ट्रम्प के जाने के बाद सहयोगी छोड़ रहे US का साथ, Biden कर रहे US के पतन का आगाज

बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका के दिन अब लदने ही वाले हैं!

ट्रम्प

(pc - cnn। com)

बाइडन का राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण अमेरिका के लिए कोई अच्छे संकेत लेकर नहीं आया है। अमेरिका का रुतबा दुनिया में वैसे ही तेजी से खत्म हो रहा था, किंतु ट्रम्प के काल में ऐसा लगने लगा था कि अमेरिका एकबार फिर दुनिया में लोकतांत्रिक धड़े का नेतृत्वकर्ता बनकर उभरेगा, लेकिन बाइडन की नीतियां यह बताती हैं कि अमेरिका पुनः अपनी साख को वैसे ही खोने की ओर बढ़ रहा है जैसा ट्रंप के पूर्व में हो रहा था।

सर्वविदित है कि अमेरिका का वैश्विक स्तर पर अब वह प्रभाव नहीं रहा है, जैसा शीतयुद्ध के समय अथवा उसके बाद अगले 20 वर्षों तक हुआ करता था। चीन का आर्थिक महाशक्ति के रूप में उत्थान, यूरोपियन यूनियन का एकजुट होना और रूस एवं यूरोपी की वैचारिक शत्रुता में आई कमी ने पहले ही दुनिया के भूराजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव किया है।

साथ ही पश्चिम एशिया में हुए फेरबदल, भारत, जापान जैसे देशों की वैश्विक मंच पर बढ़ती सक्रियता आदि सभी बदलावों का एक निश्चित परिणाम सामने है। दुनिया अब द्विध्रुवी अथवा एकध्रुवीय नहीं होकर बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखना चाहती है, जो विश्व को कम जोखिमपूर्ण, तनावमुक्त एवं स्वतंत्र माहौल दे रहा है।

ट्रम्प इन परिस्थितियों को समझ रहे थे, यही कारण था कि वे अक्सर दूसरे देशों के वैदेशिक अथवा आंतरिक मामलों में दखलंदाजी नहीं करते थे। पश्चिम एशिया से लेकर कोरियाई प्रायद्वीप तक, हर जगह, हर मोर्चे पर उनकी विदेश नीति व्यवहारिक थी।

ट्रम्प ने यह समझा कि इजराइल फिलिस्तीन समस्या का असल समाधान द्विराष्ट्र सिद्धांत न होकर, लोकतांत्रिक यहूदी राज्य के अधीन फिलिस्तीनियों का शांतिपूर्ण सहनिवास है। यही उनकी इजराइल नीति का मूल था और इसने काफी सफलता भी हासिल की। फिलिस्तीनी आतंकवाद की कमर टूट गई और अरब देश भी इसे स्वीकार करने लगे थे।

बदले में अरब देशों को भी यह लाभ मिला कि अमेरिका ने उसके सबसे बड़े शत्रु और हिजबुल्लाह जैसे संगठनों के मददगार देश, ईरान की अर्थव्यवस्था को नेस्तोनाबूद कर दिया। ईरान की बिगड़ती हालत ने उसके द्वारा समर्थित आतंकी गुटों को बैकफुट पर धकेल दिया, परिणामस्वरूप पश्चिम एशिया में ऐसे बदलाव हुए, जिसकी कल्पना 4 वर्ष पूर्व सम्भव नहीं थी।

लेकिन बाइडन ने आते ही ईरान के साथ बातचीत के संकेत दे दिये हैं। उन्होंने सऊदी और उसके सहयोगियों को हथियारों की आपूर्ति रोकने का मन बनाया है और ट्रम्प की इजराइल नीति को पलटने का संकेत दिया है। यही कारण है कि अब अमेरिकी नेतृत्व उसके पश्चिम एशियाई सहयोगियों के लिए अप्रासंगिक हो गया है।

यही स्थिति यूरोप की है। नॉर्ड स्ट्रीम योजना को लेकर अमेरिका और EU का विवाद बढ़ने वाला है। नॉर्ड स्ट्रीम योजना के तहत रूस द्वारा EU के देशों को नेचुरल गैस की आपूर्ति की जाती है। बाइडन प्रशासन इस योजना पर प्रतिबंध लगाना चाहता है, जबकि गैस आपूर्ति यूरोपीय उद्योगों के लिए बहुत आवश्यक है। ऐसे में EU नहीं चाहेगा कि बाइडन की रूस विरोध की सनक, उनकी आर्थिक हानि का कारण बने। आज रूस अमेरिका अथवा यूरोप के लिए वैसा खतरा नहीं है जैसा शीतयुद्ध के समय था।

एक ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के नाम पर बाइडन चीन से ट्रेड वॉर खत्म करने के पक्ष में हैं। उनके शुरुआती फैसले यह बताते हैं कि वे अमेरिकी 5G सेक्टर को भी चीन के लिए खोलने को तैयार हैं, जबकि सभी जानते हैं कि चीन लोकतांत्रिक विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यहाँ तक कि अब EU भी चीन को अपने 5G योजना में घुसपैठ नहीं करने देना चाहता। किंतु बाइडन चीन जैसे वास्तविक शत्रु से सहयोग करना चाहते हैं जबकि वे रूस को अनावश्यक रूप से निशाना बनाए हुए हैं।

बाइडन का चीन प्रेम जल्द ही भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को भी अमेरिका से अलग राह अपनाने पर मजबूर करेगा। पहले ही तीनों देश एक ऐसी योजना पर कार्य कर रहे हैं जिसमें वे बिना अमेरिकी सहयोग के, चीन के विरुद्ध आर्थिक अलायंस बना रहे हैं। चीन से सप्लाई चेन को हटाने के लिए यह योजना शिंजो आबे के समय प्रस्तावित की गई थी। आबे एक दूरदर्शी नेता थे, सम्भवतः यही कारण था कि बाइडन के चुनाव प्रचार के दौरान, उनकी घोषणाओं को ध्यान में रखते हुए ही, आबे ने अपने क्वाड सहयोगियों को एक ऐसा प्रस्ताव दिया, जो अमेरिका प्रभाव से मुक्त हो।

भारत ने पहले ही फ्रांस को इंडो पैसिफिक की राजनीति में शामिल करना शुरू कर दिया है। यदि रूस पर अमेरिकी दबाव बढ़ता है तो ऐसे में भारत और जापान यह कोशिश कर सकते हैं कि अमेरिकी दबाव से रूस की अर्थव्यवस्था को बचाने में सहयोग दें, बदले में उसे हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय सहयोग हेतु आमंत्रित करें। दक्षिण कोरिया ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह नहीं चाहता कि बाइडन ट्रम्प की नीति में बदलाव करें।

ट्रम्प के समय अमेरिका चीन विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। उस समय बाइडन और डेमोक्रेट पार्टी ट्रम्प पर आरोप लगाते थे कि वे अमेरिका को वैश्विक स्तर पर अलग थलग कर रहे हैं। लेकिन अब जो हालात दिख रहे हैं उसमें यह लगता है कि बाइडन की विदेश नीति अमेरिका के प्रभाव को उसके इतिहास के सबसे बुरे दौर में ले जाएगी।

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