बीते दिसंबर में ही 7 वर्षों की बातचीत के बाद आखिरकार चीन और यूरोप ने एक निवेश समझौते पर हस्ताक्षर करने का फैसला लिया था। इस निवेश समझौते के बाद EU और चीन की कंपनियों को एक दूसरे के बाज़ार में अधिक पहुँच के अलावा, निवेश करने के लिए आसान नियम जैसी सहूलियत हासिल हो जाएंगी। फ्रांस और कुछ पूर्वी यूरोपीय देश इस समझौते के खिलाफ थे। फ्रांस ने इस समझौते से ठीक दो दिन पहले एक बयान जारी कर कहा था “फ्रांस को चीन में जारी बंधुआ मजदूरी पर सख़्त आपत्ति है। अगर निवेश समझौते में इस समस्या पर कोई समाधान शामिल नहीं किया जाता है, तो हम इस डील पर वीटो कर देंगे।” हालांकि, उसके बाद माना गया कि जर्मनी के बढ़ते दबाव और चीन के वादों की बुनियाद पर आखिरकार फ्रांस ने भी इसे हरी झंडी दिखाने का फैसला लिया!
EU और चीन के इस समझौते को पक्का कराने में अगर किसी की सबसे बड़ी भूमिका रही है, तो वह जर्मनी ही है। जर्मनी ना सिर्फ EU का सबसे प्रभावशाली सदस्य है, बल्कि उसके चीन के साथ भी बेहद नजदीकी संबंध है। यह समझौता चीन के लिए अति-महत्वपूर्ण था और शायद तभी Financial Times को भी अपने एक लेख में इस बात को लिखना पड़ा कि इस समझौते के जरिये EU ने चीन को एक रणनीतिक जीत सौंप दी है। इस डील के पक्का होने के बाद खुद जर्मनी EU के कई सदस्य देशों के निशाने पर आ गया था। Politico की एक रिपोर्ट के मुताबिक इटली, पोलैंड, बेल्जियम और स्पेन जैसे देशों ने जर्मनी पर यह आरोप लगाया था कि उसने उन देशों को नज़रअंदाज़ करते हुए इस डील को पक्का कराया, वो भी ऐसे समय में जब मर्केल अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में पहुँच चुकी है। यहां सवाल खड़ा होता है कि आखिर मर्केल इस डील को पक्का कराने पर क्यों अड़ी हुई थीं?
अब खुलासा हुआ है कि असल में इस डील को पक्का कराने के लिए जर्मनी को चीन द्वारा डील के बाहर कुछ खास फायदे प्रदान किए जा सकते हैं। जर्मन पोर्टल Wiwo की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की संभावना बेहद ज़्यादा हैं कि डील को पक्का कराने के बदलने जर्मनी की कंपनी Deutsche Telekom को चीन में अब मोबाइल फोन निर्माण का लाइसेन्स हासिल हो सकता है, जिसके बाद इस तरह का लाइसेन्स प्राप्त करने वाली यह दुनिया में पहली गैर-चीनी कंपनी बन सकती है।
बता दें कि Deutsche Telekom यूरोप की सबसे बड़ी Telecom Provider कंपनी है और यह पहले ही चीन में डेटा सेंटर और cloud store जैसी सेवाएँ उपलब्ध करा रही है। सितंबर 2020 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक यह भी बात सामने आई थी कि जर्मनी अपनी 5G नीति को China-friendly बनाने के बदले इस Deutsche Telekom कंपनी को चीन में अधिक पहुँच दिलवाने की एक डील पर काम कर रहा है। अब Wiwo की रिपोर्ट के मुताबिक इस EU-चाइना डील के लिए चीन इस कंपनी को ज़्यादा पहुँच देकर मर्केल प्रशासन को बड़ा उपहार दे सकता है।
जर्मनी शुरू से ही चीन को लेकर सख़्त रुख अपनाने से परहेज करता रहा है। कोरोना के बाद चीन की आलोचना नहीं करने से लेकर अब EU-चाइना डील में एक बड़ी भूमिका निभाने तक, जर्मनी का चाइना-प्रेम किसी से छुपा नहीं है। अब यह सामने आया है कि जर्मनी ने अपने हितों के लिए EU के सभी सदस्य देशों के हितों के खिलाफ जाकर काम किया है और चीन को संवेदनशील वक्त पर एक बड़ी जीत दिला दी। यह सब तब किया गया जब पहले ही EU और जर्मनी इस डील को ना करने के लिए अमेरिका और बाइडन-टीम की ओर से दबाव बनाया जा रहा था। मर्केल अपने कार्यकाल के आखिरी समय में भी चीन की good-books में अपनी जगह बनाए रखना चाहती हैं। वे पहले ही हुवावे को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के खिलाफ कदम उठा चुकी हैं। अपने निजी हित साधने के लिए मर्केल पूरे यूरोप को चीन के हाथों की कठपुतली बनाने पर तुली हुई हैं।