चीन के ‘विदेशी जहाजों पर फायरिंग’ के आदेश के खिलाफ जापान मैदान में, साथ आये ASEAN देश

जापान

(Pool photo) (Kyodo)

अमेरिकी प्रशासन में बदलाव होते ही चीन एक बार फिर से इंडो-पैसिफिक में आक्रामक होता नजर आ रहा है और इसी के मद्देनजर उसने सेनकाकू द्वीप पर कब्ज़ा करने के इरादे से अपने कोस्टगार्ड को किसी भी विदेशी वेसल पर ओपन फायरिंग के आदेश दिये हैं। इस आक्रामक कदम को देखते हुए जापान ने भी सेनकाकू क्षेत्र के सैन्यकरण पर काम शुरू कर दिया है। इसी बीच चीन के आक्रामक रुख के खिलाफ जापान को अन्य एशियाई देशों का भरपूर समर्थन मिला है। फिलिपिन्स और वियतनाम दोनों देशों ने चीन के नए कानून के खिलाफ आवाज उठाई है।

दरअसल, चीन ने अपने तट रक्षक बलों को अपने “अधिकार क्षेत्र” के तहत विदेशी जहाजों पर फायरिंग करने की अनुमति दी है। एक ऐसा कदम जिससे चीन के आस-पास का पूरा इलाका अस्थिर हो सकता है।

इसके अलावा नए कानून के जरिए, चीन ने अपने कॉस्ट गार्ड को उन विदेशी वेसेल को ‘कथित जल क्षेत्र’ से खदेड़ने की शक्ति भी दी है। बता दें कि चीन अपने बेसलाइन से बहुत दूर तक के द्वीपों और पानी पर अपना दावा ठोकता है। हालांकि, इसके समुद्री दावों को अंतरराष्ट्रीय कानून से कोई समर्थन नहीं मिलता है। अब, चीन के इस कदम से यह माना जा रहा है कि नए चीनी कानून का उद्देश्य जापान के सेनकाकू द्वीप समूह को कब्जे में करने काहै, जिस पर बीजिंग दावा करता है।

इसी नए कानून के खिलाफ जापानी सांसदों ने सेनकाकू द्वीपों की रक्षा को बढ़ाने के लिए कानून लाने की मांग की है। जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के National Defense Division की बैठक में, सांसदों ने चीन के नए कदम के बारे में चिंता व्यक्त की। एक विधायक ने उसे “धमकी” के रूप में बताया। यह भी तर्क दिया गया था कि चीन के नए कानून में किसी भी जलक्षेत्र में तथा द्वीपों पर बनाए गए किसी ढांचों को जबरन ध्वस्त करने जैसे खंड सीधे सेनकाकू द्वीप पर लक्षित है।

साथ ही, प्रादेशिक सुरक्षा अधिनियम को लागू करने जैसे कठोर उपायों के लिए जापान के भीतर मांग की जा रही है, जिससे कैबिनेट की मंजूरी के बिना तत्काल स्थिति को संभालने के लिए जापान के आत्मरक्षा बलों को भेजा जा सकेगा। यानी जापान सेनकाकू की सुरक्षा के लिए अपने सैन्य बल भेजने में सक्षम हो जायेगा। चीन के इस नए कानून के खिलाफ सिर्फ जापान ने ही मोर्चा नहीं खोला है, बल्कि उसे फिलीपींस और वियतनाम का भी समर्थन मिला है जिन्होंने चीन के इस कानून का विरोध किया है। मनीला के शीर्ष राजनयिक ने कहा कि फिलीपींस नए चीनी कानून का विरोध करता है जो विदेशी जहाजों पर फायरिंग करने और द्वीपों पर अन्य देशों की किसी ढांचे को नष्ट करने का अधिकार देता है।

विदेश सचिव Teodoro Locsin Jr ने एक ट्वीट में कहा कि “नया चीनी कानून किसी भी देश के लिए युद्ध का verbal threat है जो उस कानून को नहीं मानता है”। उन्होंने कहा कि कानून को चुनौती देना असंभव है।

बता दें कि चीन का फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रुनेई के साथ, दक्षिण चीन सागर में दशकों से चल रहा तनावपूर्ण गतिरोध अब प्रतिद्वंद्विता में बदल चुके हैं। फिलीपींस का इस तरह से चीन के खिलाफ बोलना दिखाता है कि अब फिलीपींस चीन की किसी भी गुंडागर्दी का समर्थन नहीं करेगा।

वहीं, वियतनाम ने चीन के इस कानून पर सभी देशों से अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों का पालन करने का आह्वान किया है। संसदीय कार्य मंत्रालय के प्रवक्ता Le Thi Thu Hang ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि, “”समुद्र से संबंधित राष्ट्रीय कानूनी दस्तावेजों की घोषणा और कार्यान्वयन करने के लिए वे सभी देश अंतरराष्ट्रीय कानूनों, और संधियों का पालन करने के लिए बाध्य है, जिसके वे हस्ताक्षरकर्ता हैं, विशेष रूप से 1982 के United Nations Convention on the Law of the Sea पर हस्ताक्षर करने वाले।” यानी वियतनाम ने चीन का नाम तो नहीं लिया लेकिन उसने भी चीन के नए कानून की आक्रामकता की प्रतिक्रिया में ही यह बयान दिया है।

जापान के साथ दोनों ASEAN देशों का इस तरह से चीन के नए कानून के खिलाफ आवाज उठाना दिखाता है कि अब वे चीन के खिलाफ नए वैश्विक परिस्थिति में भी खड़े हो सकते हैं। जब तक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप थे तब तक उन्होंने चीन को इंडो पैसिफिक में नियंत्रित करने के लिए अपना फोकस इस क्षेत्र पर रखा था। परन्तु अब जो बाइडन के चीन प्रति नरम रुख से एक बार फिर से चीन आक्रामक रुख अपनाना शुरू कर चुका है। हालांकि जापान फिलिपिन्स और वियतनाम जैसे देश चीन की आक्रामकता का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं।

 

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