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मिलिये शी जिनपिंग और 2020 के शीर्ष 4 विलेन से

जिनपिंग, कैरी लैम, टेड्रोस, एर्दोगन और मार्केल, ये है 2020 के अल्टीमेट विलेन

Shikhar Srivastava द्वारा Shikhar Srivastava
1 January 2021
in मत
मिलिये शी जिनपिंग और 2020 के शीर्ष 4 विलेन से
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2020, मानव इतिहास के वर्तमान युग के लिए सबसे बुरा साल, अब अपने अंत की ओर है। साल के अंत में हम आपके लिए एक रिकैप लेकर आये हैं जिससे आप ये फिर से याद कर सकें कि वो कौन से लोग थे जिन्होंने इस साल को बर्बाद करने में भूमिका निभाई और बर्बाद साल को सुधारने में अड़चन डाली। 2020 के पाँच विलेन इसप्रकार हैं।

जिनपिंग

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क्या शी जिनपिंग Eco Chamber में रहते हैं? उनके पिछले कुछ महीनों के फैसले और नीतियाँ तो यही दिखाती हैं

‘चीन अपने नागरिकों को उनके परिजनों की मृत्यु का शोक भी नहीं मनाने देता अन्यथा देश की बदनामी होगी’

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वर्ष 2020 याद रखा जाएगा तो केवल अपने वुहान वायरस के संक्रमण के लिए और इसके पीछे किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जाएगा तो वह है चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग। जब साल के शुरू में कोरोना ने दस्तक दी थी, तब जिनपिंग ने एक जिम्मेदार नेता की तरह, यदि दुनिया को आगाह कर दिया होता तो आज संक्रमण महामारी न बन पाया होता। जैसा कि बाद कि रिपोर्ट में पता चला कि जिनपिंग को वायरस की जानकारी जनवरी के पहले ही थी, लेकिन उन्होंने इस बात को छुपाए रखा।

चीनी सरकार के तानाशाही रवैये के कारण यह वायरस इतनी तेजी से फैला। शुरू में जिन जिन लोगों ने दुनिया को आगाह करने की कोशिश की उनको भी चुप करवा दिया गया, और एक बार जब वायरस का फैलाव शुरू हो गया तो उसे रोकने के लिए अमानवीय तरीके अपनाए गए। कम्युनिस्ट शासन ने अपने यहाँ वायरस से हुई मौत के आंकड़े भी जाहिर नहीं किये।

इतना ही नहीं जिनपिंग ने इस महामारी को अपनी नीतियों को लागू करने के लिए एक अवसर की तरह देखा। हांगकांग पर सुरक्षा कानून लादकर उसकी स्वायत्तता छीन ली गई। ताइवान की स्वतंत्रता छिनने की योजना भी बनी किंतु अमेरिका और उसके सहयोगियों के दबाव के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका।

वहीं दूसरी ओर चीन ने इसी समय, अपने पड़ोसियों को आंतरिक समस्याओं से जूझता देख, जोर जबर्दस्ती से उनकी सीमाओं के अतिक्रमण का भी प्रयास किया। लद्दाख में चल रहा स्टैंड ऑफ हो या जापान के साथ सेनकाकू द्वीपों का विवाद, या फिर वियतनाम के साथ पार्सेल द्वीप का विवाद हो, चीन ने सभी जगह ताकत के प्रदर्शन से अपने पड़ोसियों को डराने की कोशिश की। दक्षिणी चीन सागर में भी वियतनाम की बोट को डुबाया गया।

वास्तव में यह सब कार्य जिनपिंग ने अपनी छवि बचाने के लिए किया। वायरस के फैलाव ने यह जाहिर कर दिया कि जिनपिंग एक अकुशल प्रशासक हैं। ऐसे में अपनी गिरती छवि को सुधारने के लिए जिनपिंग ने खुद को एक आक्रामक नेता की तरह पेश करना चाहा। गलवान घाटी का टकराव इसी का नतीजा था। पर जिनपिंग अपनी नीति में सफल नहीं हो सके। उल्टे उनकी मुसीबतें और बढ़ गयी हैं।

