‘कृषि सुधार की तरफ एक कदम’, IMF ने मोदी सरकार के कृषि कानून को सराहा

अराजक किसानों को IMF की बात को सुनना चाहिए!

आईएमएफ

जब बदलाव बड़ा होता है तो नौटंकियां होना तो लाजमी सी बात है। कृषि कानूनों को लेकर भी अब ये कहा जाने लगा है क्योंकि चंद लोग इस मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ हैं तो देश का बड़ा किसान वर्ग इस कानून का समर्थन कर रहा है। मोदी सरकार को कृषि कानूनों के मुद्दे पर अब एक और बड़ी मजबूती आईएमएफ ने दी है क्योंकि उसने भारत के इस नए कृषि कानूनों के सुधारों का स्वागत किया है, साथ ही कहा कि भारत के विकास में ये कानून बेहद ही सहायक होने वाले हैं। वहीं जहां तक बात रही खालिस्तान समर्थित इन कथित किसान आंदोलनकारियों की… तो इनके पल्ले अब कुछ भी सकारात्मक पड़ ही नहीं सकता है।

भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर कोरोनावायरस के कारण पूरी दुनिया डरी हुई थी, लेकिन अब हर तरफ बस भारत की शाबाशियों का शोर है। इसमें अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी शामिल हैं। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के डायरेक्‍टर ऑफ कम्‍युनिकेशंस गेरी राइस ने कृषि कानूनों को लेकर भी भारत की सराहना की है। उन्होंने कहा, “नए कानून बिचौलियों की भूमिका को कम करेंगे और दक्षता को बढ़ाएंगे। हमारा मानना है कि कृषि कानूनों से भारत के कृषि क्षेत्र में महत्‍वपूर्ण सुधार होगा और इससे किसानों को बहुत फायदा होगा।”

इसके साथ ही आईएमएफ अधिकारी ने ये भी कहा है कि इस नए संशोधित कानूनों के थोक क्रियान्वयन से किसानों को फायदा होगा। गेरी बोले, “इन कानूनों की वजह से किसान सीधे विक्रेताओं से संपर्क करने में सक्षम बनेंगे, दलालों की भूमिका कम होने से किसानों को अधिक फायदा होगा और इससे ग्रामीण विकास को समर्थन और अधिक बल  मिलेगा।” हालांकि, किसानों के आंदोलन को लेकर उन्होंने कहा कि भारतीय सरकार को किसानों के अधिकार सुनिश्चित करते हुए काम करना चाहिए। इसके साथ ही आईएमएफ ने भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से आगे बढ़ने के संकेत दिए हैं और कहा है कि भारत ने इन सभी परिस्थितियों से बख़ूबी खुद को संभाला रखा है।

इसे अजीबो-गरीब बात ही कहेंगे न… कि आईएमएफ जैसी संस्थाएं इस कृषि कानूनों के मुद्दे पर देश की मोदी सरकार की तारीफों के पुल बांधे रही हैं तो वहीं भारत के ही किसान अपने साथ होने वाले भले को नहीं पहचान पा रहे हैं। वो इसलिए क्योंकि कुछ विपक्षी पार्टियों ने उन्हें अपने राजनैतिक एजेंडे के लिए भ्रमित कर रखा है जिसके चलते ये लोग दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन में जुटे हुए हैं। एक तरफ जहां कांग्रेस कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर पूरे देश के सभी राज्यपालों के आवास का घेराव करने का राजनीतिक आंदोलन कर रही है तो दूसरी ओर उसी कृषि कानूनों के समर्थन में आईएमएफ जैसी संस्थाओं के लोग बयान देकर मोदी सरकार की प्रशंसा कर रहे हैं।

जाहिर है कि ये कृषि कानूनों का मसला राजनीतिक है क्योंकि कांग्रेस ने ही इसमें सबसे ज्यादा आग लगा रखी है। जहां तक बात रही किसानों के हितों की, तो आईएमएफ के प्रतिनिधि ने अपने एक छोटे से बयान में ही बता दिया है कि ये कृषि कानून भारत के लिए एक बड़े आर्थिक और कृषि सुधार के रूप में जाने जाएंगे।

Exit mobile version