पिछले दो दशकों में चीन की प्रगति दिन-दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है। लेकिन एक महाशक्ति के तौर पर चीन उतना संयमी और परिपक्व नहीं बना है, उल्टा वह एक साम्राज्यवादी देश बनना चाहता है, जिसके सामने कोई भी विद्रोह न करने पाए। अब यही चीन दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का हाल बेहाल करने में लगी हुई है।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने थाईलैंड, म्यांमार एवं कंबोडिया की नाक में दम करके रखा है। उदाहरण के लिए चीनी पर्यटक भारी संख्या में थाईलैंड का रुख कर रहे हैं। परंतु यह थाईलैंड के लिए शुभ संकेत नहीं है।
वो कैसे? थाईलैंड को न केवल चीनी भाषा और सभ्यता के अनुसार अपने को ढालना पड़ रहा है, परंतु धीरे-धीरे चीन अपनी लोकलुभावन नीतियों के चलते वहाँ के दुकानों, रेस्टोरेंट एवं अन्य सुविधाओं पर भी कब्जा जमाना शुरू कर दिया है –
दूसरी तरफ म्यांमार भी चीन के प्रकोप से अछूता नहीं है। म्यांमार अपने विस्तृत धान खेती के लिए काफी प्रसिद्ध है। लेकिन चीन में माँस के लिए मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिसके लिए चीन को जानवरों को खिलाने के लिए मक्के की भी आवश्यकता है। जिस प्रकार से अंग्रेज एक विशेष प्रकार की फसल के लिए अपने गुलाम देशों के संसाधनों का शोषण करते थे, ठीक उसी प्रकार से मक्के की खेती के लिए चीन म्यांमार का तेल निकालने के लिए लगा हुआ है। मक्के के ताबड़तोड़ उत्पादन के कारण उत्तरी म्यांमार के जंगलों को काफी नुकसान पहुँचा है, विशेषकर शान प्रांत में, जिसके बॉर्डर भारत और चीन दोनों से मिलते हैं। ऐसे में समझदार को इशारा काफी है।
लेकिन कंबोडिया भी चीनी प्रकोप से अछूता नहीं है। बावजूद इसके कि कंबोडिया चीन के चंद मित्र देशों में शामिल है, चीन उसके भी संसाधनों पर अपना अधिकार जमाता है। चीन ने अपने अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए कंबोडिया को डम्पिंग ग्राउन्ड बना दिया है। अपनी जेलों को वे लोकतंत्र और मानवाधिकार समर्थकों से भरना चाहते हैं, इसीलिए वह अपने दुर्दांत अपराधियों को कंबोडिया भेजते रहते हैं, जिसके कारण न केवल कंबोडिया में अपराध दर ने हर सीमा लांघ दी है, बल्कि कंबोडियावासियों में चीन के विरुद्ध विद्रोह की भावना भी जागृत की है, और शायद इसीलिए कंबोडिया चीनी वैक्सीन तक अपनाने को तैयार नहीं है –
चीनी प्रगति सच कहें तो दक्षिण पूर्वी एशिया के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। औपनिवेशिक मानसिकता से परिपूर्ण ये देश जिस प्रकार से दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों को सताते हैं, उससे स्पष्ट पता चलता है कि किस प्रकार से यह बेलगाम हो चुका है, जो आगे चलकर पूरी दुनिया के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।