इन दिनों चीन को दुनिया के कोने कोने से चुनौतियाँ मिल रही है। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बावजूद चीन को कोई विशेष राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। भारत तो चीन की एक गलती पर उसे कच्चा चबाने के लिए तैयार बैठा है, और अब जापान और वियतनाम ने चीन के नाक के नीचे से अपने आर्थिक संसाधनों के लिए नया मोर्चा खोलने का निर्णय किया है।
दक्षिणी चीन सागर में वियतनाम तेल की आपूर्ति को पूरा करने हेतु कई जापानी कंपनियों के साथ जॉइन्ट वेंचर करने को तैयार है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, “नवंबर में जापानी ऊर्जा कंपनी Inpex ने चार वर्ष पुरानी न्यायिक लड़ाई पर विराम लगाते हुए एक सिंगापुरी कंपनी के साथ सुलह कर ली है। इसके साथ ही Inpex ने दक्षिणी चीन सागर में वियतनाम के साथ हो रहे जॉइन्ट वेंचर में निवेश करने के अधिकार भी प्राप्त कर लिए हैं”
इसके अलावा वियतनाम ने कई अहम तेल खनन प्रोजेक्ट्स को भी स्वीकृति दी, जो चीनी दखलंदाज़ी के कारण 2017 में स्थगित हो गई थी। इससे पहले वियतनाम रूस के साथ ऐसे ही एक प्रोजेक्ट पर काम करने वाला था, लेकिन चीन की गुंडई के कारण रूसी कंपनी ने हाथ पीछे खींच लिए। SCMP के रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना के लिए फील्ड डेवलपमेंट प्लान पहले ही कुछ ब्लॉक्स के लिए स्वीकृत किये जा चुके हैं।
अब दोनों देश भली भांति जानते हैं कि इस निर्णय का परिणाम क्या होगा, लेकिन वह ये जोखिम उठाने को पूरी तरह तैयार हैं। अब इससे दोनों देशों को क्या प्राप्त होगा? दरअसल दक्षिणी चीन सागर प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण एक अहम जल क्षेत्र है, जो इंडो पेसिफिक क्षेत्र के लिए एक ‘गेटवे’ समान है। इसके अलावा इस क्षेत्र से यदि तेल आपूर्ति में निवेश किया जाए, तो कई दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के तेल की खपत पूरी हो सकती है।
लेकिन दक्षिणी चीन सागर पर चीन अपना एकाधिकार जमाता आया है, जिसके कारण अन्य देश इस क्षेत्र में निवेश करने से पहले कई बार सोचते हैं।
परंतु वियतनाम के पास अब चीन के नाक के नीचे से अपने लिया संसाधन जुटाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। इसके पीछे वियतनाम और जापान के न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक कारण भी है। एक ओर वियतनाम और जापान के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन आए दिन घुसपैठ करता आया है, और लाख निन्दा और याचिकाओं के बाद भी अपनी हरकतों से नहीं बाज आया है।
इसके अलावा जापान के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से अहम सेंकाकु द्वीप समूह पर भी चीन की आँखें गड़ी हुई है, और पिछले कई महीनों से वह इस क्षेत्र में घुसपैठ करते आए हैं। ऐसे में दक्षिण चीन सागर में तेल खोजने के लिए यह जॉइन्ट वेंचर जापान और वियतनाम दोनों के लिए ही किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जापान और वियतनाम केवल जॉइन्ट वेंचर तक ही सीमित नहीं रहेंगे। यदि सब कुछ सही रहा, तो दक्षिण चीन सागर को दोनों देश एक ओपन ट्रेड ज़ोन में भी परिवर्तित कर सकते हैं, जहां भारत की भी एक अहम भूमिका होगी। इसके संकेत तभी मिल गए थे जब भारत ने वियतनाम को बाढ़ सहायता के लिए न केवल एक युद्धपोत भेजा, बल्कि वियतनाम के साथ दक्षिणी चीन सागर में एक छोटे नौसैनिक युद्ध अभ्यास में भी हिस्सा लिया।
इससे न केवल चीन को ये संदेश जाएगा कि दक्षिण चीन सागर किसी की निजी जागीर नहीं, बल्कि चीन द्वारा इंडो पेसिफिक क्षेत्र में वर्चस्व जमाने के सपने बस सपने ही रहेंगे।