विश्लेषण- बाइडन की नई चीन परस्त नीति से रूस आएगा भारत और जापान के करीब

जानिए, क्यों रूस के लिए आज सबसे बड़ी समस्या है चीनी विस्तारवाद से निपटना

रूस

राष्ट्रपति के रूप में बाइडन ने अपना कार्यभार संभाल लिया है। जैसा कि पहले से अनुमान था, वे ट्रम्प शासन की विदेश नीति में बदलाव करने वाले हैं, जिसका सबसे अधिक नुकसान रूस को होगा। ट्रम्प शासन के दौरान चीन अमेरिकी विदेश नीति में मुख्य शत्रु की भूमिका में था, किंतु सरकार बदलते ही बाइडन ने चीन के प्रति नर्म रुख अख्तियार कर लिया है, जिसकी उम्मीद पहले से थी।

एक ओर जहाँ बाइडन ने विदेश विभाग की Policy Issue की सूची से चीन का नाम हटा दिया है, वहीं दूसरी ओर डेमोक्रेटिक नेताओं द्वारा कैपिटल हिल में हुई हिंसा के पीछे रूस का हाथ बताकर यह साफ कर दिया गया है कि डेमोक्रेट चीन से ध्यान हटाने के लिए रूस पर अत्याधिक हमलावर होने वाले हैं।

ऐसे में आम धारणा है कि बाइडन प्रशासन के दौरान रूस, चीन के पाले में और अधिक खिसक जाएगा। लेकिन वास्तविकता में ऐसा होने की गुंजाइश कम है। वैश्विक राजनीतिक समीकरण और बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर दुनिया का रुझान यही संकेत करता है।

रूस अमेरिका के बढ़ते दबाव में यदि चीन की ओर और अधिक झुकने की कोशिश करेगा तो उसे चीन के अधीनस्थ की भूमिका निभानी होगी, जो रूस को कभी स्वीकार नहीं होगा। एक ओर तो यह उसके राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न है, साथ ही चीन पर अत्यधिक निर्भरता, आर्थिक मोर्चे पर भी कठिनाइयों से भरी है।

रूस की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आधार हथियारों की आपूर्ति है, जहाँ उसे फ्रांस और अमेरिका के अतिरिक्त अब चीन से भी कड़ी टक्कर मिल रही है। विशेष रूप से अमेरिका और पश्चिम के विरोधी धड़े, हथियारों की आपूर्ति के लिए पूर्णतः रूस और चीन पर निर्भर हैं। साथ ही चीन की रिवर्स इंजीनियरिंग द्वारा तकनीक चुराने की आदत भी रूस के लिए समस्या है।

साथ ही चीन, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में रूस के पारंपरिक प्रभुत्व को चुनौती दे रहा है। चीन की आर्थिक प्रभुता और बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट आर्थिक रूप से पिछड़े इन क्षेत्रों में वैश्विक शक्ति के रूप में उसकी स्वीकार्यता को बढ़ा रहे हैं, जो रूस के लिए चिंता का विषय है।

ऐसे में रूस के पास एक ही विकल्प है कि अमेरिका के दबाव को कम करने के लिए, रूस अमेरिका के दो प्रमुख सहयोगियों और हिन्द प्रशांत क्षेत्र की दो प्रमुख शक्तियों, भारत और जापान से अपनी नजदीकी बढ़ाए।

भारत पहले ही रूस को हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए आमंत्रण दे चुका है। भारत द्वारा चेन्नई से व्लादिवोस्टोक तक समुद्री मार्ग बनाने के लिए निवेश कर रहा है और हाल ही में भारत ने जापान को भी इस क्षेत्र में निवेश हेतु आमंत्रित किया था।

पुतिन एक कुटिल नेता हैं। उन्हें यह पता है कि बाइडन को घेरने के लिए उसके सहयोगियों का प्रयोग सबसे कारगर है। जैसा कि उन्होंने यूरोप में करके दिखाया है। रूस नोर्ड स्ट्रीम परियोजना द्वारा जर्मनी तथा अन्य यूरोपीय देशों को नेचुरल गैस की आपूर्ति करता है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी रूस नोर्ड स्ट्रीम 2 पर कार्य कर रहा है तथा यूरोपीय शक्तियों में भी इसे लेकर उतनी ही उत्सुकता है।

वास्तविकता यह है कि बाइडन और डेमोक्रेटिक नेताओं के अतिरिक्त हर व्यक्ति यह समझता है कि दुनिया शीत युद्ध के दौर में नहीं जी रही। आज की जटिल वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखना सभी पक्षों की आवश्यकता है। ऐसे में भारत, जापान और यूरोप के अन्य देश भी नहीं चाहेंगे कि अमेरिका रूस को अत्यधिक त्रस्त करे, वो भी एक ऐसे समय में जब दिनोदिन मजबूत होता चीन, लोकतांत्रिक समाजों एवं मानवता की स्वतंत्रता के लिए खतरा बनता जा रहा है।

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