शुभेंदु ने इस तानाशाही से त्रस्त होकर पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया, तो ममता बनर्जी को अपनी भूल समझ जाई, और उन्हें रोकने के लिए खूब हाथ पाँव चलाए, और यहां तक कि बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष द्वारा उसका इस्तीफा नामंजूर भी कराया।