खालिस्तानी आतंकवादी ग्रुप SFJ ने चैलेंज दिया, नकली किसानों ने स्वीकार कर लाल किले पर उनके मंसूबो को अंजाम दिया

SFJ

गणतंत्र दिवस, एक ऐसा दिन जब लोग राष्ट्र की उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं, उस दिन लाल किले पर तथाकथित किसानों ने एक ऐसी हरकत की जिससे देश की छवि ही दाग दार हो गई। देश के गौरव कहे जाने वाले लाल किले के प्राचीर पर किसानों  ने अराजकता फैलाकर निशान साहब का धार्मिक झंडा फहरा दिया। ये सभी उस खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस के एजेंडे पर काम करने लगे जिसने ऐसे कृत्य के लिए किसानों को मौद्रिक ईनाम देने की घोषणा की थी। किसान अब अपने मकसद में कामयाब हो गए हैं और SFJ से इस आंतंक जैसी घटना को अंजाम देने के मौद्रिक ईनाम को इंतजार कर रहे हैं।

लाल किला वो प्राचीर जहां पर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं, ठीक उसी जगह किसानों ने अपने धार्मिक झंडे निशान साहब को फहरा दिया। अपने इस कुकृत्य के जरिए किसानों ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया और देश की छवि गणतंत्र दिवस के दिन ही दागदार हो गई है। गौर करने वाली बात ये भी है कि SFJ ने कुछ दिन पहले ही ऐलान किया था कि इंडिया गेट या लाल किले पर 26 जनवरी को खालिस्तान का झंडा फहराने वालों को संस्था की तरफ से 2 लाख 50 हजार डॉलर दिए जाएंगे।

SFJ ने ऐसे प्रदर्शनकारी किसानों को टारगेट करने की नीयत से अपने चीफ का एक वीडियो रिलीज किया था जो जल्द से जल्द पैसे कमाने की कोशिश कर रहे थे। संस्था के चीफ गुरपतवंत सिंह पन्नू ने कहा था, “26 जनवरी ने वाली है, और लालकिले पर तिरंगा है। उस तिरंगे को हटाकर  खालिस्तान का झंडा फहरा दो।” पैसों के साथ ही इन अलगाववादियों ने किसानों को विदेशी नागरिकता का भी लालच दिया था। संस्था ने कहा, “आपके साथ पूरी दुनिया का कानून हैं इसलिए यदि भारत सरकार आप पर आरोप लगाती है तो फिर आपको विदेशों में लाकर नागरिकता भी दिलाई जा सकती है।”  

ऐसे में ये कहा जा सकता है कि एसजेएफ ने जो कुछ सोचा था, वो हो गया है। हालांकि लालकिले पर  खालिस्तान का झंडा नहीं बल्कि निशान साहब का झंडा जरूर फहराया गया, जो कि कहीं न कहीं SFJ की जीत की तरह ही है। इस मुद्दे पर अबकुछ वामपंथी लोग किसानों के इस कुकृत्य का बचाव करने पर उतर आए हैं कि वो खालिस्तानी झंडा नहीं बल्कि धार्मिक झंडा था।

लाल किले पर फहराया गया झंडा भले ही किसी खास धर्म का हो, लेकिन वो आपत्तिजनक ही है क्योंकि लाल किला कोई गुरुद्वारा नहीं हैं। इसलिए किसानों के जरिए एसजेएफ ने अपना अलगाववाद का स्वार्थ सिद्ध कर लिया है, और ये देश की सरकार के लिए एक बड़ी विफलता है।

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