वेब सीरीज रिव्यू – इंसान की सहनशक्ति और बुद्धि पर 2021 का पहला हमला है तांडव

एक राजनीतिक कहानी के नाम पर दर्शकों पर अत्याचार करती नजर आएगी ये घटिया वेब सीरीज

न्यू यॉर्क

2020 ने घर बैठे कई दुख दर्द दिए। बेताल से लेकर फोर मोर शॉट्स प्लीज़ तक कई ऐसे शो आए, जिन्हे देखकर किसी को ब्रेन कैंसर हुआ, तो किसी को अपनी आँखें सैनिटाइज़र से साफ करानी पड़ी। लोग इस उम्मीद के साथ 2021 का स्वागत किये कि चलो इस वर्ष तो कुछ अच्छा देखने को मिलेगा, पर बॉलीवुड बी लाइक ‘आइसे कैसे बबुआ’? सो आ गए लेकर एमेजॉन प्राइम पर वेब सीरीज ‘तांडव’, जिसे देखकर मेरा सबसे पहला रिएक्शन यही था  –

एमेजॉन प्राइम पर स्ट्रीम हो रहा तांडव एक राजनीतिक ड्रामा है, जिसे निर्देशित किया है अली अब्बास ज़फ़र ने, और मुख्य रोल में है सैफ अली खान, सुनील ग्रोवर, मोहम्मद जीशान अयूब और डिम्पल कपाड़िया, जिनका साथ दिया है तिग्मांशु धूलिया, कुमुद मिश्रा, कृतिका कामरा, डीनो मोरिया, गौहर खान, संध्या मृदुल जैसे कलाकारों ने। ये सीरीज आधारित हैं एक युवा नेता समर प्रताप सिंह पर, जिसके पिता और देश के प्रधानमंत्री देवकीनंदन की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। वह कैसे अपनी जिम्मेदारियों को निभाता है, किन चुनौतियों से लड़ता है और कैसे-कैसे लोग उसके विरोधी बनते हैं, ये पूरी की पूरी वेब सीरीज उसी पर आधारित है।

जो लोग यह सोच के आए थे कि तांडव कुछ कुछ ‘हाउस ऑफ कार्ड्स’ का भारतीय रीमेक होगी, या उसके जैसी एक दमदार राजनीतिक वेब सीरीज होगी, तो आपके साथ एक छोटा सा नहीं, बहुत बड़ा प्रैन्क हुआ है भैया। तांडव वेब सीरीज तांडव अवश्य मचाएगा, लेकिन आपके लॉजिक और आपके विश्वास के साथ। जब आपको राजनीतिक शो के नाम पर हिन्दू मुस्लिम, उंच नीच, देवी देवताओं का अपमान और देशद्रोही तत्वों का समर्थन ही दिखाना था तो इसका नाम तांडव ही क्यों रखा? पाताल लोक सीजन 2 ही रख देते। असल में ये JNU की विकृत राजनीति का वो महिमामंडन है, जिसे देख तो हमारे वामपंथी भाइयों की आत्मा तृप्त हो जाएगी और हमारे लिबरल भ्राताओं और बहनों को कई दिनों तक किसी सीरीज का गुणगान करने के लिए भरपूर सामग्री भी मिल जाएगी।

इस सीरीज में वही घिसा पिटा राजनीतिक फार्मूला इस्तेमाल हुआ है, जिसके लिए बॉलीवुड वर्षों से बदनाम रहा है। सत्ताधारी पिता की मृत्यु, बेटे का विदेश से लौटकर सत्ता संभालना, कुटिल रिश्तेदार, अवसरवादी पार्टी कार्यकर्ता, धूर्त पुलिसवाले, क्रूर सहायक और इन सबको चुनौती देते कुछ विद्यार्थी नेता, जो मानो राजा हरिश्चंद्र से भी ज्यादा सत्यवादी हैं। आखिर क्या सोचके अली अब्बास ज़फ़र ने इस सीरीज को बनाया है?

लेकिन ये गंदगी यहीं तक सीमित नहीं है गुरु। छात्र नेता के लिए देशद्रोह करना धर्म है, ब्राह्मणवाद से आजादी की मांग करना पुण्य का काम है, देवी देवताओं के लिए अपमानजनक भाषा बोलना अवश्यंभावी है, पुलिसवाले तो छात्रों से जबरदस्ती वन्दे मातरम बुलवाते हैं, किसी किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए अल्पसंख्यकों का झूठा एनकाऊँटर कराया जाता है, विद्यार्थियों के हौसले तोड़ने के लिए कैंपस में हमले कराए जाते हैं, और तो और पिछड़े वर्ग से होने के लिए आपका दिन रात अपमान किया जाता है। अब जिसका निर्देशक टाइगर ज़िंदा है और गुंडे जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता हो, और जिसके लेखक ने ‘आर्टिकल 15’ जैसे ‘रत्न’ जड़े हो, उनके इस महान लॉजिक को देखके आपके मन में एक सवाल अवश्य आएगा –

इस सीरीज में केवल दो बातें अच्छी निकल के आई है – एक तो सुनील ग्रोवर का अभिनय, और दूसरा इस सीरीज के शिक्षण संस्थान का नाम। बाकी अभिनेताओं ने अपनी क्षमता के अनुरूप काम किया है, लेकिन आम तौर पर हास्य कलाकारों के रोल में जिस सुनील ग्रोवर को देखते आए हैं, गुरपाल चौहान के तौर पर उन्होंने उम्दा काम किया है। हरियाणवी उनका लहजा नहीं है, लेकिन सुनील ने फिर भी एक साहसिक प्रयास किया है।

इस सीरीज की एक और अच्छी बात यह है कि इस विश्वविद्यालय का नाम JNU न होके VNU रखा, क्योंकि शायद इस सीरीज के निर्माताओं को भी पता है कि नेहरू के नाम पर वोट तो मिलते नहीं, सीरीज क्या ही चलती। लेकिन इन्हे अगर अलग रखें तो तांडव एक फीकी सीरीज है, जिसमें कुछ भी नया नहीं है, और एक समय के बाद तो आपका दिमाग भी बोल देगा –

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