भारत अब लिथियम ion उद्योग में चीन के प्रभाव को खत्म करने के लिए पूरी तरह तैयार है

चीन को घाटा, भारत के लिए अवसर

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यह समय बड़ा ही विचित्र है। किसी की विपदा दूसरे के लिए एक अवसर बन सकती है। कुछ ऐसा ही हो रहा है चीन और भारत के साथ। जहां एक ओर चीन की सबसे बड़ी लिथियम उत्पादक कंपनी – टियानकी लिथियम को बहुत भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, तो वहीं भारत के पास चीन द्वारा लिथियम उत्पादन में जमाए वर्चस्व को तोड़ने का एक शानदार अवसर मिला है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार NALCO, हिंदुस्तान कॉपर एंड मिनरल एक्सपलोरेशन लिमिटेड जैसी चार कंपनियों ने मिलकर एक कंपनी का सृजन किया, जिसका नाम है खानजी बिदेश इंडिया लिमिटेड ने पिछले वर्ष अर्जेन्टीना के एक फर्म के साथ लिथियम के उत्पादन के लिए करार किया था। अब यही कंपनी चिली और बोलीविया में भी लिथियम और कोबाल्ट के उत्पादन के लिए प्रयासरत है।

जिस प्रकार से भारत इस मोर्चे पर चीन के वर्चस्व को समाप्त करने में जुटा हुआ है, वो चीन के विरुद्ध उसके आर्थिक नीति का एक अहम हिस्सा है। चूंकि लिथियम इलेक्ट्रानिक्स का भविष्य माना जाता है, और चूंकि इसी के कारण दुनिया भर के कई गैजेट काम करते हैं, इसलिए भारत की वर्तमान नीतियाँ चीन के लिए बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं है।

लेकिन इस नीति की नींव 2018 में ही पड़ चुकी थी। आम तौर पर भारत के पास चीन की भांति लिथियम का भंडार नहीं है, लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए 2018 में तत्कालीन भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री अनंत गीते ने बताया था कि अब भारत लिथियम के लिए चीन पर निर्भर नहीं रहेगा। इसके लिए भारत ने दक्षिण अमेरिका के लिथियम ट्राइएंगल’ यानि लिथियम के भंडार के मामले में दक्षिण अमेरिका के तीन प्रमुख देशों – चिली, बोलिविया एवं अर्जेंटीना से लिथियम की  जरूरत को पूरा करने का प्ररबंध किया है।

इसीलिए भारत ने लिथियम बैटरी के उत्पादन में सहायता हेतु बोलिविया के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर भी किया है। यहीं नहीं, लिथियम के उत्पादन और प्रोसेसिंग के लिए भारत जापान और ऑस्ट्रेलिया की भी सहायता लेने वाला है। जापानी कंपनी सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन ने तोशिबा और डेन्सो के साथ एक जाइंट वेंचर पर भी हस्ताक्षर किया है, जिसके अंतर्गत वे भारत के गुजरात में स्थित देश का पहला लिथियम बैटरी उत्पादन केंद्र भी शुरू करेंगे।

इस मामले में ऑस्ट्रेलिया भी कहीं से पीछे नहीं रहना चाहता। ऑस्ट्रेलिया स्थित नीयोमेटल्स और भारत के मणिकरण पावर ने भारत के पहले लिथियम रिफ़ाइनरी के लिए साथ में काम करने का निर्णय लिया है। यह इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के पास लिथियम भंडार की कोई कमी नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के पास करीब 27 लाख टन लिथियम का भंडार है।

इसके अलावा भारत ऐसे समय पर लिथियम के क्षेत्र में एंट्री कर रहा है, जब चीन की हालत इस क्षेत्र में बहुत खस्ता है। Tianqi Lithium चीन के करीब 46 प्रतिशत लिथियम उत्पादन का जिम्मा संभालती है, लेकिन इस समय वह कर्जों के बोझ तले दबा हुआ है। इसके अलावा जैसे TFI ने 2019 में रिपोर्ट किया था, भारत सरकार लिथियम आयन बैटरी से लिथियम निकलवा कर अपने लिथियम की आवश्यकताओं के लिए एक अहम योजना पर काम भी कर रही है।

ऐसे में भारत जिस प्रकार से चीन द्वारा लिथियम उद्योग में वर्चस्व को ध्वस्त करने के लिए काम कर रहा है, वो न सिर्फ सराहनीय है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि कैसे नया भारत अब हर अवसर को अपने लिए एक बेहतरीन निवेश में बदलने के लिए प्रयासरत है।

 

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