कतर ने दिए तुर्की-ईरान गठजोड़ से दूरी के संकेत, जल्द ही अब्राहम एकॉर्ड जैसे एक और डील के आसार

पश्चिम एशिया में हो रहे इस परिवर्तन से तुर्की-ईरान हो जाएंगे बर्बाद!

कतर

इस समय सबसे रोमांचक भूराजनीतिक घटनाक्रम का केंद्र पश्चिम एशिया बन चुका है। पहले UAE  ने इजराइल के साथ अपने  सम्बंध सामान्य बनाए, फिर उसके पीछे-पीछे बहरीन, मोरक्को जैसे अन्य देश भी आ गए, फिर खबरे आईं की इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने सऊदी का दौरा किया। उसके बाद ईरान के सबसे बड़े न्यूक्लियर साइंटिस्ट को मार गिराया गया। अब इसी क्रम में तीन वर्षों से भी अधिक समय से चल रहा गल्फ क्राइसिस या कहें सऊदी कतर तनाव भी शांत हो गया है। GCC सदस्यों की बैठक के बाद सऊदी ने निर्णय किया है कि वह अपने एयरस्पेस, बंदरगाह तथा अपनी थलसीमा को कतर के लिए पहले की तरह ही खोल देगा। इसके अलावा मिस्र, UAE, बहरीन भी कतर के साथ पुराने जैसे सम्बंध बहाल करेंगे।

दरअसल, 2017 में सऊदी और उसके समर्थक देशों बहरीन, मिस्र और UAE ने कतर पर आतंकी संगठनों को मदद तथा ईरान से अच्छे संबंध रखने का आरोप लगाते हुए कूटनीतिक संबंध खत्म कर लिए थे। ईरान और सऊदी की शत्रुता जग जाहिर है। ऐसे में सऊदी के नेतृत्व वाले संगठन Gulf Cooperation Council का सदस्य होने के बाद भी कतर ने ईरान से संबंधों में गर्मजोशी बनाए रखी। अतः सऊदी ने कतर को सबक सिखाने के लिए अन्य सहयोगी देशों के साथ मिलकर, अपनी जल, थल एवं वायु सीमा को कतर के लिए बन्द देने का फैसला किया था।

3 साल से अधिक समय तक सऊदी के दबाव को झेलने के बाद अब कतर सऊदी की शर्तों को स्वीकार करने को तैयार है। बता दें कि 2017 में सऊदी ने कतर के समक्ष 13 मांगे रखी थीं। जिसमें प्रमुख थीं कि कतर ईरान से अपने सम्बंध खत्म करे, अपने देश में मौजूद तुर्की की सैन्य टुकड़ी को वापस भेजे, अपने देश में कार्यरत ऐसे मीडिया संस्थानों पर रोक लगाए, जो लगातार अरब देशों के विरुद्ध जहर उगल रहे हैं तथा हिजबुल्लाह, ISIS जैसे संगठनों को मदद देना बन्द करे। हालांकि, कतर ने आतंकी संगठनों को मदद के आरोप को सिरे से खारिज कर दिया था लेकिन वह ईरान से संबंध खत्म करने को तैयार नहीं था।

कतर और ईरान, पर्शियन गल्फ में एक नेचुरल गैस की फील्ड को साझा करते हैं। नेचुरल गैस के उत्खनन के लिए कतर को ईरान से बेहतर सम्बंध बनाए रखने पड़ते हैं। ईरान की नौसेना इस क्षेत्र में सबसे मजबूत है। अतः कतर की कोशिश यही रहती है कि वह ईरान की गुड बुक में शामिल रहे, जिससे वह शांति से गैस उत्खनन कर सके। इसीलिए सऊदी के दबाव के बाद भी कतर ईरान को छोड़ नहीं पा रहा था। किंतु लगता है कि अब कतर, नए बन रहे अरब-इजराइल गठबंधन को लेकर आशान्वित है। यही कारण है कि उसने तुर्की-ईरान धड़े से अलग हटने का फैसला किया है।

गौरतलब है कि कतर में अमेरिका का पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा सैन्य बेस पहले ही मौजूद है तथा ईरान की नौसैनिक दादागिरी पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिकी नौसेना की पांचवी फ्लीट भी सदैव इस क्षेत्र में मौजूद रहती है। ऐसे में कतर भी यह समझ रहा है कि अमेरिका का सहयोग तथा नया अरब-इजराइल गठबंधन पश्चिम एशिया में तुर्की-ईरान धड़े के वर्चस्व को, बनने से पहले ही तोड़ देगा। यही कारण है कि अब वह सऊदी की उन शर्तों को मानने पर तैयार है जिन्हें वह 3 साल से अधिक समय से टाल रहा था।

कोरोना काल में ठप पड़ी आर्थिक गतिविधियां भी इस टकराव के खत्म होने का एक महत्वपूर्ण कारण हैं, क्योंकि दोनों पक्ष जानते हैं की वह सहयोग से ही आर्थिक स्थिति को पुनः सुधार सकेंगे। ऐसे में यह समझौता सभी के लिए भी लाभप्रद होगा।

गल्फ में हुए हालिया कूटनीतिक घटनाक्रम यही बता रहे हैं कि ईरान और तुर्की बिल्कुल अलग-थलग पड़ गए हैं। कतर-सऊदी संबंधों में पड़ी दरार भर गई है तथा कतर नए बदलाव स्वीकार करने को तैयार हो गया है। ऐसे में यह भी देखने को मिल सकता है कि कतर इजराइल के साथ, UAE की तरह ही संबंध सामान्य कर ले तथा वह भी अब्राहम एकॉर्ड का हिस्सा बन जाए।

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