इन दिनों ग्रेटर हैदराबाद नगर महापालिका के चुनाव काफी सुर्खियों में है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि एक स्थानीय चुनाव को राष्ट्रीय स्तर पर इतना अधिक महत्व दिया गया है। लेकिन इसमें अगर किसी स्थान ने लोगों का ध्यान सबसे अधिक खींचा है, तो वह है हैदराबाद का भाग्यलक्ष्मी मंदिर, जो न केवल सनातन संस्कृति के एक अहम प्रतीक के तौर पर उभर कर सामने आ रहा है, बल्कि AIMIM और टीआरएस जैसी पार्टियों के लिए किसी सरदर्द से कम भी नहीं है।
पर ये भाग्यलक्ष्मी मंदिर है क्या, और क्यों इसे इतना अहम माना जा रहा है? भाग्यलक्ष्मी मंदिर हैदराबाद में स्थित एक छोटा, पर अहम मंदिर है, जो 1960 के दशक से ही हैदराबाद के प्रसिद्ध चारमीनार के दक्षिणी मीनार के पास स्थित है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर का नाम हैदराबाद के वास्तविक नाम भाग्यनगर से मिलता है। सिकंदराबाद से भाजपा सांसद एवं गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी का मानना है कि यह मंदिर तब से उस स्थान पर है, जब चारमीनार का निर्माण भी नहीं हुआ था, यानि 1591 से भी पहले से इस मंदिर का अस्तित्व था।
तो ये मंदिर आज इतना अहम क्यों हो गया है? दरअसल भाजपा ग्रेटर हैदराबाद नगर महापालिका चुनाव के जरिए तेलंगाना में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, और इसके लिए उन्होंने आक्रामक हिन्दुत्व नीति का सहारा लिया है। इसीलिए पिछले कुछ दिनों से भाजपा के राष्ट्रीय नेता, विशेषकर देश के गृह मंत्री अमित शाह ने भी हैदराबाद का दौरा किया है, और प्रमुख रूप से भाग्यलक्ष्मी मंदिर में भी अपना शीश नवाया है। भाजपा नेताओं ने AIMIM और तेलंगाना राष्ट्र समिति जैसी पार्टियों को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और राज्य में निष्क्रिय कानून व्यवस्था के लिए भी आड़े हाथों लिया।
इतना ही नहीं, जब बड़बोले नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने तेलुगु समुदाय का गौरव माने जाने वाले पी वी नरसिम्हा राव और एन टी रामा राव के समाधि स्थलों को ध्वस्त करने की धमकी दी, तो भाजपा के राज्य अध्यक्ष बी संजय कुमार ने प्रत्युत्तर में यह भी कहा कि वे इन स्थलों को हाथ लगा के भी देखे, यदि आवश्यकता पड़ी तो भाजपा के कार्यकर्ता AIMIM का मुख्यालय ध्वस्त करने से भी नहीं हिचकिचाएंगे।
परंतु बात केवल यहीं पे नहीं रुकी। जब योगी आदित्यनाथ ने हैदराबाद का दौरा किया, और उनसे पूछा गया कि क्या इलाहाबाद के तर्ज पर हैदराबाद का भी नाम बदला जा सकता है, तो उन्होंने कहा क्यों नहीं? समय आने पर हैदराबाद का भी नाम भाग्यनगर हो सकता है। ऐसे में भाग्यलक्ष्मी मंदिर सनातन संस्कृति का वो प्रतीक है, जो समय आने पर न केवल भाजपा के लिए वही काम कर सकता है जो अयोध्या की श्री राम जन्मभूमि परिसर ने किया था, बल्कि इसके साथ ही साथ भाजपा के लिए दक्षिण भारत के द्वार भी आधिकारिक तौर पर खोल सकता है।