देश में पिछले साल भर से अराजकतावादी आंदोलनों का दौर है। पहले सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर शाहीनबाग का कट्टर इस्लामिक आंदोलन हुआ और अब कृषि कानूनों पर किसानों की आक्रमकता में भी खिलाफत केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की ही हो रही है। ऐसे में कुछ कट्टरपंथियों को लग रहा था कि केंद्र सरकार और गृहमंत्री अमित शाह बैकफुट पर हैं और वो ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे, जिससे उनकी सरकार की छवि खराब हो; लेकिन मोदी सरकार अपने एजेंडे से पीछे हटने वाली नहीं है। आरटीआई से मिली जानकारी बताती है कि जनवरी 2021 से देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम प्रभावी होगा। ये केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा आलोचनाओं के बावजूद उठाया गया सबसे बड़ा कदम होगा, जो कि बीजेपी के कोर एजेंडे में शामिल है।
पिछले साल जब देश की संसद द्वारा पारित नागिरकता संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने हस्ताक्षर कर इसे कानूनी मान्यता दी, तो पूरे समुदाय विशेष ने जमकर उत्पात मचाया था। कई जगह तो हिंसा भी भड़की थी। देश ने शाहीन बाग जैसे आंदोलन को देखा, जिसमें बीच सड़क पर अराजकता फैलाई गई। ऐसा ही क़ृषि कानूनों के मुद्दों पर भी हो रहा है। दिल्ली की सीमाओं पर राजनीतिक भ्रमों के शिकार हुए पंजाब-हरियाणा के कुछ किसान आंदोलन कर रहे हैं जिसे कुछ खालिस्तानी असामाजिक तत्वों ने हाईजैक भी कर लिया है। ये लोग सरकार को कानून वापस लेने की चुनौती दे रहे हैं। दोनों ही आंदोलन अराजकता के मामले में समान हैं।
ऐसे में इन अराजकतावादी लोगों को ये लग रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आंदोलनों से बहुत ज्यादा घबरा गई है और इसीलिए अब देश में एनआरसी-सीएए की कोई बात नहीं हो रही है; पर ऐसा नहीं है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आरटीआई (सूचना के अधिकार) के जवाब में बताया, केंद्र सरकार सीएए की नियमावली तैयार कर रही है जिसके लागू होने की अधिसूचना जनवरी में जारी हो सकती है। जाहिर है कि बीजेपी शासित केन्द्र सरकार ने अपने कोर मुद्दों को अनेकों अराजकतावादी आंदोलनों के बावजूद नजरंदाज नहीं किया है।
मोदी सरकार किसी भी तरह के फर्जी आंदोलनों के कारण बैकफुट पर आने वाली नहीं है। यही नहीं, कुछ दिन पहले ही पश्चिम बंगाल में बीजेपी के चुनाव प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने भी कहा था, “नागरिकता (संशोधन) अधिनियम अगले साल जनवरी से लागू होने की संभावना है और अगले साल जनवरी से सीएए के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना शुरू हो जाएगा।”
आने वाले 2021 में ऐसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे जहां सीएए-एनआरसी का मुद्दा बेहद अहम है, जिनमें असम और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। ऐसे में बीजेपी और अमित शाह इन मुद्दों को कोर चुनावी एजेंडे के तहत भी इस्तेमाल करेंगे। असम और पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और म्यांमार के शरणार्थियों के अलावा घुसपैठियों ने भी कब्जा किया है जिन्हें भगाने का बीड़ा मोदी सरकार ने अपने कांधे पर उठा रखा है। ऐसे में बीजेपी सीएए के जरिए गैर-इस्लामिक लोगों को भारत में नागरिकता देने की बात करती रही है और सीएए इसमें सहायक है। बीजेपी के लिए बंगाल और असम दोनों ही विधानसभा चुनावों में सीएए बड़ी भूमिका निभाने वाला है।
इसके अलावा इस नागिरकता संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद तथाकथित अराजकतावादी वामपंथियों, बुद्धिजीवियों, इस्लामिक कट्टरता फैलाने वालों को भी एक सख्त संदेश जाएगा, जिन्हें ये भ्रम था कि केन्द्र सरकार उनके अनैतिक आंदोलनों से घबरा गई है और इसीलिए अब सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दों पर बात नहीं कर रही है।
बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अंतर्गत कार्य करने वाले केंद्रीय गृहमंत्रालय ने आरटीआई के एक जवाब में साफ कर दिया है कि बीजेपी के चाणक्य शांत नहीं बैठे हैं; वो इस मुद्दे पर अपनी रूप रेखा तैयार कर चुके हैं और उन्हें किसी भी आंदोलन से फर्क नहीं पड़ता है।