पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे निकट आ रही हैं, समीकरण भी दिन प्रतिदिन बदल रहे हैं। अब ऐसा सुनने में आ रहा है कि ममता बनर्जी एक नहीं बल्कि दो जगह से विधानसभा चुनाव लड़ेंगी, लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि चाहे वो दो जगह से लड़े या दो सौ, परंतु उनकी पराजय तय है।
दरअसल एक रैली में ममता बनर्जी ने घोषणा की कि वह अपने चुनाव क्षेत्र भवानीपुर के साथ साथ नंदीग्राम से भी चुनाव लड़ेंगी। ममता के भाषण के अनुसार, “हमें उनकी कोई चिंता नहीं जो दल बदल कर रहे हैं। जब तृणमूल काँग्रेस की स्थापना हुई थी, तो उनमें से कोई नहीं था। मैं नंदीग्राम से चुनाव लड़ूँगी। यदि संभव हुआ तो भवानीपुर से भी लड़ूँगी, पर उसे दरकिनार नहीं करूंगी।” बता दें कि ममता ने भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से लड़ते हुए 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में विजय प्राप्त की थी।
अब ऐसा क्या हो सकता है कि ममता बनर्जी दोनों ही सीट गंवा सकती है? इसके पीछे दो प्रमुख कारण है। एक है चुनाव में अल्पसंख्यक वोटों का विघटन और दूसरा है भाजपा का बढ़ता कद। दरअसल भवानीपुर में ममता को मुख्य तौर पर उच्च कुल के लोग [भोद्रोलोक] का समर्थन अधिक मिला है, और वह नंदीग्राम में अल्पसंख्यक वोटों के सहारे जीतना चाहती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस निर्णय के पीछे काफी हद तक चुनावी विश्लेषक प्रशांत किशोर का हाथ हो सकता है।
लेकिन यहीं पे दोनों बुरी तरह मात खाने वाले हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अब बंगाली भोद्रोलोक, विशेषकर भवानीपुर के निवासी भाजपा की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं, जिसका असर अभी वर्तमान के लोकसभा चुनाव में भी काफी हद तक दिखा था। अब भाजपा के लिए भोद्रोलोक का समर्थन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिसे ममता बनर्जी अभी तक समझ नहीं पाई है।
वहीं दूसरी तरफ नंदीग्राम वो क्षेत्र है, जहां पर कभी ममता बनर्जी के दाहिने हाथ माने जाने वाले शुवेन्दु अधिकारी का प्रभाव व्याप्त है। ये वही नंदीग्राम है, जहां पर शुवेन्दु अधिकारी ने ताबड़तोड़ जन आंदोलन करवाते हुए न केवल तृणमूल काँग्रेस के लिए समर्थन जुटाया, बल्कि 2011 में सत्ता में भी पहुंचाया। लेकिन जिस प्रकार से सत्ता के लिए लालायित तरुण गोगोई ने असम में हिमनता बिस्वा सरमा को दुतकारा, ठीक उसी प्रकार से ममता ने अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए शुवेन्दु अधिकारी को दरकिनार करते हुए उन्हे ऐसा पीछे छोड़ा कि उन्हे पार्टी छोड़ने पर विवश होना पड़ा।
नंदीग्राम पूर्वी बंगाल के अहम सीटों में से एक है, और यहाँ क्या, पूर्वी बंगाल के 60 से अधिक सीटों पर शुवेन्दु अधिकारी का प्रभाव है। इसीलिए उन्होंने हाल ही में दावा किया, “मुझे पूरा विश्वास है कि ममता बनर्जी को हमारी पार्टी 50000 से भी अधिक मतों से यहाँ [नंदीग्राम] में पराजित करेगी। यदि ऐसा नहीं हो पाया, तो मैं उसी क्षण राजनीति से सन्यास ले लूँगा” –
इसके अलावा जो बात ममता बनर्जी के लिए सबसे अधिक चिंताजनक है, वो है AIMIM की उपस्थिति। नंदीग्राम वो क्षेत्र है जहां अल्पसंख्यक वर्ग का भी अच्छा खासा प्रभाव है। यदि ममता बनर्जी यहाँ चुनाव लड़ना चाहती है, तो उसके पीछे यही एक कारण हो सकता है। लेकिन इसी क्षेत्र मे AIMIM का भी चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है, ऐसे में यदि ममता वास्तव में लड़ती है, तो जीतना तो दूर की बात, जमानत बचाने के भी लाले पड़ जाएंगे, चूंकि AIMIM हो और अल्पसंख्यक वोटों का बंटवारा न हो, ऐसा हो सकता है क्या?
ऐसे में ममता बनर्जी ने दो जगह से चुनाव लड़कर अपनी अदूरदर्शिता का ही परिचय दिया है। एक तो पहले ही उनके 10 वर्षों के शासन पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा है, और उसके ऊपर से अब वह ऐसी जगह से चुनाव लड़ रही है, जहां उनके चुनाव जीतने की संभावना उतनी ही है, जितना कि क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान के भारत को हराने की।