UPA सरकार द्वारा 2005 में जब से NCERT की किताबों में मार्कसिस्ट इतिहास भरा गया है तब से वही देश के युवाओं को परोसा जा रहा है। अब ऐसा लगता है कि बदलाव का समय आ चुका है और मोदी सरकार इन किताबों में बदलाव के लिए तैयार है। रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने बुधवार को स्कूलों में वर्तमान राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के पुनरीक्षण पर चर्चा की। पाठ्यक्रम में बदलाव की आवश्यकता पर बहस के दौरान, NCERT के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत और RSS समर्थित भारतीय शिक्षा मंडल (बीएसएम) के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
बुधवार को, पैनल ने पूर्व-एनसीईआरटी निदेशक जेएस राजपूत और एनसीईआरटी में प्रोफेसर शंकर शरण के साथ-साथ भारतीय शिक्षा मंडल और शिक्षा संस्कृति न्यास के प्रतिनिधियों की बात सुनीं गयी। रिपोर्ट के अनुसार बैठक में एनसीईआरटी के निदेशक, सीबीएसई के अध्यक्ष और स्कूल शिक्षा सचिव भी उपस्थित थे।
पैनल ने मुख्य रूप से देश के राष्ट्रीय नायकों के बारे में तोड़ मरोड़ कर पेश किए गए तथ्यों और इस्लामिक सुल्तानों की गयी तथ्यहीन वाह वाही को हटाने, भारतीय इतिहास के प्राचीन से लेकर आधुनिक समय के व्यक्तित्वों को स्थान देने और भारतीय इतिहास में महान महिलाओं की भूमिका को उजागर करने की आवश्यकता पर चर्चा की थी।
शिक्षा पर इस संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता विनय सहस्रबुद्धे ने मीडिया को बताया कि “संसदीय समिति में पाठ्यपुस्तक सुधारों पर चर्चा करते हुए दो दशक हो गए हैं। हमने सोचा कि ऐसे समय में जब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने जा रही है और और नया सिलेबस लिखा जा रहा है तब पाठ्यपुस्तक सुधारों पर भी विचार किया जाए।”
रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय शिक्षण मंडल ने भारत की सांस्कृतिक एकता और भाषाई विरासत, जैसे संस्कृत, पाली, प्राकृत और उनके अंतर्राष्ट्रीय प्रसार और प्रभाव से लेकर सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों के बलिदान का इतिहास, और भारत और इसकी सांस्कृतिक सीमायें पर जोर देते हुए इतिहास की पाठ्यपुस्तकों लिखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रकाशन एजेंसी को पाठ के प्रमाण और सबूत देने में सक्षम होना चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि औपनिवेशिक मिथक और उनकी वास्तविकता, जैसे आर्यन आक्रमण थ्योरी, जिसे अब वैज्ञानिक सबूतों के साथ खारिज कर दिया गया है, की चर्चा किताबों में भी होनी चाहिए।
बता दें कि डॉ राजपूत स्कूल 1999 से 2004 तक, पाठ्यपुस्तकों का मसौदा तैयार करने और NCERT के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा के लिए जिम्मेदार समिति के निदेशक थे। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने विवादास्पद पाठ्यपुस्तक संशोधन की एक प्रक्रिया शुरू की थी जिसे बाद में कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में वापस से बदल कर मार्कसिस्ट इतिहास से भर दिया था।
The Hindu की रिपोर्ट के अनुसार जेएस राजपूत और सरन दोनों ने तर्क दिया कि मुगल युग की तुलना में हिंदू राजाओं के शासनकाल के लिए दी गई जगह को संतुलित करने की आवश्यकता है। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय इतिहास को गलत तरीके से लिखा गया था। उन्होंने दावा किया कि मुगल युग का आक्रमणकारियों के रूप में उनकी भूमिका को भी हटा दिया गया था।
बता दें कि कुछ दिनों पहले ही एक RTI से इस बात का खुलासा हुआ था कि NCERT के इतिहास की 12वीं की पुस्तक में बिना किसी आधार के दावे किए गए थे। RTI में इस दावे के लिए साक्ष्य मांगा गया था कि कि शाहजहाँ और औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान युद्ध के दौरान नष्ट किए गए मंदिरों की मरम्मत के लिए मुगल सम्राटों द्वारा अनुदान जारी किए गए थे। परंतु NCERT के पास किसी भी तरह का साक्ष्य मौजूद ही नहीं था।
NCERT वर्तमान में पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करने की प्रक्रिया में है और 2024 तक इस प्रक्रिया को पूरा करने की संभावना है। स्कूल शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम ढांचे का पुनरीक्षण 15 वर्षों के बाद किया जा रहा है। मंत्रालय ने नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग को निर्देश दिया है कि पाठ्यपुस्तकों को नया स्वरूप देते समय, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उनमें मूल सामग्री के अलावा कुछ भी न हो। अब मोदी सरकार को NCERT से सभी विकृत इतिहासों को हटा कर भारत के छात्रों को देश के इतिहास के बारे में बताना चाहिए और इस कार्य को जल्द से जल्द पूरा करना चाहिए। वर्ष 2005 में किए गए नुकसानों को सही करने का यही अवसर है। भारत के युवाओं और बच्चों को देश की सांस्कृतिक जड़ों के बारे में पढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। पढ़ाई का इस तरह से राजनीतिकरण कर वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को अपनी ही विरासत से दूर करना उनके पतन का कारण बन सकता है। वाजपेयी सरकार ने सही दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था, और अब मोदी सरकार को भारत के भविष्य को बचाने के लिए यह कार्य अपनी देख रेख में करना होगा।
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