‘जो मैंने अधूरा छोड़ा है उसे पूरा करो अन्यथा परिणाम भुगतो’, ट्रम्प का बाइडन को स्पष्ट सन्देश

बाइडन

डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति पद से हटने वाले हैं लेकिन जाते जाते उन्होंने लोकतांत्रिक दुनिया को एक ऐसा उपहार भेंट किया है जिसका असर अगले राष्ट्रपति जो बाइडन की इंडो पैसिफिक नीति पर पड़ने वाला है। ट्रम्प प्रशासन ने पिछले सप्ताह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क का खुलासा किया, जिसे ‘United States Strategic Framework for the Indo-Pacific’ कहा गया। वर्ष 2017 में इस फ्रेमवर्क की रूपरेखा तैयार की गई थी – जब डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला था।

वर्ष 2018 के बाद से ही ट्रम्प प्रशासन ने इस फ्रेमवर्क पर ही अपनी नीतियों को केन्द्रित रखा है, परंतु वर्ष 2021 में नए राष्ट्रपति के आने के बाद ऐसा लगने लगा था कि इस फ्रेमवर्क को कूड़े में डाल दिया जाएगा। हालांकि, अब मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस फ्रेमवर्क को सार्वजनिक कर ऐसी किसी संभावनाओं को समाप्त कर दिया है।

अमेरिका की इस बढ़ी हुई इंडो-पैसिफिक नीति के ‘खुलासे ने जो बाइडन को एक बेहद  मुश्किल स्थिति में ला खड़ा किया है। अब वे इंडो पैसिफिक नीति अपने मनमाने तरीके से बदलने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, विशेष रूप से उस फ्रेमवर्क के सार्वजनिक होने और विश्व भर के लोगों के पढ़ने के बाद। इस प्रकार डोनाल्ड ट्रम्प ने यह सुनिश्चित किया है कि बाइडन इंडो-पैसिफिक की रणनीतियों पर काम करें और चीन के प्रति सख्त रुख अपनाने के लिए मजबूर रहें।

यह सभी को पता है कि जो बाइडन ट्रम्प की चीन विरोधी नीतियों के प्रशंसक नहीं है। वास्तव में, बाइडन ने कई मौकों पर जोर दिया है कि चीन को उनके प्रशासन मे नियंत्रित रखने कोशिश की जाएगी, पर ड्रैगन की हैंडलिंग ट्रम्प प्रशासन से अलग होगी। यहां यह समझना होगा कि चीन को अलग तरह से हैंडल करने का अर्थ क्या है?

सरल शब्दों में, कहें तो , बाइडन प्रशासन चीन पर उतना सख्त नहीं होने जा रहा है जितना ट्रम्प थे। कहने की जरूरत नहीं है कि दुनिया को अभी भी चीन के खिलाफ अधिकतम दबाव की आवश्यकता है जिसे बनाने में अमेरिका मुख्य भूमिका निभाता है। इससे न केवल इंडो-पैसिफिक में उसकी गुंडागर्दी को काबू में रखा जा सका है, बल्कि इस क्षेत्र में छोटे देशों को चीनी आक्रामकता से भी बचाया गया है।

पेपर ड्रैगन अमेरिका से डरता है और इसमें कोई संदेह नहीं है। हालांकि, जो बाइडन पेपर ड्रैगन को खुश करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार दिखाई दे रहे हैं जिससे केवल CCP और मजबूत हो होता जाएगा। यही नहीं इस मनाने के चक्कर में वह वैश्विक सप्लाइ चेन पर फिर से अपने आधिपत्य को स्थापित करने में जुट जाएगा जो कोरोना के कारण उसके हाथ से निकल गया था।

अमेरिका की इंडो-पैसिफिक नीति के खुलासे से सुनिश्चित हुआ है कि बाइडन किसी प्रकार के ऐसे कदम न उठाए जो चीन के लिए हितकारी साबित हो और एक स्वतंत्र तथा खुले इंडो-पैसिफिक की नीति बनाए रखे रहे, जो चीनी प्रभाव या नियंत्रण से रहित हो। चीन के लिए और मुश्किल हालत पैदा करते हुए तथा बाइडन की नाराजगी बढ़ाते हुए अमेरिका के विदेश माइक पोम्पिओ ने यह भी सुनिश्चित किया है कि ताइवान और अमेरिका के संबंधों में अनावश्यक और अनौपचारिक बाधाएं जल्द से जल्द दूर हो जायें।

ताइवान के मोर्चे पर ट्रम्प प्रशासन द्वारा लिए गए कदमों से भी यह यह सुनिश्चित हो सकेगा कि चीन और बाइडन प्रशासन एक-दूसरे के करीब न आए। अब बाइडन बिना वैश्विक गतिरोध के इन फैसलों को यूं ही नहीं पलट सकते हैं।

इसी तरह, अब पहले से चल रहे इंडो पैसिफिक नीतियों का पालन नहीं करने से बाइडन के लिए परिणाम हानिकारक होंगे।

बाइडन द्वारा CCP और उसके महासचिव को खुश करने वाले कदम न लेने की स्थिति में दोनों देशों के बीच संबंधों में इसी तरह की अस्थिरता बनी रहेगी। चाहे वह शिनजियांग हो, या तिब्बत, या फिर हांगकांग, और ताइवान या फिर अब इंडो-पैसिफिक, बाइडन के लिए अब सभी मोर्चों पर चीन के खिलाफ एक्शन पर ही काम करना पड़ेगा।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि बाइडन केवल चीन को पाने पक्ष में करने के लिए भारत को अलग-थलग करने का जोखिम नहीं उठा सकते। भारत, किसी भी मामले में, इंडो-पैसिफिक नीति का केंद्र है; और नई दिल्ली का बीजिंग के साथ छत्तीस के आंकड़े को पूरा विश्व जानता है। ऐसे में अब बाइडन को चीन विरोधी नीति अपनाने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा और ट्रम्प प्रशासन द्वारा उसके लिए निर्धारित मार्ग पर चलना होगा नहीं तो परिणाम कई गुना घातक साबित हो सकते हैं।

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