सरकार ने पिछले वर्ष जब नया बजट प्रस्तुत किया था तो उम्मीद की जा रही थी कि टैक्स में छूट के प्रावधान के कारण आर्थिक प्रगति को तेजी मिलेगी। लेकिन कोरोना के फैलाव ने अर्थव्यवस्था को लेकर बनाई गई सभी योजनाओं को धरातल में भेज दिया तथा सरकार को सबकुछ नए सिरे से शुरु करना पड़ा। कोरोना के दौरान तेजी से हुए निवेश और सरकारी व्यय में बढ़ोतरी से यह संकेत मिल रहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार होगा, किंतु इस सुधार में मध्यम वर्ग को क्या लाभ होंगे, यह एक बड़ा प्रश्न है!
देश ने कोरोना के दौरान मोदी सरकार का हर कदम पर साथ दिया। सरकार ने भी अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छी तरह निभाई। कोरोना के दौरान 80 करोड़ लोगों को सात-आठ महीनों तक फ्री राशन दिया गया, वहीं निवेश को आकर्षित करने के लिए PLI जैसी आकर्षक योजनाएं, टैक्स कट जैसे प्रावधान किए गए। किंतु अब भी मध्यम वर्ग, सरकार की योजनाओं में प्रमुख स्थान नहीं पा सका है।
हालांकि सरकार ने 2019 के बजट में टैक्स में छूट का दायरा 1.5 लाख से बढ़ाकर, 5 लाख किया गया था लेकिन यह काफी नहीं है। भारत की सालाना प्रतिव्यक्ति आय 1.25 लाख है। अब यदि एक सामान्य भारतीय परिवार की बात करें तो उसमें कम से कम 5 सदस्य होते हैं तथा काम करने वाला एक व्यक्ति। ऐसे में एक व्यक्ति की आय कम से कम 6.25 लाख हो तब जाकर उसके परिवार के प्रत्येक सदस्य की आय राष्ट्रीय औसत आय के बराबर होगी। ऐसे में 6.25 लाख से कम आय पर भी इनकम टैक्स लगाना न्यायोचित नहीं है।
वैसे भी देखा जाए तो अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिए आवश्यक है कि उपभोक्ता व्यय करे, जिससे बाजार में तेजी आए। सरकार भी अपने economic survey में यह जाहिर कर चुकी है कि उसका ध्येय आर्थिक विकास पर है, न कि धन के वितरण पर। इसका सबसे बेहतर तरीका यह है कि टैक्स में छूट दी जाए, जिससे आम आदमी की जेब में पैसे बचें, जिससे उसकी क्रयशक्ति बढ़े।
कोरोना के कारण पहले ही रोजगार का संकट पैदा हो गया है। साथ ही वेतन में कटौती ने लोगों की क्रयशक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। कई छोटे उद्योग बन्द होने के कगार पर हैं क्योंकि उपभोक्ता में विश्वास की कमी है और वह धन खर्च करने में झिझक रहा है। ऐसे में टैक्स में छूट सबसे कारगर उपाय है। यदि इनकम टैक्स में छूट की सीमा को 5 लाख से बढ़ाया जाता है तो इसका लाभ केवल वेतनभोगी कर्मचारियों को ही नहीं, बल्कि MSMEs को भी होगा।
भारत की सबसे बड़ी समस्या इनकम टैक्स का न्यायपूर्ण न होना है। कृषि जैसे कई क्षेत्र हैं जिनपर टैक्स ही नहीं लगता, अब कोई बड़ा किसान जो ऑर्गेनिक खेती से सालाना 10 लाख कमा रहा है, वह टैक्स नहीं देगा, जबकि सालाना 6 लाख पाने वाला सरकारी या निजी कर्मचारी टैक्स भरेगा। भाजपा के राज्यसभा सांसद और हार्वर्ड के पूर्व प्राध्यापक डॉ० सुभ्रमण्यम स्वामी ने हाल ही में World Hindu Economic Forum में अपने भाषण में इस ओर ध्यान आकर्षित किया।
उन्होंने कहा “आज हमारे देश में आयकर सबसे असंतुलित कर है। कृषि और कम आय वाले क्षेत्रों में कोई आयकर नहीं है, और अमीर लोग अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट की मदद से शायद ही कभी कुछ भुगतान करते हैं। श्रमिक वर्ग, युवा उद्यमी, स्टार्ट-अप सबसे अधिक परेशान हैं। जब आयकर समाप्त कर दिया जाएगा, तो जनता बहुत खुश होगी।”
अतः यदि सरकार बजट में मध्यम वर्ग को राहत देती है तो अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए तो बेहतर होगा ही, एक न्यायपूर्ण आर्थिक ढांचे को बनाने में भी मददगार होगा।
वहीं मध्यम वर्ग की दूसरी सबसे बड़ी उम्मीद हेल्थ सेक्टर में मिलने वाली संभावित राहत से है। सरकार का सर्वे स्वयं बताता है कि हेल्थ सेक्टर में सरकारी निवेश, क्यों आवश्यक है। विशेष रूप से कोरोना ने यह बता दिया है कि हेल्थ केयर को निजी हाथों में छोड़ना कोई अच्छा रास्ता नहीं है। अधिकांश विकसित देश भी ऐसी व्यवस्था अपनाते हैं जहाँ हेल्थकेयर सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसे में सरकार को हेल्थ केयर में अपना वरदहस्त मध्यम वर्ग पर भी रखना चाहिए। आज आवश्यकता है कि मध्यम वर्ग को भी आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ मिले।
यदि बजट में सरकार मध्यम वर्ग को, जो कि भारत की बड़ी आबादी है, उसकी चिकित्सीय चिंताओं से मुक्त करती है, तो यह अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुँचाएगा। अपनी हेल्थकेयर की चिंता से मुक्त मध्यमवर्ग, अधिक विश्वास के साथ व्यय कर सकेगा, जिससे आर्थिक क्रियाकलाप बढ़ सकेंगे।