डोनाल्ड ट्रम्प का कार्यकाल अब अपनी समाप्ती की ओर है लेकिन ऐसा लगता है कि जाने से पहले वे ईरान का काम तमाम कर के ही जाएंगे। पिछले कुछ समय से देखा जाए तो उन्होंने ईरान के परमाणु इनफ्रास्ट्रक्चर की ईंट से ईंट बाजा दी है। इसी क्रम में इज़राईली सेना ने पश्चिमी सीरिया में ईरान से जुड़े कुछ टार्गेट पर हमला कर नष्ट किया था, अब यह खबर आ रही है कि इजरायल ने यह हमला अमेरिका के दिये गए खुफिया जानकारी पर ही किया था।
एक सीनियर अमेरिकी खुफिया अधिकारी ने यह खुलासा करते हुए यह बताया कि इजरायल ने यह कदम अमेरिकी खुफिया जानकारी के आधार पर उठाया था। ऐसे मौके बेहद कम देखने को मिलते हैं जब ये दोनों देश सार्वजनिक रूप से किसी हमले का दावा कर रहे हैं।
The Times Of Israel के अनुसार अमेरिकी अधिकारी, ने कहा कि हमलों में इराकी सीमा के पास गोदामों को लक्षित किया गया है जो पाइपलाइन बनाने में इस्तेमाल कर ईरानी हथियारों को स्टोर करने के लिए किया जा रहा था।
अधिकारी के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने मंगलवार को लोकप्रिय वाशिंगटन रेस्तरां Café Milano में इजरायल की जासूसी एजेंसी मोसाद के प्रमुख योसी कोहेन के साथ बैठक में इन हवाई हमले पर चर्चा की थी।
अधिकारी ने बताया कि ये वेयरहाउस ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए एक पाइपलाइन के रूप में भी काम करते हैं। बता दें कि बड़े पैमाने पर इज़राईली सेना के हवाई हमले में 15 से अधिक ईरान से जुड़े इनफ्रास्ट्रक्चर को लक्षित किया गया था। पिछले ढाई सप्ताह में सीरिया में ईरानी ठिकानों के खिलाफ इजरायल द्वारा किया गया चौथा हमला था। इससे स्पष्ट होता है कि डोनाल्ड ट्रम्प अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम को तहस नहस कर देना चाहते हैं।
जिस तरह से अमेरिका ने पहले ईरान पर प्रतिबंध लगाया, इसके बाद जनरल सुलेमानी को मार गिराया और पिछले वर्ष नवंबर महीने में ईरान के मुख्य परमाणु वैज्ञानिक Mohsen Fakhrizadeh की हत्या हुई, उसके बाद अब इस तरह से ईरानी इनफ्रास्ट्रक्चर पर हमला कोई संयोग नहीं है। यह ईरान के परमाणु कार्यक्रम को जड़ से उखाड़ने की चाल है जिसे डोनाल्ड ट्रम्प अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले समाप्त करना चाहते हैं।
यही नहीं यमन में बसे ईरान द्वारा समर्थित Houthi उग्रवादियों को एक आतंकी संगठन घोषित कर दिया है। इसके अलावा ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्यूबा को एक बार फिर से आतंकी समर्थक देश घोषित किया जाएगा, और इन दोनों ही निर्णयों से ईरान की बढ़ती ताकत को जबरदस्त नुकसान पहुंचेगा।
ईरान ने हाल के महीनों में विश्व शक्तियों के साथ 2015 के परमाणु समझौते का बार-बार उल्लंघन किया है। अमेरिकी प्रतिबंधों की प्रतिक्रिया के कारण हुए ईरान द्वारा किए गए उल्लंघन ने परमाणु समझौते के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है जिससे ईरान खुद पर से प्रतिबंधों को हटाने और पश्चिम के साथ व्यापार करने में मदद कर सकता था।
अब ऐसा लगता है डोनाल्ड ट्रम्प पूरी तरह से ईरान के परमाणु सम्पन्न देश बनने के सपने को चकनाचूर कर के ही मानेंगे। अगर ईरान परमाणु सक्षमता हासिल कर लेता है तो वह सिर्फ पश्चिमी एशिया के लिए ही नहीं बल्कि विश्व की शांति के लिए गले का कांटा बन जाएगा। और अगर ईरान का को अमेरिका रोक लेता है तो यह डोनाल्ड ट्रम्प के पश्चिमी एशिया मेंस शांति स्थापना की पहल में आखिरी कील साबित होगा।
ट्रम्प पहले ही इजरायल तथा खड़ी के इस्लामिक देश जैसे यूएई और बहरीन के बीच शांति समझौता करवा चुके है और सऊदी अरब का भी इजरायल के साथ सम्बन्धों को सामान्य होने में अब बस औपचारिकता ही बाकी रह गयी है। यानि देखा ये तो सिर्फ ईरान का ही एक ऐसा मुद्दा था जो अमेरिका और पश्चिमी एशिया की शांति के लिए एक गले की हड्डी बना हुआ था। अब डोनाल्ड ट्रम्प जाने से पहले इजरायल के साथ मिल कर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ईरान अपने नापाक इरादों में सफल ना हो सके।