ब्राजील में चीन की वैक्सीन की कार्यकुशलता को लेकर जो रिपोर्ट सामने आ रही है वह बताती है कि अन्य चीनी उत्पादों की तरह यह वैक्सीन भी गारंटी रहित है। चीन अपने घटिया और सस्ते उत्पादन के लिए विश्व विख्यात है। ऐसा ही उसकी वैक्सीन के संदर्भ में भी सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार ब्राजील में चीन की SINOVAC द्वारा किये गए अंतिम ट्रायल में इसकी प्रभावोत्पादकता या एफिशिएंसी 60 प्रतिशत से भी कम रही।
ब्राजील के साओ पाउलो शहर के Butantan biomedical centre द्वारा चीन की वैक्सीन का ट्रायल रन किया जा रहा है। सेंटर ने पिछले सप्ताह अपनी रिपोर्ट में यह कहा था कि वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता 78% है। हालांकि कई स्वतंत्र पर्यवेक्षक इस रिपोर्ट को खारिज कर चुके हैं, क्योंकि रिपोर्ट में ट्रायल के डेटा को पारदर्शिता के साथ जनता से साझा नहीं किया गया था।
अब यह संस्थान पूरी रिपोर्ट साझा करेगा। हालांकि इसके पूर्व ही ब्राजील के सरकारी तंत्र द्वारा वैक्सीन की कम कार्यक्षमता को लेकर की गई अटकलबाजियों को खारिज कर दिया गया है। वास्तव में बॉलसेनारो सरकार कोरोना आपदा को ठीक से न संभाल पाने के कारण विपक्ष के निशाने पर है। सरकार द्वारा वैक्सीन को लेकर शुरू में अपनाया गया ढीला रवैया उसकी आलोचना का एक प्रमुख कारण रहा है। यहाँ तक कि ब्राजील की राज्य सरकारें एवं प्राइवेट क्लीनिक के संघ, वैक्सीन की खोज में स्वतंत्र रूप से प्रयास कर रहे हैं। इन्हीं में एक प्राइवेट क्लीनिक संघ ने भारत बायोटेक के साथ भी समझौता किया है।
वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया में केंद्र की ओर से बरती गई ढील ने विपक्ष को मौका दे दिया है, इसी कारण ब्राजील सरकार जल्द से जल्द वैक्सीन लगाने का कार्य शुरू करना चाहती है। किंतु इसके लिए वह चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल करती है तो निश्चित ही उसे पुनः आलोचना का सामना करना पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ समय पूर्व खुद राष्ट्रपति बॉलसेनारो ही चीनी वैक्सीन को अस्वीकार कर चुके हैं।
तब उन्होंने कहा था कि ब्राजील के लोग लैब के गिनीपिग नहीं जिनपर चीन वैक्सीन टेस्ट करे। अतः अब सरकार यदि चीनी वैक्सीन को लेकर अपनी रिपोर्ट में जरा भी छेड़खानी करेगी तो विपक्ष इस मौके को नहीं छोड़ेगा। सरकार और विपक्ष की खींचतान में नुकसान चीन का होने वाला है।
समस्या यह है कि वैक्सीन को लेकर कहीं भी बड़े पैमाने पर ट्रायल नहीं किया गया है। अब तक तीन देशों से मिली रिपोर्ट के अनुसार तीसरे चरण में वैक्सीन के ट्रायल हेतु सबसे अधिक संख्या में 13000 वालेंटियर ब्राजील में शामिल हुए। जबकि इंडोनेशिया और तुर्की में यह संख्या इससे भी कम थी। वहीं अन्य वैक्सीन की बात करें तो भारत बायोटेक अपने तीसरे चरण में 26000 लोगों पर,AstraZeneca 30000 लोगों पर एवं Pfizer 6 देशों के 43000 लोगों पर परीक्षण कर रहा है। इसके बाद भी इन सभी की कार्यक्षमता और प्रामाणिकता चीनी वैक्सीन से अधिक रही है।
चीन यह नहीं चाहता कि उसकी वैक्सीन का डेटा बाहर आये, यदि ब्राजील में वैक्सीन को लेकर खबरे बाहर आएंगी तो वैश्विक स्तर पर उसकी छीछालेदर होगी। अपनी वैक्सीन की विश्वसनीयता सिद्ध करने के लिए चीन भरसक प्रयास कर रहा है।
उसने अपने चीनी नव वर्ष के पूर्व अपने देश के 50 लाख लोगों को यही वैक्सीन लगाने का निर्णय किया है, जबकि स्वयं चीन के विशेषज्ञ ही इसे दुनिया की सबसे बेकार वैक्सीन घोषित कर चुके हैं। यहाँ तक कि 50 लाख चीनियों को वैक्सीन लगाने से पहले इसके तीसरे चरण के ट्रायल के पूरे होने और वैक्सीन के सुरक्षित होने की पुष्टि का इंतजार भी नहीं किया गया।
हाल ही में चीन को तब एक बड़ी सफलता मिली थी जब इंडोनेशिया के मौलानाओं ने चीन की वैक्सीन को हलाल सर्टिफिकेट जारी कर दिया था। इसके बाद कम से कम मुस्लिम देशों में वैक्सीन की स्वीकार्यता बढ़ने की गुंजाइश थी। किंतु अब लगता है कि ब्राजील उसके सभी प्रयासों पर पानी फेर देगा।