बाइडन के सत्ता में आने से पहले ही ईरान परमाणु राष्ट्र बनने की तैयारी में है

ईरान को उम्मीद है, उसकी योजनाओं में बाइडन टाँग नहीं अड़ायेंगे

कुछ ही हफ्तों में जो बाइडन को अमेरिका की सत्ता हस्तांतरित की जाएगी। लेकिन व्हाइट हाउस में पधारने से पहले उन्हें अनेकों समस्याओ का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से एक है ईरान की बढ़ती गुंडई। कासिम सुलेमानी के मार गिराए जाने के एक वर्ष बाद से ईरान में परमाणु गतिविधियां तेजी से बढ़ने लगी है और उन्होंने जो बाइडन को स्पष्ट तौर पर चेतावनी भेजी है।

सोमवार को ईरान ने दावा किया कि उन्होंने पर्शियन खाड़ी से एक दक्षिण कोरियाई टैंकर को धर दबोचा है। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने हाँकुक चेमी पर सवार उसके 20 क्रू सदस्यों सहित अपने कब्जे में ले लिया है, और फिलहाल ये टैंकर ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट शहर पर तैनात है, जहां पर टैंकर के क्रू सदस्य हिरासत में रखे गए हैं, जिनमें दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, वियतनाम एवं म्यांमार के नागरिक शामिल हैं।

लेकिन इसका अमेरिका से क्या संबंध है?

दरअसल यह घटना ईरान और ट्रम्प प्रशासन के बीच की तनातनी के परिप्रेक्ष्य में अधिक अहमियत रखती है। ईरान ने अपने परमाणु राष्ट्र के सपने को पूरा करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। अमेरिका को भड़काने के लिए ईरान ने ये भी घोषणा की है कि वह यूरेनियम को 20 प्रतिशत तक ज्यादा रिफाईंन करेगा, जो न केवल 2015 के परमाणु समझौते का उल्लंघन है, बल्कि ईरान द्वारा परमाणु बम बनाने की अवधि को भी और कम कर देगा।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि, “ईरान द्वारा यूरेनियम को 20 प्रतिशत तक अधिक रिफाइन करना इसी बात का सूचक है कि वह परमाणु हथियार के बल पर बाकी देशों पर दबाव बढ़ाना चाहता है, लेकिन यह मंसूबे कामयाब नहीं होने पाएंगे। अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिटी इस मामले में अवश्य जांच करेगी।”

ईरान भली-भांति जानता है कि बाइडन का नेतृत्व ट्रम्प के मुकाबले मजबूत नहीं है, और इसी बात का फायदा उठाकर वह अपने परमाणु गतिविधियों में तेजी ला रहा है। वह जल्द से जल्द इसे इसलिए पूरा करना चाहता है ताकि जब वह इज़राएल पर अपने परमाणु बम से हमला करे [जो उसका प्रमुख निशाना है], तो अमेरिका चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए।

इसीलिए ईरान ने दक्षिण कोरिया के टैंकर को कब्जे में लेकर अपने इरादे जगजाहिर किये हैं, क्योंकि उसे लगता है कि बाइडन कमजोर राष्ट्रपति है और वह इस बात का विरोध नहीं करेगा। अब ईरान की आशावाद यथार्थ में कितना परिवर्तित होती है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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