‘हम 80% हलाल मीट ही परोसते हैं, ये स्वादिष्ट होता है’, हलाल और झटका वाले नियम पर रेस्टोरेंट्स के अजूबे बयान

SDMC ने झटका और हलाल संबंधी टैग लगाने का रेस्टोरेंट्स को जारी किया था आदेश

हलाल

देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिणी नगर निगम ने नॉन वेज खाने को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला लिया, लेकिन इस फैसले से प्रभावित होने वाले रेस्टोरेंट्स के मालिकों ने इसका विरोध कर दिया है। ये फैसला ‘हलाल’ और ‘झटका’ मीट को लेकर है। रेस्टोरेंट्स का कहना है कि इस वक्त पहले ही बिजनेस ठप्प है, इसलिए इस मामले में अभी ये फैसला लेना गलत  है और हम जो मीट परोसते हैं वो 80 प्रतिशत हलाल होता है। रेस्टोरेंट्स के ये लोग जानबूझकर अपने फायदे के लिए इस फैसले को न मानने की जिद पकड़ कर बैंठे हैं।

दिल्ली एसडीएमसी के फैसले को लेकर ,उससे प्रभावित होने वाले रेस्टोरेंट्स काफी नाराज हैं। First Fiddle F&B Pvt Ltd रेस्टोरेंट्स की फाउंडर प्रियंका शुखीजा ने कहा कि हमारे केवल 10 प्रतिशत लोग ही ऐसे है, जिन्हें ‘हलाल’ या ‘झटका’ माल होने से कोई फर्क पड़ता है अन्य लोग खुशी-खुशी मीट का सेवन करते हैं। इसके साथ ही एसडीएमसी के अंतर्गत आने वाले 7 रेस्टोरेंट्स ने इस मुद्दे पर समय को गलत बताया है। उनका कहना है कि अभी कोरोनावायरस की महामारी के कारण हम लोगों को काफी नुकसान हो चुका है और ये फैसला हमारे नुकसान को बढ़ाएगा।

दिल्ली के इस इलाके में रेस्टोरेंट्स के मालिक अजीबो-गरीब तर्क दे रहे हैं। ऐसे ही एक अन्य मालिक का कहना है कि हलाल मीट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है और इसका स्वाद भी अन्य मीट से ज्यादा अच्छा होता है। उनका कहना है कि उनके यहां खाना खाने वालों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वो हलाल मीट खा रहे हैं या झटका। इसलिए वो इस मुद्दे पर एसडीएमसी के फैसले के खिलाफ ही अपनी बात रखेंगे।

वहीं इस मामले में रेस्टोरेंट्स का पूरा एसोसिएशन भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखेगा। NRAI ने (National Restaurant Association of India) एसडीएमसी को अपना विरोध जताते हुए उनसे ये मांग की है कि नगर निगम इस फैसले को वापस ले। ये सभी रेस्टोरेंट्स इस मुद्दे पर पूरी तरह नगर निगम कि खिलाफ ही खड़े हो गए हैं।

दरअसल, दक्षिणी दिल्ली के रेस्टोरेंट्स को लेकर एसडीएमसी ने फैसला लिया है कि इस क्षेत्र में आने वाले सभी रेस्टोरेंट्स को अब ये बताना होगा कि वो हलाल मीट सर्व कर रहे हैं या झटका। एसडीएमसी का फैसले के पीछे तर्क है कि हिंदू और सिख धर्म के लोगों में हलाल मीट मना है। इसलिए रेस्टोरेंट्स जाने अनजाने लोगों को हलाल मीट परोस देते हैं जिससे लोगों का धर्म भ्रष्ट होता है। इसी कारण से लोग रेस्टोरेंट्स या बाहर कुछ भी नॉन वेज खाने में कतराते हैं।

एसडीएमसी के इस फैसले को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है, लेकिन रेस्टोरेंटस् का विरोध इस मुद्दे पर जारी है। ऐसा इसलिए भी संभव है क्योंकि इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में ऐसे रेस्टोरेंट्स है जो कि मुस्लिमों द्वारा संचालित हैं और वो हलाल मीट ही खाते हैं। इसीलिए ये लोग बड़े गर्व के साथ कह रहे हैं कि हलाल मीट ज्यादा अच्छा होता है जो कि असल में हिंदुओं और सिखों के लिए नकारात्मक बात है।

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