कैरी लैम

पिछले वर्ष यानि 2020 की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में एक चीन द्वारा हांगकांग पर नया सुरक्षा कानून लागू करना था। इस कानून ने दुनिया को दिखा दिया कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दुनियाभर के लोकतंत्रों के लिए एक चुनौती है। लेकिन हांगकांग पर इसे लागू करवाने में वहाँ की नेता कैरी लैम का भी योगदान है, जिन्होंने अपने ही लोगों के साथ धोखेबाजी की और हांगकांग को चीन के हाथों में सौंप दिया। एक ओर जब लोकतंत्र समर्थक सड़कों पर लड़ रहे थे, कैरी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सराहना करते हुए कहा था “शी चाहते हैं कि कैसे भी करके हाँग-काँग में वन कंट्री टू सिस्टम सफल बना रहे, हम चीन के साथ पूरी तरह सहयोग करने के लिए तैयार हैं”।वे चीन द्वारा लोकतंत्र को कुचलने के अभियान में उसके साथ हो गईं। उन्होंने चीनी प्रोपोगेंडा का समर्थन किया कि यह कानून हांगकांग की भलाई के लिए है।

WHO के चीफ टेड्रोस अधानोम

पिछले वर्ष, 2020 तक WHO संयुक्त राष्ट्र के उन संगठनों में एक था जिसे उसके मानवसेवा के कार्यों के लिए दुनिया भर से प्रशंसा मिलती थी। किंतु जैसे ही WHO पर दबाव आया उसने यह दिखा दिया कि उसका भी मूल स्वभाव UN के अन्य संगठनों से अलग नहीं है, जो वैश्विक शक्तियों के दबाव में झुक जाते हैं। इस साल दुनिया में जिनपिंग के बाद शायद सबसे ज्यादा किसी व्यक्ति को कोसा गया है तो वह है WHO का प्रमुख टेड्रोस अधानेम।

WHO यदि सही समय पर दुनिया को वुहान वायरस के प्रति आगाह कर देता तो आज जो स्थिति दुनिया की है, वह न होती। ताइवान ने दिसंबर में ही WHO को कोरोना के प्रति आगाह करते हुए बताया था कि इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, अन्यथा यह महामारी का रूप ले लेगा। ताइवान ने इसके मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण की बात भी बताई थी। लेकिन WHO ने इन सभी बातों को खंडित करते हुए यह कह दिया कि इस वायरस से डरने की जरूरत नहीं है, और यह संक्रमण की तरह नहीं फैलेगा।

इतना ही नहीं जब ट्रम्प ने COVID 19 को चीनी वायरस या वुहान वायरस कहकर चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना शुरू किया तो WHO ने चीन के वफादार की तरह सबसे पहले इसका विरोध किया। WHO की भाषा चीन के बजाए ट्रम्प के प्रति सख्त रही। यह स्थिति तब तक बनी रही जब तक ट्रम्प ने WHO की फंडिंग बन्द करने का फैसला नहीं किया। फंडिंग बन्द होने के बाद ही WHO ने चीन के विरुद्ध आवाज उठाई और ताइवान से सहयोग तक कि बात स्वीकार कर ली। यदि WHO सही समय पर चीन के खिलाफ बोलता तो आज संक्रमण इस तरह नहीं फैला होता और इसके असल कारणों का भी दुनिया को पता चल गया होता, साथ ही चीन की जवाबदेही भी तय की जा सकती थी।

भारत में कोरोना को सफलतापूर्वक इसलिए रोका जा सका क्योंकि भारत ने शुरू में ही WHO के बजाए अपने वैज्ञानिकों पर भरोसा किया। WHO के बजाए ICMR की नीतियों को लागू करना मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक था। लेकिन WHO से भारत की अदावत यहीं नहीं रुकी, जब भारत ने दुनिया को वुहान संक्रमण से लड़ने के लिए HCQ की सप्लाई शुरू की तो WHO ने इसका भी विरोध किया। इन सब चालबाजीयों के पीछे सिर्फ और सिर्फ टेड्रोस और उसके साथियों का हाथ था।

