चीन रूस के हथियार कारोबार को बर्बाद करने पर तुला है, पुतिन को इसकी भनक नहीं

कुछ दिनों पहले एक खबर आई थी कि चीन अब अपने J20 लड़ाकू विमानों में रूसी इंजन के बजाये अब अपने स्वदेशी इंजन का इस्तेमाल करेगा। यह कोई आम खबर नहीं थी, यह चीन के हथियारों के मामले में रूस से कई गुना आगे निकलने का एक उदहारण था। आज चीन दुनिया भर के प्रमुख हथियार निर्यातक देशों में से एक है। Stockholm International Peace Research Institute के आंकड़ों के अनुसार चीन अमेरिका के बाद सबसे अधिक हथियार उत्पादन करने वाला देश बन चुका था वह भी रूस को पीछे छोड़ते हुए। यह विडम्बना है कि जिस रूस की मदद से चीन ने अपने हथियार उत्पादन क्षेत्र में अपने आप को स्थापित किया आज उसी के बाजार को निगल रहा है। एक तरह से देखा जाये तो चीन आग से खेल रहा है और और रूस अपने हथियार के मार्केट को चीन के हाथों में फिसलता देख चुपचाप नहीं बैठने वाला है। राष्ट्रपति पुतिन अवश्य ही किसी न किसी रणनीति पर काम कर रहे होंगे जिससे चीन को चुनौती देने के साथ साथ विश्व भर में अर्थव्यवस्था भी बचाई जा सके।

दरअसल, शीत युद्ध के बाद अधिकांश समय के लिए, रूस चीन का प्राथमिक हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है। परन्तु आज हालत यह है कि 2019 में शीर्ष 25 हथियार निर्माताओं में से चार चीनी थे जबकि सिर्फ दो ही रूसी। दोनों पड़ोसियों ने 1990 के दशक की शुरुआत में हथियार के क्षेत्र में सहयोग करना शुरू किया, जब चीन ने PLA के पुराने हथियार को उन्नत करने के लिए एक महत्वाकांक्षी अभियान शुरू किया था। पहले तो चीन ने पश्चिम की और ध्यान किया लेकिन अमेरिका और यूरोप ने 1989 के तियानमेन स्क्वायर नरसंहार के कारण चीन के खिलाफ हथियारों के जखीरा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

तब चीन ने रूस के रूप में एक साथी पाया। 1991 में सोवियत संघ के पतन ने रूसी हथियार निर्माताओं को तबाह कर दिया था। तब रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी जिससे हथियारों के विदेशी ग्राहक देशों के साथ आकर्षक अनुबंध जैसे राजस्व के पुराने स्रोत सूख गए। तब चीन ने एक संभावित ग्राहक के रूप में रूस की चरमराती रक्षा उद्योग को आवश्यक आर्थिक पुनर्जीवन दिया।

आज चीन खतरनाक स्तर के नए हथियार मॉडल का उत्पादन कर रहा है। यह रफ़्तार इतनी है कि रूस हथियारों की रेस में कहीं पीछे छूट चुका है। इन परिस्थितियों में, रूस के लिए प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल है। यही नहीं रूस के पास चीन के मुकाबले एक छोटा रक्षा बजट है जो कि घट ही रहा है।

Asia Nikkei की रिपोर्ट के अनुसार 1992 से 2007 तक, चीन ने पीएलए से लड़ाकू विमान, वायु रक्षा प्रणाली, विध्वंसक और पनडुब्बियों की खरीद के साथ अपने हथियारों का 84% आयात रूस से किया।

परन्तु चीन ने रूस को धोखा देते हुए कई हथियारों को रिवर्स इंजीनियरिंग कर नया उत्पाद बनाने का काम शुरू कर दिया। चीन के कुछ नए हथियार, विशेष रूप से J-11 फाइटर जेट और HQ-9 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, रूस से खरीदे गए हथियारों के समान ही प्रतीत होते हैं। दिसंबर 2019 में, रोस्टेक ने सार्वजनिक रूप से चीन पर लगभग दो दशकों के दौरान रूसी सैन्य प्रौद्योगिकियों की अवैध रूप से नकल करने का आरोप भी लगाया था। बता दें कि रोस्टेक रूस की सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरर है।

हालांकि, इन चिंताओं के बावजूद, दोनों देशों के बीच हथियारों का व्यापार लगातार बढ़ रहा है लेकिन अब चीन बड़े भाई की भूमिका में और रूस छोटे भाई की भूमिका में आ गया है। जिस तरह से चीन का मार्केट बढ़ रहा है उससे यह स्पष्ट नहीं है कि चीन को रूसी हथियारों की कब तक आवश्यकता पड़ेगी। सिर्फ 20 वर्षों की अवधि में, चीन हथियारों के आयातक से वैश्विक उत्पादक बन चुका है। न केवल बीजिंग अपनी अधिकांश सैन्य जरूरतों को पूरा कर सकता है, बल्कि यह पाकिस्तान से सर्बिया जैसे देश को निर्यात भी करता है। एक हथियार निर्माता के रूप में चीन ने अपने सैन्य खर्च में तेजी से वृद्धि की है। चीन के रक्षा बजट में पिछले एक दशक में 85% का विस्तार हुआ, जो 2019 में $ 261 बिलियन तक पहुंच गया। यह खबर कहीं से भी रूस के लिए अच्छी नहीं है।

क्रेमलिन द्वारा हाल ही में घरेलू तकनीक क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के प्रयासों के बावजूद, रूस को सफलता नहीं मिली है। रूस के पास माइक्रोसॉफ्ट या हुवावे जैसी दिग्गज कंपनियां नहीं हैं जो टेक्नोलॉजी में आगे हैं जिनका उपयोग नागरिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

अगले पांच से 10 वर्षों के भीतर चीन को रूस की कोई आवश्यकता भी नहीं होगी। विशेषज्ञों का यह मनना है कि चीन अफ्रीका, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका में रूस के पारंपरिक बाजारों से रूसी हथियार को बाहर कर देगा। इसमें चीन की मजबूत अर्थव्यवस्था और ऋण जाल सबसे बड़ी भूमिका निभाएगा। अब ऐसे में यह देखना है कि रूस क्या कदम उठता है। राष्ट्रपति पुतिन को चीन का इस तरह से उनके हथियारों के बाजार को निगलते देखना बिल्कुल नहीं सुहा रहा होगा। आने वाले में समय में रूस की तरह से अवश्य ही कोई न कोई कदम देखने को मिल सकता है जो चीन की इस चुनौती को समाप्त करने की दिशा में उठाया जायेगा।

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