बाइडन प्रशासन एक के बाद एक ट्रम्प प्रशासन के फैसलों को पलट रहा है। इसी कड़ी में अब बाइडन सरकार ने UAE और सऊदी अरब के साथ किए गए अरबों डॉलर के सैन्य समझौते पर अस्थायी रोक लगाने का ऐलान किया है। ट्रम्प प्रशासन ने अपने आखिरी दिनों में आनन-फानन में UAE को 50 F-35 फाइटर जेट बेचने के लिए 23 बिलियन डॉलर का समझौता किया था। इसी के साथ ट्रम्प सरकार ने सऊदी अरब को 290 मिलियन डॉलर की कीमत में 3000 मिसाइल बेचने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी थी। अब बाइडन ने दोनों समझौतों पर रोक लगा दी है, जिससे पश्चिमी एशिया में दोबारा ईरान को अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल सकता है।
पश्चिमी एशिया में शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए ट्रम्प प्रशासन ने सऊदी अरब को सशक्त करने और ईरान को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम किया था। अमेरिका ने वर्ष 2015 में ईरान न्यूक्लियर डील से अपने आप को अलग करने का फैसला लेकर ईरान पर प्रतिबंधों की बौछार कर दी, जिसके कारण ईरान की अर्थव्यवस्था और उसकी सैन्य ताकत को एक बड़ा झटका लगा। दूसरी ओर, ट्रम्प ने सऊदी अरब और UAE के साथ लगातार नज़दीकियां बढ़ाई। अमेरिका ने सऊदी अरब में मानवाधिकारों के मुद्दे को प्राथमिकता ना देकर क्षेत्र में ईरान को अलग-थलग करने की योजना पर काम किया और ट्रम्प प्रशासन ने यमन में भी ईरान के खिलाफ सऊदी का भरपूर साथ दिया। अब बाइडन ट्रम्प के हर फैसले को पलटने का काम कर रहे हैं।
सऊदी अरब और UAE के साथ सैन्य समझौतों को रोकने के साथ-साथ बाइडन प्रशासन मानवाधिकारों के मुद्दे पर भी इन देशों के खिलाफ सख्त रुख अपना सकता है। अमेरिकी विदेश मंत्री Antony Blinken के मुताबिक अमेरिका ईरान समर्थित यमनी विद्रोहियों पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों पर भी पुनर्विचार कर सकता है। नए प्रशासन के आने के बाद यमन में ईरानी समर्थित हूति विद्रोहियों के हौसले इतने बढ़ गए हैं कि हाल ही में इनपर सऊदी अरब की राजधानी पर एक मिसाइल से हमला करने का भी आरोप लगा था। मंगलवार को हुए उस मिसाइल हमले को हवा में ही रोक दिया गया था। इसके साथ ही नया बाइडन प्रशासन ईरान के साथ दोबारा न्यूक्लियर समझौते पर हस्ताक्षर भी कर सकता है, जो इजरायल के साथ-साथ अरब देशों के साथ रिश्तों में तनाव पैदा कर सकता है।
जो बाइडन Deep State के चहेते हैं और अब बाइडन के सत्ता संभालते ही यह Deep state दोबारा एक्टिव होकर पश्चिमी एशिया को अस्थिर करने की नीति पर चल पड़ा है। ट्रम्प के कार्यकाल में अमेरिका की ओर से भी एक भी नई जंग की शुरुआत नहीं की गयी, जिसके कारण अमेरिका की Industrialist lobby ने बड़ा असहज महसूस किया है। अब सऊदी अरब और UAE को बेचे जाने वाले हथियार पर रोक लगाकर यह Deep State सुरक्षा के मामले में इन अरब देशों को आत्मनिर्भर नहीं बनाना चाहता। अभी यह सभी देश अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिकी मिसाइल और उसके सैनिकों पर ही निर्भर हैं, जिसकी एवज में अमेरिका हर साल इन देशों से अरबों डॉलर कमाता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका ने सऊदी अरब को सुरक्षा मुहैया कराने वर्ष 2019-20 में 500 मिलियन डॉलर की वसूली की थी। वर्ष 1990-91 में gulf war के दौरान भी कुवैत और सऊदी अरब जैसे कई अरब देशों ने अमेरिका को भारी-भरकम 36 बिलियन डॉलर का भुगतान किया था। अमेरिकी Deep State को यही स्थिति भाती है, ऐसे में अब जब ट्रम्प ने जाते-जाते इन अरब देशों को आत्म-निर्भर बनाने के लिए इनके साथ समझौता किया, तो अब बाइडन प्रशासन इस स्थिति को बदलना चाहेंगे। इसीलिए अब बाइडन ना सिर्फ अरब देशों के साथ अपने सैन्य समझौतों पर रोक लगा रहे हैं, बल्कि वे अफ़ग़ानिस्तान में भी तालिबान-अमेरिका के शांति समझौते को पुनर्विचार कर इस दक्षिण एशियाई देश में अनिश्चितता का माहौल पैदा कर सकते हैं। उनके इन फैसलों से दुनिया की शांति को बड़ा खतरा ज़रूर पहुँच सकता है, लेकिन इतना तय है कि इससे अमेरिकी Deep State की हितों की पूर्ति ज़रूर होगी!