एर्दोगन

एर्दोगन

एर्दोगान के कारनामों के बारे में वैश्विक राजनीति को समझने वाला हर आदमी भली प्रकार जानता है। इस स्वघोषित खलीफा ने मुस्लिम समुदाय को भड़काने और पश्चिम एशिया का माहौल तनावपूर्ण बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एर्दोगान ने इस वर्ष हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलकर यह स्पष्ट कर दिया कि वे तुर्की को पुराने खिलाफत के दिनों में ले जाएंगे। इसके बाद जब ट्रम्प, इस्राइल और अरब देशों के सहयोग से खाड़ी का तनाव कम होने लगा और मुख्य मुस्लिम शक्तियों ने इस्राइल को मान्यता देनी शुरू कर दी तो एर्दोगान ने इसका भी विरोध किया।

तुर्की का फ्रांस के साथ तनाव बढ़ाने में भी एर्दोगान ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले ग्रीस के इलाकों में जबरन हस्तक्षेप किया और युद्ध जैसे हालात पैदा किये, फिर फ्रांस के विरुद्ध मुस्लिम जगत को भड़काने की कोशिश की। एर्दोगान अपनी महत्वकांक्षा के लिए किस हद तक जा सकते हैं इसे दुनिया ने आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध में देखा। तुर्की ने एक जिम्मेदार शक्ति की तरह युद्ध शांत करवाने के बजाए, इसे अपने भूराजनैतिक समीकरण साधने का मंच बना दिया।

एर्दोगान लगातार ऐसे मुद्दों पर मुखर हो रहे हैं जो मुस्लिम जगत के लिए भावनात्मक जुड़ाव के हैं। जैसे UAE इस्राइल समझौते के बाद उन्होंने इसे फिलिस्तीन से गद्दारी जैसा बताया। कश्मीर मुद्दे पर भी वे इसीलिए इतने मुखर हैं। जबकि अनावश्यक रूप से अल अक्सा मस्जिद का मामला उठाकर वर्षों पुराने मुस्लिम यहूदी संघर्ष को और भड़काने का प्रयास किया गया। साल का अंत उनके लिए जरूर अच्छा नहीं रहा और अब तुर्की को अमेरिकी प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन एर्दोगान की नीतियों ने प० एशिया और वैश्विक शांति के लिए नई चुनौतीयां अवश्य पैदा कर दी हैं।

एंजेला मर्केल

जब ट्रम्प ने वुहान वायरस के कारण चीन खिलाफ मोर्चा खोला तो टेड्रोस के बाद दूसरा प्रमुख व्यक्ति जो उनकी नीतियों के खिलाफ था वह थीं जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल। मैर्केल ने चीन अमेरिका शीत युद्ध को अपने लिए बने अवसर की तरह देखा। वैश्विक नेतृत्व की जर्मनी की वर्षों पुरानी महत्वकांक्षा को संतुष्ट करने के लिए मैर्केल ने चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने की नीति अपनाई, जिससे वैश्विक स्तर पर जर्मनी का कद बढ़े। यही कारण रहा कि EU सही समय पर चीन के खिलाफ नहीं खड़ा हुआ और चीन पर दबाव बनाने के अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के प्रयासों को झटका लगा।

उनका यह रवैया तब तक बना रहा जब तक उन्हें EU में ही अपने नेतृत्व के लिए चुनौतियों का आभास नहीं हुआ। जब फ्रांस के मुखर रूप से चीन विरोध को यूरोप में समर्थन मिलने लगा तब जाकर मैर्केल ने अपनी नीति पर पुनर्विचार किया। खैर यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि टेड्रोस और मैर्केल के ढुलमुल रवैया के कारण ही चीन की जवाबदेही तय नहीं हो सकी और उसे सवाल करने वाले देशों, जैसे ऑस्ट्रेलिया, पर अधिक आक्रामक होने का मौका मिला।

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