‘अस्सी नी कित्ता’ उत्पात मचाने के बाद अब नेताओं को अपने संप्रदाय और किसानों की इमेज की चिंता हो रही है

दिल्ली को अस्थिर करने के बाद अब कार्रवाई के डर से उपद्रवी माफी मांगते फिर रहे हैं!

किसानों

(pc- tv9 )

अजीब चलन है, पहले हजारों लोग हिंसात्मक घटना को अंजाम देते हैं और फिर एक हुजूम आकर उस मामले पर माफी की नौटंकी करता है। तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली में गणतंत्र दिवस को हुई हिंसक घटना के बाद इस मुद्दे पर किसानों से लेकर सभी अलग-अलग समूह माफी मांग रहे हैं। उनका कहना है कि जो कुछ हुआ वो गलत था और अपराधियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। असल में इनकी नीयत माफी मांगने वाली नहीं, बल्कि किसानों और सिखों के खिलाफ बनी नकारात्मक छवि को सुधारने की है और इसीलिए ये लोग अब माफी मांगने की भावनात्मक शातिर चाल चल रहे हैं।

ट्रैक्टर रैली के दौरान राजधानी में हुई हिंसा को लेकर अब जब तथाकथित किसानों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है तो किसानों के नेता लाल किले की घटना से लेकर पुलिस के साथ हुई हिंसा को गलत बताने में लगे हैं। साथ ही निशान साहब के धार्मिक झंडे को लाल किले पर लगाने के बाद किसानों और सिखों के प्रति भी एक नकारात्मक माहौल है। ऐसे में किसान नेता समेत कई संगठन माफी की नौंटंकी कर रहे हैं। किसान नेता युद्धवीर सिंह ने हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस से माफी मांगी और कहा है कि वो इसके कारण काफी शर्मिंदा हैं।

इसी तरह किसान नेता शिव कुमार कक्का ने कहा था कि किसान आंदोलन में ट्रैक्टर परेड के दौरान कुछ उपद्रवी घुस आए थे, जिनपर नजर रखनी चाहिए थी, लेकिन किसान संगठन चूक गए। ये लोग अपने आप को अब पीड़ित बताने की नौटंकी करने लगे हैं। भारतीय किसान मजदूर संघ के नेता वीएम सिंह ने इस मुद्दे पर कहा कि इस पूरी घटना के लिए भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत जिम्मेदार हैं। वो हिंसा की घटनाओं पर शर्मिंदगी जाहिर कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमारी नीयत इस तरह की कभी थी ही नहीं। इसके साथ ही हरियाण की 15 ग्राम पंचायतों ने दिल्ली-जयपुर हाईवे पर आंदोलन कर रहे किसानों से 24 घंटे के अंदर जमीन खाली करने की बात कही है क्योंकि उन्होंने इस मुद्दे पर ये समझ लिया है कि किसानों का समर्थन करने से उनकी छवि भी खराब हो रही है।

दिल्ली पुलिस द्वारा किसान नेताओं पर कार्रवाई के साथ ही किसान नेताओं की एकता हवा हो गई है ये सभी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, और दिल्ली की हिंसा का सारा ठीकरा पंजाब से आए किसानों पर ही फोड़ रहे हैं। इनका कहना है कि इन संगठन के किसानों ने ही रैली के सारे नियम कानून तोड़े थे। इन किसानों को पता है कि वो लोग जनता और देश के अन्य किसानों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। इसलिए इस मुद्दे पर ये सभी किसान नेता खुद को दूध का धुला बताकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की नीति अपना रहे है।

किसान नेता अपनी छवि को बचाने के लिए एक दूसरे की पोल तो खोल रहे हैं लेकिन लाल किले से लेकर पूरी राजधानी में इनके नेतृत्व में तथाकथित किसानों और दंगाईयों ने जो उत्पात मचाया था वो देश की जनता कभी नहीं भूलेगी। इसीलिए ये लोग अपने मुंह से चाहे जितनी माफी मांगते रहें, लेकिन इन सभी के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूर होगी, क्योंकि माफी मांगने की नौटंकी करना अब इनके लिए व्यर्थ है।

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