राजनीति में एक की एंट्री दूसरे के लिए मुसीबत बन जाती है। यह सिर्फ नेताओं पर ही लागू नहीं होता बल्कि पार्टियों के बीच भी ऐसा ही होता है। देश में ताजा बयार पश्चिम बंगाल में होने वाले विधान सभा चुनावों की चल रही है और ऐसे में सभी पार्टियां अपना अपना कार्ड खेलना शुरू कर चुकी है।एक तरफ AIMIM की एंट्री ममता बनर्जी के वर्षों के तुष्टीकरण को फेल करने जा रही है तो वहीं अब ममता भी किसी ऐसे ही वोट कटवा ढूंढ रही होंगी जो BJP का वोट काटे। ऐसा लगता है कि उनकी खोज अब पूरी होने जा रही है। झारखंड की आदिवासी वोट बैंक पर निर्भर JMM ने पश्चिम बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में चुनाव लड़ने का ऐलान किया हैं।
दरअसल,झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)ने घोषणा की है कि वह आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ेगी। पार्टी के प्रमुख हेमंत सोरेन ने घोषणा की कि पार्टी वृहत झारखंड में चुनाव लड़ेगी, जिसका अर्थ है उन सभी राज्यों में जहां आदिवासी आबादी का प्रभुत्व हैं। ऐसे में पश्चिम बंगाल के भी कई जिले हैं जहां आदिवासी जनसंख्या का प्रभुत्व है।
इसी के मद्देनजर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में JMM पश्चिम बंगाल के झारग्राम में 28 जनवरी को एक बड़ी रैली का आयोजन करने जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार इस रैली में हेमंत सोरेन के अलावा उनके पिता झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सिबू सोरेन भी पहुंचेंगे। पार्टी का कहना है कि इस रैली की सफलता पर निर्भर करेगा कि वे पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनावों में अकेले उतरेंगे या अपने जैसी पार्टियों के साथ।
JMM ठीक उसी तरह से ममता के लिए काम करेगी जैसे AIMIM, BJP के लिए TMC के मुस्लिम वोट काट कर करने जा रही है। यानि समझने वाली बात यह है कि JMM आदिवासी क्षेत्र में ही चुनाव लड़ेगी और BJP ने पिछले कुछ समय में पश्चिम बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में जम कर मेहनत की है। JMM उन क्षेत्रों में BJP के वोट को बाँट देगा।
हालांकि ममता यह अवश्य चाहेंगी कि चुनावों के दौरान कुछ ऐसा ही हो। परंतु ऐसा कुछ होने नहीं जा रहा है। इसके कई कारण है। JMM के पास बंगाल में झारखंड की तरह न तो लोकप्रियता है और न ही BJP के मुक़ाबले के लिए पर्याप्त चेहरा। झारखंड के विधानसभा चुनावों में BJP को अपनी गलतियों की वजह से हार मिली थी जिसे वह पश्चिम बंगाल में दोहरने नहीं जा रही है।
वहीं BJP ने पश्चिम बंगाल के चुनावों के लिए आदिवासी क्षेत्रों में जम कर मेहनत की है। यह मेहनत लोक सभा चुनावों से पहले से ही शुरू हो चुकी थी। बंगाल में कमल खिलाने के लिए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नवंबर महीने की शुरुआत में आदिवासी गढ़ बांकुरा जिले से अपने दो दिवसीय बंगाल दौरे की शुरुआत की थी।बांकुरा के चतुरडीह गाँव से अपने दौरे की शुरुआत करते हुए, शाह ने आदिवासी विभीषण हांसदा के घर भी खाना खाया। बंगाल में अपने दौरे के दौरान, उन्होंने बिरसा मुंडा की मूर्ति की आधारशिला भी रखी थी जिन्हें आदिवासियों के बीच भगवान का दर्जा प्राप्त है।
2011 और 2016 के बीच सभी चुनावों के दौरान उन क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस मजबूत थी, लेकिन 2018 के पंचायत चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को भारी समर्थन मिला था।बीजेपी ने एसटी – अलीपुरद्वार और झारग्राम के लिए आरक्षित दोनों लोकसभा सीटें जीतीं थी।टीएमसी को जंगलमहल और उत्तर बंगाल में राजनीतिक रूप से नुकसान उठाना पड़ा था। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में आदिवासी हैं। पश्चिमी और उत्तर बंगाल में, आदिवासियों ने भाजपा के समर्थन में भारी मतदान किया।2010 के शुरुआती दिनों से, RSS राज्य में विशेष रूप से ओबीसी और एसटी बहुल क्षेत्रों में अथक प्रयास कर रहा है। बंगाल की राजनीति भद्रलोक समुदाय यानि ब्राह्मण वैद्य और कायस्थ्य पर ही केन्द्रित रही है चाहे वो कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार हो या TMC की। परंतु अब BJP के राज्य में उभरने के साथ ST क्षेत्रों का भी महत्व बढ़ चुका है। ऐसे में उन क्षेत्रों की जनता ने भी इस बदलाव को महसूस किया तभी लोक सभा चुनावों के दौरान वोट किया। अब आने वाले इस विधानसभा चुनावों में भी वो न तो JMM को वोट देंगे न ही ममता को।
इस तथ्य को देखते हुए कि भाजपा ने ही पश्चिम बंगाल के एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों को आवाज दी थी, ये सभी इसी भगवा पार्टी पर भरोसा करने जा रहे हैं और ममता बनर्जी की सभी योजनाएं ताश के पत्तों की तरह बिखरने जा रहे हैं।