भारत ने मानव इतिहास की सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया है। भारत के चिकित्सक, वैज्ञानिक तथा अन्य फ्रंट लाइन वर्कर लगातार कोरोना के विरुद्ध संघर्षरत है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत ने अब तक कोरोना के विरुद्ध सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी है लेकिन विपक्ष शुरू से अब तक केवल निराधार आरोप लगाता रहा है। इसी क्रम में शुरू में टेस्टिंग कम होने का अनावश्यक भ्रम फैलाया और अब वैक्सीन को लेकर डर फैलाने की कोशिश की जा रही है। प्रश्न किये जा रहे हैं कि वैक्सीन पहले प्रधानमंत्री ही क्यों नहीं लगवा रहे?
विपक्ष द्वारा भले ही भारतीय वैक्सीन को लेकर दुष्प्रचार में लगा हो किंतु वास्तविकता यह है कि भारत के वैक्सीनेशन प्रक्रिया की सफलता पर कई देशों की निगाह टिकी है। विशेष रूप से ऐसे देश जो विकासशील एवं गरीब देशों में गिने जाते हैं वे भारत की वैक्सीन को लेकर उत्सुक हैं। विश्व भर के हेल्थ केयर सेक्टर को इस बात को लेकर उत्सुकता है कि भारत कैसे 1.3 अरब से भी बड़ी आबादी का वैक्सीनेशन करेगा। भारत कोरोना से लड़ने के लिए एक मॉडल स्टेट है।
वैक्सीन की बात करें तो जहाँ विश्व भर में चीन की वैक्सीन को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं, वहीं भारत की वैक्सीन को खरीदने के लिए पहले ही ब्राजील, साउथ अफ्रीका, बांग्लादेश जैसे देशों ने समझौता कर लिया है। भारत बायोटेक की वैक्सीन का दाम भी बहुत कम है जबकि चीन की coronavac का दाम 4000 रुपये से अधिक है। वहीं अमेरिका की फाइजर वैक्सीन की बात करें तो नॉर्वे से आई 29 लोगों की मृत्यु की खबर ने इसको लेकर भी चिंता बढ़ा दी है। यही कारण है कि यदि भारत में वैक्सीनेशन का कार्य सफल हो जाता है तो भारत वैक्सीन के मामले में एक विश्वसनीय विकल्प बन सकता है, जिससे न सिर्फ भारत दूसरे देशों की मदद कर सकेगा बल्कि भारत का कूटनीतिक महत्व भी बढ़ेगा।
भारत बायोटेक अपने वैक्सीन को लेकर इतना आश्वस्त है कि उसने वैक्सीनेशन के कारण किसी गंभीर दुष्प्रभाव की स्थिति में मुआवजे की घोषणा की है। अपनी वैक्सीन पर इस प्रकार का विश्वास दुनिया में अन्य कहीं नहीं देखा जा सकता। यही कारण है कि दुनिया भर में भारतीय वैक्सीन पर विश्वास जताया जा रहा है। भारत बायोटेक ने अपने इस कदम से, वैक्सीन पर हो रही राजनीति और आरोप-प्रत्यारोप पर विराम लगा दिया है।
भारत बायोटेक की Covaxin अपने ट्रायल के तीसरे चरण में है। इसी को बहाना बनाकर विपक्ष द्वारा वैक्सीन सुरक्षित न होने का भ्रम फैलाया जा रहा है, जो सरासर मूर्खतापूर्ण बात है। वैक्सीन सुरक्षित है या नहीं, इसकी जांच पहले और दूसरे चरण में ही हो चुकी है। तीरसे चरण में केवल इसकी कार्यकुशलता की जाँच हो रही है।
भारत को फार्मा सेक्टर में वैसे भी एक सुपर पावर का दर्जा प्राप्त है। पोलियो, टीबी जैसी बीमारियों के खिलाफ भारत ने सफलतापूर्वक अभियान चलाया है। भारत को पहले से अनुभव है कि इतनी बड़ी आबादी पर टीकाकरण अभियान कैसे चलाएं।
इतनी भिन्न-भिन्न भाषाएं, बोलियों, जनजातियों, विस्तृत एवं विविधता से भरा भूभाग तथा सीमित संसाधन के बाद भी भारत ने अब तक सफलतापूर्वक कोरोना को नियंत्रित कर रखा है, और अब यहाँ विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू होगा। यह दुनियाभर के लिए, विशेष रूप से विकासशील एवं पिछड़े देशों के लिए, एक अनुकरणीय उदाहरण है।
अधिकांश अन्य देशों के विपरीत भारत गिने चुने देशों में है जो स्वयं अपनी वैक्सीन बना चुका है और बड़े पैमाने पर वैक्सीन उत्पादन की क्षमता भी रखता है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा बनाई वैक्सीन पर विश्वास जताना, स्वयं इस बात का प्रमाण है कि, सरकार वैक्सीन को लेकर आश्वस्त है।
कोरोना, भारत के लिए स्वयं को वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने का सु-अवसर है और विपक्षी दलों को पता है कि प्रधानमंत्री मोदी जैसा कुशल कूटनीतिज्ञ, इस मौके का लाभ ले सकता है। 6 सालों में देश ने भारत की विश्व शक्ति के रूप में उभरती छवि देखी है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विश्वास रखने का यह एक बड़ा कारण रहा है। अब कोरोना का अवसर और भारत की वैक्सीन वाली कूटनीति भारत के रुतबे को तो बढ़ाएगी ही, मोदी की लोकप्रियता को और अधिक बढ़ा सकती है। यही कारण है कि विपक्ष कैसे भी करके वैक्सीन की विश्वसनीयता संदिग्ध करने की कोशिश में लगा है।