बाइडन की खराब विदेश नीति से Indo-Pacific से लेकर EU तक से US के सम्बन्धों में पैदा होगी दरार

बाइडन का उठाया गया हर एक कदम अमेरिका को वैश्विक स्तर पर दो कदम पीछे ले जाएगा!

बाइडन

(pc- ABC)

जो बाइडन को राष्ट्रपति बने अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ होगा, परंतु अभी से उन्हे अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ये इसलिए नहीं है क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प की विदेश नीति असफल रही, परंतु इसलिए क्योंकि जो बाइडन वैश्विक समीकरण को समझ पाने में असहज दिख रहे हैं, जिसका फायदा अब यूरोपीय संघ उठा सकता है।

अपने पूरे प्रचार अभियान के दौरान बाइडन ने ट्रम्प की विदेश नीति पर उँगलियाँ उठाई। उनके अनुसार ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका के विदेशी संबंध रसातल में पहुँच चुके हैं। लेकिन बाइडन जब से राष्ट्रपति बने हैं, उनकी विदेश नीति तो कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। उनके लिए अब भी रूस से बड़ा कोई खतरा नहीं है। उनके लिए चीन से बढ़ता खतरा कोई मायने नहीं रखता, जो उनके विदेशी नीति में भी स्पष्ट दिखाई देता है।

वो कैसे? दरअसल, बाइडन के लंबे चौड़े वादों के बीच यूरोपीय संघ और चीन के बीच एक विशाल इनवेस्टमेंट डील पर हस्ताक्षर हुआ है। जो बाइडन केवल बोलते रह गए और EU ने चीन के साथ समझौता कर लिया। 

यूरोपीय संघ ने चीन को इसलिए चुना ताकि वह आर्थिक तौर पर किसी एक देश पर निर्भर न हो। उसने एक तरह से अमेरिका को उल्लू बनाते हुए अपना काम निकलवा लिया, NATO में अमेरिकी धन का आदान प्रदान होता रहा, और EU ने चीन के साथ अपनी बहुप्रतीक्षित डील पर हस्ताक्षर कर लिया। EU की इस स्वार्थपूर्ण नीति के विरुद्ध ट्रम्प काफी मुखर थे, लेकिन बाइडन की गोलमोल नीतियों ने उलटे EU को भी उसके विरुद्ध खड़ा कर दिया।

लेकिन बाइडन की नीतियों को देखते हुए ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि वे अपनी विदेशी नीतियों को लेकर गंभीर है। सत्ता ग्रहण करते ही बाइडन ने अपनी प्रमुख नीतियों में से चीन की चुनौती को बाहर कर दिया, जो अब विदेश विभाग के वेबसाइट पर भी स्पष्ट दिखता है। इसके साथ ही न सिर्फ चीन के विरुद्ध स्थापित QUAD समूह ठंडे बस्ते में जाता दिखाई दे रहा है, बल्कि पश्चिमी एशिया के साथ स्थापित अब्राहम अकॉर्ड भी रसातल में जाते दिखाई दे रहे हैं।

अमेरिका एक एक करके अपने साझेदार खोता जा रहा है। लेकिन ट्रम्प से अपनी घृणा के चलते बाइडन अपने ही देश की छवि और विदेश नीति को तार तार करने में जुट गए हैं। तुष्टीकरण की जिस रणनीति के बल पर बाइडन वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ना चाहते थे, उलटे वही नीति उन्हें धीरे धीरे अपने साझेदारों से अलग थलग करने में लग चुकी है।

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