USCIRF भारत को पाकिस्तान,चीन और सऊदी जैसे देशों के साथ रखना चाहता था, US ST DEPT ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया

धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में हर वर्ष रिपोर्ट जारी करती है USCIRF

USCIRF

इसी वर्ष 28 अप्रैल को अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग यानि USCIRF ने हर बार की तरह भारत विरोधी रुख अपनाते हुए भारत में कथित रूप से मुस्लिमों पर हो रही हिंसा और CAA कानून पर अपनी चिंता जताई थी और साथ ही भारत को “खास चिंता वाले देशों” की सूची में डाल दिया था। USCIRF ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया था कि भारत में अल्पसंख्यकों के पास उतने ही अधिकार बचे हैं जितने कि नॉर्थ कोरिया, सऊदी अरब, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों में हैं। हालांकि, इसके करीब 7 महीने बाद अब अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेन्ट ने USCIRF की इस भारत-विरोधी रिपोर्ट को कूड़े में ड़ाल दिया है और साथ ही भारत को “Countries of Particular Concern” की सूची में भारत को शामिल करने की उसकी अपील को भी ठुकरा दिया है।

बता दें कि USCIRF अमेरिकी कांग्रेस की एक स्वतंत्र बॉडी है, जो दुनियाभर के देशों में धार्मिक आज़ादी को लेकर अमेरिकी सरकार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट सौंपती है। इस वर्ष की रिपोर्ट में USCIRF ने भारत सरकार पर योजनाबद्ध तरीके से अल्पसंख्यकों और खासकर मुस्लिमों पर अत्याचार ढहाने के आरोप लगाए थे। हालांकि, अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेन्ट ने इन दावों को खारिज कर भारत को इस लिस्ट से बाहर कर दिया है। स्टेट डिपार्टमेन्ट ने भारत को परे रख चीन, पाकिस्तान जैसे देशों को अब आधिकारिक रूप से “Countries of Particular Concern” की सूची में ड़ाल दिया है। चीन और पाकिस्तान के साथ-साथ म्यांमार, एरीट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, नॉर्थ कोरिया, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को भी इस सूची में जगह दी है।

ऐसा करके अमेरिकी सरकार ने ही USCIRF को उसकी जगह दिखाने का काम किया है, जो हर बार अपने विशेष एजेंडे के तहत दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाने का काम करती है। USCIRF की विश्वसनीयता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब अप्रैल में इस संस्था ने भारत के विरोध में जहर उगला था, तो खुद USCIRF के ही तीन सदस्यों ने उस रिपोर्ट पर अपनी आपत्ति जता दी थी।

USCIRF के तीन सदस्यों गैरी बोएर, जोह्नी मोरे और तेंजीन दोर्जी ने अपने ही पैनल की इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और कहा था कि वे इस संस्था के फैसले से सहमत नहीं हैं। कमीशन के सदस्य तेंजीन दोर्जी ने इस रिपोर्ट पर अपनी कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था- “मैं नहीं मानता कि भारत को CPC यानि खास चिंता वाले देशों की सूची में डालना चाहिए। आप भारत को नॉर्थ कोरिया और चीन के समक्ष नहीं रख सकते। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है और वहाँ पर CAA का विरोध हुआ है। विपक्षी पार्टियों और सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध किया है।”

इतना ही नहीं, अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद जब लोकसभा ने CAA के बिल को पास किया था, तो इसी USCIRF ने अमेरिकी सरकार से अमित शाह पर प्रतिबंध लगाने की अपील भी की थी। संस्था ने तब कहा था “अगर CAB दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो अमेरिकी सरकार को गृहमंत्री अमित शाह और मुख्य नेतृत्व के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए”।

USCIRF का भारत-विरोध कोई नयी बात नहीं है और भारत-विरोध के लिए खुद भारत सरकार इस संस्था को कई बार लताड़ चुकी है। हालांकि, भारत सरकार के बाद अब खुद अमेरिकी सरकार ने इस संस्था को उसकी औकात दिखा दी है। अमेरिका-भारत के रिश्तों में तनाव पैदा करने की कोशिशों में जुटी इस संस्था को एजेंडे अथवा पक्षपात से ज़्यादा तथ्यों पर ध्यान लगाने की आवश्यकता है।

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