पोक्सो एक्ट के फैसलों को लेकर चर्चा में आई बोम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला का मामला अब नया मोड़ ले रहा है। एक के बाद एक दो विवादित फैसले सुनाने के बाद पुष्पा गनेदीवाला अब आम जनता के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की नजर में भी आ गयी हैं। जनता के बीच उनकी आलोचना तो हो ही रही थी अब कॉलेजियम ने उन्हें स्थाई जज बनाने के फैसले को होल्ड पर डाल दिया है। अगर उनके कार्यकाल का विस्तार करने का फैसला नहीं किया जाएगा, तो वह जज नहीं रह जाएंगी। यह विडम्बना है कि जहाँ कानून में प्रावधान को कड़े करना चाहिए तो वहीं उस कानून के आधार पर फैसले लेने वाले जज को निशाना बनाया जा रहा है।
दरअसल, प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पोक्सो) अधिनियम के तहत बच्चों पर यौन हमले के मामले पर उनके दो विवादास्पद फैसलों को देखते हुए कोलेजियम ने ये कदम उठाया है। 12 फरवरी को अतिरक्त न्यायधीश के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हो जायेगा। संवैधानिक प्रावधानों के तहत, एक अतिरिक्त न्यायाधीश को अधिकतम दो साल के लिए नियुक्त किया जा सकता है, जबकि स्थायी न्यायाधीशों को 62 वर्ष की आयु तक नियुक्त किया जाता है।
19 जवनरी को एक फैसले में, जस्टिस पुष्पा ने कहा था कि एक नाबालिग को उसके कपड़ों को हटाए बिना यौन उत्पीड़न करना सेक्सुअल असॉल्ट नहीं बल्कि आईपीसी के तहत केवल छेड़छाड़ का मामला है। उन्होंने कहा था कि यह यौन हमला तब कहा जायेगा, जब आरोपी पीड़ित के कपड़े हटाकर या कपड़ों में हाथ डालकर स्किन-टू-स्किन फिजिकल कॉन्टैक्ट करे। उनके इस फैसले के बाद सोशल मिडिया पर खूब हंगामा हुआ था। आम जनता से लेकर सभी ने इस फैसले के कड़ी निंदा की थी। हालांकि, तब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया जहां CJI के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी।
पहली घटना के बाद एक और मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने फैसला सुनाया कहा है कि “एक लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की ज़िप खोलना पोस्को के तहत परिभाषा में sexual assault के अन्दर नहीं आएगा। इसके बजाय अधिनियम भारतीय दंड संहिता की धारा 354-ए (1) (i) के तहत “sexual harassment” के दायरे में आता है।“
उन्होंने कहा कि “यह धारा 354A (1) (i) के तहत “sexual harassment” का अपराध है, जो अवांछित संपर्क और उससे संबंधित शारीरिक संपर्क से संबंधित है।“
यह फैसला उन्होंने एक 50 वर्षीय व्यक्ति द्वारा पांच साल की बच्ची से छेड़छाड़ के लिए दोषी ठहराए जाने की सजा और सजा के खिलाफ आपराधिक अपील में सुनाया था।
अगर उनके फैसलों को देखें तो यह सब पोस्को कानून के तहत “sexual assault” की परिभाषा के कारण ही इतना विवाद खड़ा हो रहा है। लोग पोस्को की खामियां देखने के बजाये उस कानून के आधार पर फैसले सुनाने वाली जज को निशाना बना रहे हैं।
पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की परिभाषा है कि जब कोई यौन मंशा के साथ बच्ची/बच्चे के निजी अंगों, वक्ष को छूता है या बच्ची/बच्चे से अपना या किसी व्यक्ति के निजी अंग को छूने के लिए मजबूर करता है या यौन मंशा के साथ कोई अन्य हरकत करता है जिसमें संभोग किए बगैर यौन मंशा से शारीरिक संपर्क शामिल हो, उसे यौन हमला कहा जाता है।
यानि इस परिभाषा में ही “शारीरिक संपर्क” जैसे वाक्यांश प्रयुक्त किये गए हैं जो कई दुविधा पैदा करते हैं और एक विस्तृत दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं करते हैं। यानि स्पष्ट है कि इस विवाद का जड़ कानून की अक्षमता है। कोई जज अपने फैसले कानून का अवलोकन करने के बाद ही देता है और खास कर ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर।
ऐसा नहीं है जस्टिस पुष्पा का जज के तौर पर उनका पुराना रिकॉर्ड ख़राब है। इससे पहले उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले सुनाये हैं।
2019 में, पुष्पा गनेदीवाला उस पीठ का हिस्सा थी, जिसने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया, जिसमें यह फैसला सुनाया था कि पैरोल कैदियों के लिए “उपलब्ध सीमित अधिकार” है, न कि केवल एक प्रशासनिक निर्णय। न्यायालय के उस पीठ ने वह प्रावधान भी हटा दिया है जिसमें एक वर्ष के अन्दर कई पैरोल की मांग करने वाले दोषियों को पैरोल की मांग करने से रोका जाता था।
गनेदीवाला ने दो अन्य न्यायाधीशों के साथ 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट में बैठकर दो मामलों में मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। दोनों मामलों में हत्या का अपराध था। वहीं सितंबर 2020 में, पुष्पा गनेदीवाला और एक साथी जज ने नागपुर, में कोविद -19 के साथ उपलब्ध अस्पताल के बेड और मरीजों के लिए इलाज की सुविधाओं की कमी से संबंधित एक मामले की सुनवाई की और महाराष्ट्र के राज्य सरकार को पर्याप्त स्टाफ और सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।
उनके रिकॉर्ड को देखते हुए और पोस्को कानून की खामियों को देखते हुए सिर्फ उन्हें निशाना बनाना कहीं से भी उचित नहीं दिखाई देता। अब अगर कुछ आवश्यकता है तो POSCO Act में बदलाव की है। इसके यौन अपराध की परिभाषा में भी बदलाव करने होंगे जिससे इस शारीरिक संपर्क जैसे प्रावधान को और विस्तृत किया जा सके जिससे उपर्युक्त मामले में अपराधी को सही सजा मिल सके।





























