कहने को उद्धव ठाकरे को सत्ता संभाले एक साल से कुछ ज़्यादा हो चुका है, परन्तु वर्तमान सरकार की गतिविधियों को देखकर ऐसा तो बिल्कुल नहीं लगता। उल्टे अब लोगों को ये लग रहा है कि यह सरकार अब बस चंद महीनों की मेहमान है। हो भी क्यों ना, आखिर सरकार में मौजूद दलों में खींचातानी दिन प्रतिदिन जो बढ़ती जा रही है।हाल ही में औरंगाबाद शहर के नाम को लेकर शिवसेना और कांग्रेस की तकरार जगजाहिर हुई है।
शिवसेना बालासाहेब ठाकरे के अधूरे सपने को पूरा करना चाहती है, क्योंकि उनका मानना था कि औरंगाबाद का नाम छत्रपति संभाजी के नाम पर संभाजी नगर रखना चाहिए।
शिवसेना इस मांग पर पिछले दो दशक से अधिक समय से टिकी हुई है और वह इसी मांग के बलबूते अपना प्रभाव मराठवाड़ा क्षेत्र में जमा पाई है।
लेकिन अब यही मांग उसके और कांग्रेस के बीच दरार के तौर पर सामने आ रही है। जहां शिवसेना हर हाल में औरंगाबाद का नाम बदल संभाजीनगर करना चाहती है, तो वहीं कांग्रेस इस निर्णय की धुर विरोधी है, क्योंकि यह उनके कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का हिस्सा नहीं है –
राजस्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता बालासाहेब थोराट के अनुसार पार्टी किसी जगह का नाम बदलने में विश्वास नहीं करती, और पार्टी ऐसे किसी भी मुद्दे का पुरजोर विरोध करेगी। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है, आखिर कांग्रेस को अपना वोट बैंक भी तो बचाना है।
लेकिन यही नीति महा विकास आघाड़ी में वह दरार ला सकती है, जिसे पाटने के लिए शायद ही कोई तैयार होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि महा विकास आघाड़ी में यदि किसी दल को सबसे अधिक नुकसान झेलना पड़ा है, तो वह कांग्रेस ही है।
कहने को कांग्रेस महा विकास आघाड़ी का हिस्सा रहा है, लेकिन इस खिचड़ी सरकार की वह सबसे कमज़ोर कड़ी है। इसके अलावा जिस प्रकार से शिवसेना अपनी सनक में अकारण ही लोगों को जेल में बंद करती है, और अपने पार्टी के गुंडों से लोगों को पिटवाती हैं, उससे कांग्रेस तो क्या, एनसीपी तक कोई नाता नहीं रखना चाहेगी।
लेकिन बात यहीं पे खत्म नहीं होती। जिस प्रकार से कांग्रेस को ठेंगा दिखाते हुए शिवसेना बार-बार यूपीए अध्यक्ष के लिए शरद पवार का नाम आगे बढ़ाती है, उसी का गुस्सा अब औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर करे जाने के प्रस्ताव के विरोध के रूप में निकल रहा है, और यह महा विकास आघाड़ी के लिए शुभ संकेत तो बिल्कुल नहीं है।