इजरायल के खिलाफ जो काम ओबामा ने शुरू किया था उसे बाइडन पूरा काज रहे, और Netanyahu इससे खुश नहीं

PHOTO: GALI TIBBON/AGENCE FRANCE-PRESSE/GETTY IMAGES

अमेरिका में सत्ता बदलने के बाद जब से बाइडन राष्ट्रपति पद पर बैठे हैं तब से वह ट्रंप के फैसलों को पूर्ववत करने में ही लगे हुए हैं। जिस तरह से वह एक बाद एक धड़ाधड फैसले ले रहे हैं उससे ऐसा लग रहा है कि वह जल्द ही ईरान के साथ एक बार फिर से ओबामा के समया का परमाणु समझौता लागू न कर दें जिसे ट्रंप ने वर्ष 2018 में तोड़ दिया था। अगर वह ऐसा करते हैं तो अमेरिका का सबसे विश्वसनीय साथी इजरायल भी नाराज हो जायेगा। बाइडन के एक के बाद एक फैसलों को देखते हुए इजरायल अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी MOSSAD के प्रमुख को नए अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने और ईरान मामले पर अपनी बात रखने के लिए भेजेगा। रिपोर्ट के अनुसार इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान परमाणु समझौते के किसी भी नए फैसले की आशंका को देखते हुए MOSSAD प्रमुख योसी कोहेन को भेजेंगे।

अमेरिका में, कोहेन और उनकी टीम ईरान के परमाणु कार्यक्रम की प्रगति पर इज़रायल द्वारा एकत्रित की गई सभी सूचनाओं को बाइडन प्रशासन से साझा कर सकता है। यही नहीं अगर बाइडन प्रशासन 2015 के सौदे को फिर से लाने जा रहा है तो इजरायल यह सुनिश्चित कर सकता है कि तेहरान पर अधिक कठोर नियम लागू हो जिससे वह परमाणु हथियार प्राप्त न कर सके।

टीवी रिपोर्ट में कहा गया है कि कोहेन इजरायल के पक्ष को बाइडन के सामने रखेंगे जिसे ईरानी के साथ Joint Comprehensive Plan of Action को फिर से लागू करने की स्थिति में उन शर्तों को शामिल किया जाये। इसमें कोई संदेह नहीं है नेतन्याहू शुरू से ही इस परमाणु सौदे के खिलाफ पैरवी कर चुके हैं। यही नहीं उन्होंने सफलतापूर्वक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को इस सौदे से पीछे हटने के लिए प्रोत्साहित किया था। अब बाइडन से आग्रह किया है कि वे इसे फिर से जारी करने के अपने घोषित इरादे पर पुनर्विचार करें।

टीवी रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल को आशंका है कि ओबामा प्रशासन द्वारा किये गए इस परमाणु समझौते के पुनर्जीवित होने की आशंका है जिससे ईरान यूरेनियम का भंडार जमा करने में सक्षम भी होगा और उसे वित्तीय राहत दी जाएगी जो कि इस देश की टूटती अर्थव्यवस्था को ठीक में सक्षम बनाएगी। यानि स्पष्ट है कि ओबामा द्वारा शुरू किये गए इस सौदे के लागू होने से इजरायल खुश तो नहीं था लेकिन अब एक बार फिर से बाइडन प्रशासन उसे लागू कर इजरायल को नाराज करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इजरायल को यह बात पता है कि अगर ईरान एक बार फिर से मजबूत होता है तो यह इजरायल के लिए ही घातक साबित होगा। ऐसे में इजरायल का नाराज होना लाजमी है। यानि इजरायल को नाराज करने का जो काम ओबामा ने शुरू किया था उसे बाइडन समाप्त करने जा रहे हैं।

बता दें कि जुलाई 2015 में बराक ओबामा जब अमेरिकी राष्‍ट्रपति तब अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के साथ मिलकर ईरान ने परमाणु समझौता किया था। लंबे समय से कुटनीतिक पहल के बाद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने वाले इस परमाणु समझौते पर बात बनी थी। परन्तु अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2018 में ईरान के साथ परमाणु समझौते को खत्म करने का ऐलान कर दिया था। अब बाइडन प्रशासन जिस तरह तरह से ट्रंप के फैसलों को बदल रहा है उससे इस परमाणु डील के दोबारा लागू होने की बात शुरू हो गयी है।

पशिमी एशिया में, इजरायल, सउदी अरब, ईरान, फिलिस्तीन तथा कई अन्य देशों के प्रति अमेरिका की नीतियों में एक नाटकीय परिवर्तन होने की आशंका दिखाई दे रही है। कई फैसलों जैसे ईरान पर ट्रम्प द्वारा लगाए गए प्रतिबंध, फिलीस्तीनियों को ट्रम्प की सहायता बंद करना और इज़रायल की वेस्ट बैंक के कब्जे को मान्यता, इजरायल-अरब देशों के बीच शांति समझौतों पर भी असर पड़ सकता है। अगर कुछ ऐसा होता है तो सबसे अधिक प्रभावित इजरायल ही होगा। अगर इजरायल अमेरिका से नाराज हो गया तो यह अमेरिका से लिए कितना घातक होगा उसे भी नहीं पता है। अब अपनी इसी नाराजगी कहें या चिंता कहें, उसे बताने के लिए इजरायली प्रधानमंत्री नेतान्याहू अपने MOSSAD प्रमुख को अमेरिका भेजने की तयारी कर रहे हैं।

Exit mobile version